"बचपन में जब अपने कैबिनेट में मुझे मेरी गुड़िया दिखती थी, तो अलग ही खुशी होती थी, ऐसा लगता था कि बस इन्हीं के साथ खेलती रहूं, इन जैसी सुंदर और प्यारी बन जाऊ." कुछ अलग सा महसूस होता था, उन बार्बीज़ को देखकर, उनके साथ खेलकर. ऐसी ही कुछ प्यारी सी बार्बीज़ बना रही है गुजरात की रंजनबेन भट्ट. लेकिन ये नॉर्मल बार्बीज़ नही है. तो ऐसा क्या अलग है इनमें?
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भारतीय स्टाइल की डॉल्स बनाती रंजन बेन भट्ट
ये बार्बीज़ है, भारतीय स्टाइल की! हर राज्य और कल्चर के हिसाब से अलग बार्बी बना रही है रंजन बेन भट्ट और उनकी ट्रेन की हुई महिलाएं. नॉर्मल बार्बीज़ से तो हर कोई खेलता है, लेकिन इन भारतीय बार्बीज़ को देखकर अपने कल्चर और देश से और प्यार हो जाएगा आपको! रंजनबेन बेटे अपने हरिनभाई के साथ अपनी पहल कलाश्री फाउंडेशन, के तहत हर महीने 500 से अधिक ईको-फ्रेंडली गुड़ियां बनाकर बेच रहीं हैं. सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि 18 देशों में इनकी डॉल्स बिक रही है.
रंजन बेन बहुत सी महिलाओं तक अपनी इस कला को पहुंचा रही है. वह डॉल बनाने, सिलाई और एम्ब्रोइडरी की ट्रेंनिग के साथ इन महिलाओं को रोजगार भी दे रही है. अपने बेटे के साथ मिलकर वह इस काम को आज दुनिया तक पहुंचा रहीं है.
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गुजरात के सुरेंद्र नगर से की बिज़नेस की शुरुआत
रंजन बेन ने 1960 में सुरेंद्र नगर के वसधावन में रहता था. वहां गुजरात की जानी-मानी समाज सेविका अरुणाबेन देसाई ने विकास विद्यालय नाम से एक संस्था शुरू की, ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें. इसी संस्था में रंजन बेन ने एक के बाद एक तीन कोर्स करे और आज वह इन कोर्स की बदौलत अपना बिज़नेस खड़ा कर चुकी है. उनकी वर्कशॉप 2000 वर्ग फुट में फैली हुई है, जिसमें वह महिलाओं को ट्रेनिंग देती है.
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महिलाओं का जीवन सुधार रही है रंजन बेन भट्ट
ये गुड़ियां पूरी तरह से हैंडमेड होती हैं, जिसमें अलग-अलग डिज़ाइन तैयार किए जाते हैं. 18 से अधिक डॉल्स के पैटर्न्स हैं रंजन बेन के कलेक्शन में जिसमें राधा-कृष्ण, भारतीय पारंपरिक वस्त्र, राज्यों के किसान और भारतीय नृत्य से जुड़ी 300 से ज़्यादा मॉडल हैं. रंजन बेन आज बहुत सी महिलाओं की ज़िन्दगी सवार रही है. वह इन उम्र में भी पुरे जोश और जूनून के साथ काम कर रही है. देश के लिए एक गर्व है, रंजन बेन. वह साबित कर रहीं है कि अगर एक महिला चाहे तो कुछ भी कर सकती है. उम्र और हालात किसी के आगे बढ़ने बे बीच कभी भी बढ़ा नहीं बन सकते.