जब भी हम इतिहास के पन्नों को पलटते हैं, हमें कुछ ऐसी महिलाओं की कहानियां मिलती हैं जिन्होंने अपने समय में अपनी शक्ति, समझ और हिम्मत से सबको प्रभावित किया. ऐसी ही महिलाओं में एक थीं भोपाल की शाहजहां बेग़म.
शाहजहां बेग़म (Shah Jahan Begum - The Nawab Begum of Bhopal) की कहानी किसी रानी की आम कहानी नहीं है. यह कहानी है एक ऐसी महिला की, जिसने अपने राज्य को सही दिशा देने और आधुनिकता से परिचय करवाने के साथ ही अपनी संस्कृति और परंपराओं को भी सहेज कर रखा.
मां से मिली शासन की सीख
शाहजहां बेग़म का जन्म 1838 में भोपाल में हुआ था. उनकी मां सिकंदर बेग़म (नवाब बेग़म), भोपाल की रानी थीं, और पिता जहांगीर मोहम्मद खान थे. शाहजहां बेग़म ने अपने प्रारंभिक जीवन में ही अपनी माता से बहुत कुछ सीखा. उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा.
बचपन से ही उन्हें उर्दू, फ़ारसी, अरबी और अंग्रेज़ी की शिक्षा दी गई थी. इन भाषाओं के ज्ञान ने उन्हें साहित्य और कला के प्रति गहरी समझ दी. इसके साथ ही छोटी सी उम्र में ही उन्होंने प्रशासनिक कामकाज में रुचि दिखाना भी शुरू कर दिया था.
यह भी पढ़ें - ग़ज़लों की मल्लिका थी बेग़म अख़्तर
अपनी मां सिकंदर बेग़म की मृत्यु के बाद, शाहजहां बेग़म भोपाल की नवाब बेग़म बनीं. उनके शासनकाल में, उन्होंने ना केवल राज्य के प्रशासन को मजबूती दी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.
उस समय समाज में महिलाओं की स्थिति अत्यंत जटिल थी, लेकिन शाहजहां बेग़म ने इन चुनौतियों का सामना किया और एक कुशल शासक के रूप में अपनी पहचान बनाई. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और कई स्कूल और कॉलेज खुलवाए. उनकी सोच और दृष्टिकोण उनके समय से काफी आगे थे, और इसी कारण से उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उनके द्वारा स्थापित 'सिकंदरिया गर्ल्स स्कूल' इसका जीवंत उदाहरण है.
Image Credits - Wikipedia
साहित्य और कला से था अनोखा प्रेम
शाहजहां बेग़म को साहित्य और कला से बहुत प्रेम था. उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और उनका लेखन हमेशा से ही महिलाओं की स्थिति और उनके अधिकारों पर केंद्रित रहा. उनकी लेखनी में उनकी सोच और उनकी संवेदनशीलता साफ झलकती है. वे एक सशक्त कवयित्री थीं और उनके काव्य में उनकी भावनाएं और उनके विचार बखूबी प्रकट होते थे.
उन्होंने उर्दू में कई किताबें लिखीं और उनकी रचनाएं आज भी साहित्य प्रेमियों द्वारा पढ़ी जाती हैं. उनकी आत्मकथा 'ताज-उल-इक़बाल' एक महत्वपूर्ण साहित्यिक कृति है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन और शासनकाल का विस्तृत वर्णन किया है. उन्होंने अन्य लेखकों और कवियों को भी प्रोत्साहित किया. उनके दरबार में अनेक कवि और साहित्यकार आते थे, जिनसे वे प्रेरणा और ज्ञान प्राप्त करती थीं.
शाहजहां बेग़म ने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण करवाया. इन इमारतों में उनका सबसे प्रमुख योगदान "ताज-उल-मस्जिद" का निर्माण है, जो आज भी भोपाल की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है. इसके अलावा, उन्होंने कई पुस्तकालय, अस्पताल और अन्य जनसेवाएं भी स्थापित कीं, जिससे आम जनता को बहुत लाभ हुआ.
यह भी पढ़ें - मुग़ल सल्तनत को रोशन करती रोशनआरा बेग़म
नारी शक्ति की प्रतीक
शाहजहां बेग़म का जीवन और उनका कार्य हमें सिखाता है कि एक महिला की शक्ति असीमित होती है. उन्होंने अपने समय में जिस साहस, धैर्य और दृंढ़ता का परिचय दिया, वह आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनके जीवन की कहानी हमें बताती है कि समाज में महिलाओं की भूमिका हमेशा से ही कितनी महत्वपूर्ण रही है.
उनका साहस, उनकी बुद्धिमत्ता और उनकी संवेदनशीलता ने उन्हें एक ऐसी महिला के रूप में स्थापित किया, जिन्होंने अपने समय में समाज में एक नई दिशा दी. उनका योगदान हमें हमेशा यह प्रेरणा देता रहेगा कि नारी का सशक्तिकरण ही समाज के विकास का आधार है.
यह भी पढ़ें - क्यों हार का ठीकरा Cricketers की पत्नियों के सिर फोड़ा जाता है!!!