Chhindwara जिले के कुर्सीढाना गांव में रहने वाली माहेश्वरी उइके की यह कहानी मिसाल है. सिर्फ पांचवी तक पढ़ी महेश्वरी के पास न इनकम का साधन था न कोई बड़ी मज़दूरी. गांव में ही self help group की सदस्य बनी और नई ज़िंदगी शुरू की.
रासायनिक को छोड़ जैविक अपना कर बनी मिसाल
Chhindwara जिले कुर्सीढाना गांव की महेश्वरी उइके ने अपने खेती से रासायनिक खाद छोड़ जैविक खाद अपनाना शुरू किया.कुछ साल में ही फसलों की लगत कम हो गई. महेश्वरी बताती है-"ज्यादा पढ़ नहीं सकी. शुरू में मैं अपनी ढाई एकड़ ज़मीन में रासायनिक खेती करती.लागत 20 से 30 हज़ार रुपए आती. जय माता स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर ट्रेनिंग ली. जैविक खाद डालना शुरू किया. फसलों की लागत एकदम कम हुई.फायदा बढ़ गया."
Ajeevika Mission के तामिया Block Manager (BM) Devendra Barde बताते हैं-"हमने महेश्वरी उइके को NREPT Project के तहत ट्रेनिंग दिलवाई. उइके अब जैविक खेती करने के साथ ही वह जैविक खाद एवं दवाइयां बनाने का कार्य भी कर रही.इसको बेचने से अलग से आय भी होने लगी."
Organic Field में ट्रेनर बन दूसरे SHG को दे रही ट्रेनिंग ichar
छिंदवाड़ा जिले के आदिवासी और गरीब परिवारों की महिलाओं को समूह से जोड़कर Organic Farming के लिए promote किया जा रहा.
District Project Manager (DPM) Rekha Parihar कहती है -"मुझे ख़ुशी है कि केंचुआ खाद, जीवामृत काढ़ा बनाना सीखने के बाद महेश्वरी उइके को दूसरे समूह की महिला किसान दीदियों को भी ट्रेनिंग देने भेज रहे. जिससे रासायनिक खाद के नुकसान से बचें और फसलों में लागत भी कम हो."
ऑर्गेनिक खेती को अपना कर शुरू की खेती (Image:Ravivar Vichar)
Village Organization ज्योति ग्राम संगठन है, जबकि संकुल स्तरीय संगठन नारी एकता संकुल स्तरीय संघ देलाखारी से भी महेश्वरी उइके जुड़ी है.
DAY State Rural Livelihood Mission के SPM Manish Singh Pawar ने बताया-"पूरे प्रदेश में self help group की महिलाओं को Organic Farming के लिए promote किया जा रहा जिससे कमाई बढ़े. फसलों के उत्पादन की लागत कम आए."