रायगढ़ में बिखर रही 'संबलपुरी साड़ी' की रंगत

ओडिशा की सबसे पसंदीदा 'संबलपुरी साड़ी' अब रायगढ़ जिले में बन रही. इन खूबसूरत साड़ियों ने गरीब महिलाओं की ज़िंदगी को भी खूबसूरत बना दिया.आजीविका मिशन बिहान के रीपा प्रोजेक्ट में टरडा पंचायत में यूनिट लगाई गई. 

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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Chattisgarh SHG women weaving sumbalpuri sarees

साड़ी के लिए धागा तैयार करती समूह की महिला बुनकर सदस्य (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

रायगढ़ (Raigarh) के छोटे हरदी (Chhoti Hardi) गांव के स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) की ललिता गुप्ता और शुभलया चौहान जिले के पॉवर लूम (Power Loom) में काम कर ज़िंदगी गुजार रही थी. ललिता कहती  है- "पॉवरलूम में पूरे दिन काम करने के बाद भी इतनी कमाई नहीं होती थी. इस यूनिट में काम कर कुछ समय में ही ज़िंदगी पटरी पर आ गई. यहां तो ट्रेनिंग तक में पैसा मिला." इस यूनिट में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को ही काम दिया.  

समूह से जुड़ी शुभलया बताती है - "मैं पॉवरलूम में सिर्फ धोती बनाती थी. ज्यादा कमाई नहीं होती,जबकि बहुत मेहनत की. यहां आने के बाद रोज काम के साथ पैसा भी मिला. अब बच्चों को अच्छे स्कूल में भेज रही."

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राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू संबलपुरी साड़ी पहनी हुई, बांग्लादेश की राष्ट्रपति खालिदा जिया से मुलाकात की (फ़ाइल फोटो: सोशल मिडिया)

रायगढ़ जिले में बुनकर महिलाओं ने छत्तीसगढ़ को नई पहचान दिला दी. ओडिशा की सबसे पसंदीदा 'संबलपुरी साड़ी' (Sambalpuri Saree) अब रायगढ़ जिले में बन रही. इन साड़ियों के निर्माण से रायगढ़ को अलग जगह मिली, वहीं इस इलाके के गांव की महिलाओं को नया रोजगार मिला. 

इन खूबसूरत साड़ियों ने गरीब महिलाओं की ज़िंदगी को भी खूबसूरत बना दिया. आजीविका मिशन बिहान के रीपा (RIPA) प्रोजेक्ट में टरडा पंचायत में यूनिट लगाई गई. 

रीपा (Rural Industrial Park) योजना में टरडा (Tarda) पंचायत में हेंडलूम यूनिट (Hand Loom) लगाई गई. आजीविका मिशन बिहान (Ajeevika Mission Bihan) से जुड़े समूह की महिलाओं को नया रोजगार मिल गया. NRLM की एरिया कोर्डिनेटर (Area Coordinator) जानकी साहू बताती है- "यहां गौठान (Gauthan) में शेड बना कर संबलपुरी साड़ी निर्माण यूनिट शुरू की. इसमें आसपास के 7 गांव की समूह से 22 महिलाओं को शुरू में काम दिया गया. यहां ओडिशा (Odisha) के सोनपुर जिले के दो मास्टर ट्रेनर (Master Trainer) और उनके सहयोगी  महिला बुनकरों (Weavers) को रोज़ ट्रेनिंग दे रहे. इन्हें ट्रेनिंग (Training) के दौरान भी ढाई सौ रुपए हर रोज दिए गए. आने वाले दिनों में यहां और अधिक बुनकर महिलाओं को रोजगार दिया जाएगा. केवल दो महीने में ही साड़ियों की डिमांड बढ़ गई. यह यूनिट 'नव स्पर्श फाउंडेशन' के सहयोग से चलाया जा रही है." 

एडवांस टेक्नोलॉजी से बना रहे साड़ी 

यूनिट में अधिक साड़ियां बनाने के मकसद से एडवांस टेक्नोलॉजी का उपयोग शुरू किया. एरिया कोर्डिनेटर जानकी साहू आगे बताती है -" 25 मार्च को इस यूनिट की शुरुआत की गई.पिछले अप्रैल और मई महीने में ही सैंपल के लिए 140 साड़ी हेंडलूम पर बनाई गई. मुझे ख़ुशी है ये सभी बिक गई. जून महीने में यहां एडवांस जेक्वा मशीन लगाई गई. आने वाले दिनों में समूह की महिला बुनकर अधिक साड़ी बना सकेंगी. पहले साड़ी की कढ़ाई में एक सप्ताह का समय लगता था, इस मशीन से केवल एक या दो दिन में साड़ी तैयार हो जाएगी. शर्ट और सूट एक या दो दिन में 8 से दस जोड़ी तैयार हो जाएंगे. केवल दो महीने में ही एक लाख 45 हजार रुपए की साड़ियां पूरी सेल हो गईं. महिला बुनकरों को 75 हजार रुपए का फायदा हुआ. अभी रायगढ़ के लोकल मार्केट के आलावा सोनपुर जिले में साड़ियां भेज रहे." 

