फलों की मिठास लोगों तक पहुंचाकर फातिमा बनी लखपति

खारिजी ग्रामीण आजीविका मिशन SHGs को  वित्तीय सहायता देता है. मिशन द्वारा उन्हें रेकरिंग फंड के तौर पर चालिश हज़ार रूपए और 1,40,000 रूपए का सामुदायिक निवेश फंड मिलता है.

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हेमा वाजपेयी
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Image Credits : Voice Of Ladakh

सेल्फ हेल्प ग्रुप्स से जुड़ी महिलाएं आत्मनिर्भरता की नई उचाईयों को छू कर, समाज में खुद की पहचान बना कर अपनी अलग छवि को दर्शा रहीं है. SHG Women साहस, संघर्ष और समर्पण से भरी है. ऐसी ही कहानी है स्वयं सहायता समूह से जुड़ी लद्दाख (Ladakh) कारगिल (Kargil) जिले के लाटू गांव (Latoo Village) में रहने वाली फातिमा बानू (Fatima Banu) की. उन्हें  उनके सफल उद्यम के लिए "लखपति दीदी" (Lakhpati didi) के ख़िताब से नवाजा गया. 

 समूह से जुड़कर शुरू किया व्यवसाय

समूह में जुड़ने से पहले फातिमा और अन्य महिलाओं पशु पालन और खुद के इस्तेमाल के लिए सब्जियां उगाना जैसे काम कर रहीं थी, पर इससे उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं हो रहा था. वह अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए वह अपने परिवार पर निर्भर थी. इसी निर्भता को दूर करने के लिए समूह की महिलाओं ने self help group बनाया. पहले हर महीने सौ रूपए जमा करना शुरू किया. कुछ समय बाद राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (National Rural Livelihood Mission, NRLM) से उन्हें पंद्रह हज़ार रूपए का CLF लोन मिला. लोन की मदद से समूह की महिलाओं ने मुर्गे पालन का व्यवसाय शरू किया. मुर्गे पालन में आ रहीं दिकत्तों के कारण, उन्होंने व्यवसाय को कृषि में बदल दिया. समूह को दो भागों में बांटा गया, कुछ महिलाएं कृषि गतिविधियां संभालने लगी और कुछ दुकान चलाने लगी.  

फमिता रोज सुबह जल्दी उठकर घर के काम और खेतों से उपज इकठ्ठा कर, 8 बजे तक शहर पहुंच जाती और शाम 6 बजे तक उन्हें बेचतीं थी. फातिमा को कृषि कार्य करने से उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिली, और यह सब मुमकिन हुआ उनके लगातार प्रयास करने के कारण. अब वह अपनी जरूरतों पर खर्च खुद करती है. फातिमा को परिवार का साथ मिला जिससे वह बिना पीछे मुड़े अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ती गई. 

शुरू की अंजीर और चिनार की खेती 

फातिमा कृषि खेती के साथ-साथ गार्डन का काम भी देख रहीं है. उन्होंने कारगिल में प्राकृतिक रूप से न उगने वाले फलों को भी लगा रहीं, जो मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के ग्वालियर (Gwalior) और कश्मीर (Kashmir) से लेकर आई है. जिसमें फूल, अंजीर (Fig) के पौधे, चिनार (Poplar) के पेड़ शामिल है. उन्हें लद्दाख के मौसमी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी. लद्दाख में पानी की कमी के कारण फलों की खेती करना चुनौती का काम है, फातिमा नदी से पानी का टैंक भरकर खेतों में हाथ से लेकर जाती थी. जल की कमी और सूखे के समय, कम पानी की आवश्यकता वाले फलों की खेती करती थी. 

फातिमा के अलावा भी कुछ महिलाएं खुबानी बेचकर या तो सीमेंट की दुकान चलाकर "लखपति दीदी " बन चुकी है. कार्गिल ब्लॉक में कुल 68 सेल्फ हेल्प ग्रुप कम कर रहे है. कार्गिल के पांच ब्लॉक में 443 पंजीकृत SHG है , जो अलग-अलग व्यापर जैसे सेब उत्पादन, खुबानी संसाधन, बेकरी उत्पाद, रेशम बनान, अचार बनाना, सेनेटरी पैड उत्पादन जैसे कार्यो में लगकर अपनी एक अलग पहचान बना रहीं है.  

समूह से मिल रहा फंड

खारिजी ग्रामीण आजीविका मिशन (Khariji Rural Livelihood Mission) SHGs को  वित्तीय सहायता देता है. मिशन द्वारा उन्हें रेकरिंग फंड के तौर पर चालिश हज़ार रूपए और 1,40,000 रूपए का सामुदायिक निवेश फंड मिलता है. कुछ Self Help Groups अपनी व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए हर महीने 100 रूपए जमा करते है. 

लद्दाख ग्रामीण आजीविका मिशन (Ladakh Rural Livelihood Mission, LRLM ) ने महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने, आत्मविश्वास बढ़ाने और कम्युनिकेशन स्किल को बढ़ाने के निरंतर प्रयास कर रही है. सेल्फ हेल्प ग्रुप्स की क्षमता को बढ़ाने के लिए लद्दाख ग्रामीण आजीविका मिशन ने गांव में मोबलाइजर्स भी बनाया, जो समूह के लोगों को सही समय पर सलाह और सहायता देंगे और साथ ही कैसे समूह को बनाना और कोर्डिनेट करना है इसकी जानकारी भी देंगे. समूह से जुडी महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी जाती है.

लेटेस्ट टेक्नोलॉजीज का उपयोग

SHG वीमेन अलग-अलग उत्पाद बनाकर, अपने जीवन में बदलाव ला रही है. ACD के उभरते बाजार के बाहर इन उत्पादों की पैकेजिंग, लेबलिंग, ब्रांडिंग को और बेहतर बनाने की आवश्यकता है. स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूहों (Swayam Sahayata Samuh) की महिलाएं अलग कच्चे माल और उत्पादों के साथ काम करती है, जैसे अमलताश, मशरुम (Mushroom), रेशमी सामग्री, इन्ही उत्पादों की मांग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर है, पर अच्छी पैकेजिंग और विपणन में कमी होने के कारण, इन उत्पादों को अड़चनों का सामान करना पड़ता है. साथ ही मशीनरी की कमी के कारण भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. SHGs को उत्पादन प्रक्रिया को मॉडर्नाइज करने और लेटेस्ट टेक्नोलॉजीज का उपयोग करने के लिए और फाइनेंसियल सहायता की जरुरत है. 

फातिमा और कारगिल के सफल SHGs की महिलाओं की कहानी हमारे लिए उदाहरण है, जो महिलाओं को स्वावलंबी बनाने, आर्थिक सहायता देने और सामाजिक स्थिति को सुधारने में उद्यमिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.  ये सफलता की कहानियां महिलाओं की शक्ति और संघर्ष को दर्शाती है. SHG महिलाओं के सामूहिक विकास और उद्यमिता की प्रेरणा देते है. समूह की महिलाएं सामूहिक नेतृत्व, वित्तीय योग्यता, बाजार ज्ञान और पेशेवर नेटवर्किंग के जरिए आपस में सहयोग कर, प्रगति की ओर बढ़ रहीं है. 

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