बचपन के सपने अनमोल होते हैं, जो हमारे मासूम दिलों में बसे रहते हैं. वे सपने होते हैं जो हम खुली आंखों से देखते हैं; कभी उड़ने का, कभी कुछ बड़ा बनने का, तो कभी परियों की दुनिया में खो जाने का. बचपन के ये सपने हमें बिना किसी सीमा के सोचने की आज़ादी देते हैं.
जब हम बड़े होते हैं, तो यही सपने हमारी inspiration बनते हैं और हमें याद दिलाते हैं कि हम क्या बनना चाहते थे. ऐसा ही एक बचपन का सपना पूरा किया उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahr, Uttar Pradesh) की रहने वाली सलीमा खान (Salima Khan aka Khan Dadi) ने.
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शादी होने से अधूरा रह गया पढ़ने का सपना
हर उम्र में शिक्षा महत्वपूर्ण है. बचपन में पढ़ाई से बुनियादी ज्ञान मिलता है, बड़े होने पर पढ़ाई करियर बनाने में मदद करती है. हमारे लिए शिक्षा नए कौशल सीखने और आत्मनिर्भर बनने का जरिया है, वहीं बुजुर्गों के लिए यह मानसिक सक्रियता बनाए रखती है और नए अनुभवों से जोड़े रखती है.
सलीमा खान (Salima Khan aka Khan Dadi) ने 92 साल की उम्र में पढ़ना और लिखना सीखना शुरू किया है. उन्होनें 14 साल की उम्र में शादी कर ली थी जिस वजह से उनका बचपन में पढ़ने-लिखने का सपना केवल एक सपना ही रह गया था. आज, वह उस सपने को साकार करने के लिए छोटे बच्चों के साथ क्लास में बैठकर उन्हीं की तरह पढ़ाई कर रही हैं और साक्षर बन रहीं हैं.
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शिक्षा की दिशा में कदम
सलीमा खान (Salima Khan aka Khan Dadi) बताती हैं कि,
"मुझे पढ़ना अच्छा लगता है... मैं अब स्कूल जाती हूं. पहले मेरे पोते मुझसे ज़्यादा पैसे ले जाते थे क्यूंकि मुझे गिनती नहीं आती थी पर अब मैं नोटों की गिनती भी कर सकती हूं. मैं अपना नाम साइन कर सकती हूं. यह महत्वपूर्ण है."
उनके स्कूल जाने के इस सपने ने उनके गांव की 25 अन्य महिलाओं को भी कक्षा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है. इससे यह तो कहा जा सकता है कि शिक्षा की कोई उम्र नहीं होती और यह कभी भी शुरू की जा सकती है. महिलाओं का इस तरह से शिक्षा की ओर कदम बढ़ाना एक सशक्तिकरण का प्रतीक है.
सलीमा खान (Salima Khan aka Khan Dadi) के लिए कक्षा में बैठना और अपने से करीब 80 साल छोटे छात्रों के साथ पढ़ाई करना कोई छोटी बात नहीं है. यह उनके साहस और लगन का प्रमाण है. उनकी यह नई शुरुआत न केवल उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान को बढ़ावा देती है, बल्कि यह उनके पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गई है.
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