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रीपा की साड़ी यूनिट में समूह सदस्यों को गाइड करती हुईं AC जानकी साहू (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)  

चटख रंग और ओडिशा संस्कृति की झलक 

देशभर में हेंडलूम की साड़ियों की अलग-अलग पहचान है. इन सबसे अलग संबलपुरी साड़ी में चटख रंग ही उसका आकर्षण है. साड़ी में ओडिशा की संस्कृति और पहचान दिखाई जाती है. फाउंडेशन के नीलेश महाना बताते हैं -"कॉटन की साड़ी और दूसरे कपड़े सोनपुर जिले से मंगाए जा रहे. इसमें चटख रंगों का खास इस्तेमाल किया जाता है. ये नॉन-केमिकल होते हैं. इस साड़ी पर ओडिशा का प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर का चिन्ह, जगन्नाथपुरी मंदिर, अशोक चक्र, माधुमा गांव में बहने वाली नदी की सुंदर मछलियों की आकृति भी धागे से उकेरी जाती है." अभी लगातार साड़ियां बनाई जा रहीं हैं. 

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 संबलपुरी साड़ी जिस पर ओडिशा की संस्कृति को कढ़ाई किया  (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)  

75 हजार रुपए कीमत तक साड़ी ! 

सामान्य साड़ियां 300 रुपए से 3000 रुपए तक की कीमत में मिल जाती है. लेकिन कशीदाकारीऔर हेंडलूम पर मेहनत से तैयार इस साड़ी की सबसे कम कीमत ही 3000 रुपए होती है. रायगढ़ के जिला मिशन प्रबंधक प्रवीण त्रिपाठी कहते हैं -" यह जिले के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. जिले की सीमा ओडिशा राज्य  से लगी हुई है. इसलिए संबलपुरी साड़ी का प्लान बनाया. लोकल शहर और आसपास के शहरों में यहीं की बनी साड़ी की डिमांड बन गई. अभी धागा भी इसी यूनिट में बनाने की योजना है. कॉटन कपड़े पर बनी साड़ियों की कीमत 3000 रुपए से शुरू होती है, जो 15 हजार रुपए तक की मिलती हैं. सिल्क कपड़े पर बनी यही साड़ी 45 हजार रुपए कीमत से 75 हजार रुपए कीमत में तैयार होती है."  कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा और जिला पंचायत सीईओ जितेंद्र यादव ने लगातार    इस प्रोजेक्ट को शुरू करवाने के बाद समूह सदस्यों को ट्रेनिंग और उनका हौसला बढ़ाने के लिए उनसे मुलकात की. अधिकारियों ने आश्वस्त किया कि ट्रेनिंग प्रोग्राम और सुविधाओं में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी. अधिकारी महिला बुनकरों की सुविधा के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी पर जोर दे रहे.        

राष्ट्रपति मुर्मू की पसंद में शामिल !

 ‘संबलपुरी साड़ी’ की सादगी और आकर्षण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि काई बड़े मौकों पर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को संबलपुरी साड़ी पहने हुए देखा गया. बंग्लादेश (Bangladesh)  की राष्ट्रपति खालिदा जिया (President Khaleda Zia) से ख़ास मीटिंग में भी मुर्मू को संबलपुरी साड़ी पहने देखा गया. यही नहीं इस बार 2022 -2023 के लोकसभा में बजट पेश करते समय वित्त मंत्री (Finance Minister ) निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) भी लाल रंग की ख़ास संबलपुरी साड़ी पहनी दिखाई दीं. ओडिशा की रहने वाली कमलजीत कौर मोहंती कहती हैं -" संबलपुरी साड़ी स्टेटस के साथ सादगी और प्रभावी पर्स्नाल्टी (Impressive Personality) को दिखाता है. यह महिलाओं की पहली पसंद में शामिल है. ओडिशा के बाहर भी शो रूम में अब यह साड़ी उपलब्ध हो जाती है. यह हमारे ओडिशा की पहचान और शान है. ख़ास मौकों पर इसे पहना जाता है."     

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