'लेडी टार्ज़न' जमुना टुडू
एक लेडी, जो अपनी पूरी फ़ौज तैयार कर चुकी है और ठान चुकी है कि अब अपने आस पास के जंगलों को काटने नहीं देगी. अपनी पूरी टीम के साथ, तीर धनुष, और डंडों से लैस इस महिला को आज लोग लेडी टार्ज़न कहकर बुलाते है. सुनकर लगता है न कि किसी फिल्म का कैरेक्टर है. लेकिन इस महिला का नाम है जमुना टुडू, और झारखंड के जंगलों को यह महिला करीब 25 साल से बचा रही है. शुरुआत की थी अकेले, वन वुमन आर्मी बनकर, लेकिन आज पूरी की पूरी आर्मी तैयार कर चुकी है जमुना.
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जमुना टुडू के बुलंद हौलसों से वन माफिया भी घबराते है
करीब 25 साल पहले छह महिलाओं से जंगल बचाने की शुरुआत करने वाली जमुना टुडू ने आज छह हजार महिलाओं की एक बड़ी फ़ौज तैयार कर दी है, जो आज भी सुबह-शाम अपने आसपास के जंगलों की देखरेख करने जाती हैं.
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हालांकि सब कुछ इतना आसान नहीं था जितना अब दिखता है. परेशानियां बहुत आई जमुना को, जब उन्होंने यह तय किया कि वे जंगलों को नहीं कटने देंगी. कभी इन्हें वन माफियाओं ने जान से मारने की धमकी दी तो कभी जानलेवा हमला किया, लेकिन जमुना ने आजतक अपने कर्त्तव्य से पीछे मुड़कर नहीं देखा.
ऐसे की शुरुआत
लेकिन आज एक छोटे से गाँव से जंगल बचाने का शुरू हुआ जमुना का कारवाँ आज पूरे देश के लिए उदाहरण बना हुआ है. वर्ष 1998 से लेकर 2002 तक जमुना खामोशी से जंगल बचाने का काम गिनी चुनी कुछ महिलाओं के साथ अपने गाँव में करती रहीं. जब इनके काम के बारे में 2003 में वन विभाग के उस समय के रेंजर एके सिंह को लगी तो उन्होंने इन्हें पूरा सहयोग किया.
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जमुना को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिले इसके लिए रेंजर ने 'वन सुरक्षा समिति' का रजिस्ट्रेशन कराकर इन महिलाओं की एक समिति तैयार कर दी. 15 महिला और 15 पुरुषों से बनी इस पहली समिति की जमुना अध्यक्ष बनी. समिति बनने के बाद जमुना अपने गाँव से बाहर दूसरे गाँव में जाने लगी. धीरे-धीरे इन्होने पूर्वी सिंहभूम जिले में 400 समितियाँ वन सुरक्षा समिति के नाम से बनाकर तैयार कर दीं. आज भी हर समिति से हर दिन चार पाँच महिलाएँ अपने आसपास के जंगल की निगरानी करने जाती हैं.
स्वयं सहायता समूह कर रहे वन सुरक्षा
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इनके निर्भीक और अथक प्रयासों से जंगल बचाने की इस मुहिम के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने साल 2019 में इन्हें 'पद्मश्री' से भी सम्मानित किया और साल 2016 में इन्हें देश की 100 प्रतिभाशाली महिलाओं में शामिल किया गया. जमुना टुडू प्रेरणा है हर उस Self Help Group की महिला के लिए जो नेचर को बचाने के लिए हर प्रयास कर रही है. भारत में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं भी नेचर फ्रेंडली काम कर एक मिसाल कायम कर रही है. इन महिलाओं से हर देशवासी को सीखना चाहिए और याद रखना चाहिए- "अगर पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो सब खुश रहेंगे."