बंजर ज़िंदगी से हरी-भरी हुई ज़िंदगी
बुरहानपुर (Burhanpur) जिले के बसाड़ (Basad) गांव में रहने वाली महिलाओं की कहानी आज आदर्श है. कभी घर के कामकाज में ज़िंदगी के साथ समझौता करने वाली ये महिलाएं आज लाखों का कारोबार कर रहीं. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) से जुड़ने के बाद इनकी बंज़र ज़िंदगी धीरे- धीरे हरी-भरी हो गई. ओम साईं राम समूह (SHG) की अध्यक्ष रजनी ठाकुर कहती है- "आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) ने हमारा समूह बनवाया. 50 हजार रुपए के लोन से शुरुआत की. नर्सरी में बीज लगा कर पौधे तैयार किए. तीन साल में कई तरह के पौधे बेच कर लगभग नौ लाख रुपए का कारोबार किया."
इस नर्सरी को हॉर्टिकल्चर विभाग ने बीज दिए. इससे समूह को मदद मिली.
इसी समूह से जुड़ी उषा वर्मा, कल्पना धोपे और प्रमिला वर्मा सक्रीय तरीके से काम कर रही. प्रमिला वर्मा बताती हैं- "हमने तीन साल में पौधे कई संस्थाओं को बेचे इसके अलावा हमें मनरेगा योजना से भी नियमित पैसा मिल जाता है. हम लोग छह से साथ हजार रुपए महीने काम लेते हैं."
बसाड़ में मेहनत से तैयार नर्सरी (Image Credits: Ravivar Vichar)
महाराष्ट्र में पौधों की बढ़ी डिमांड
इस समूह को खुशियों का ठिकाना तब नहीं रहा जब अपने जिले के अलावा महाराष्ट्र से भी डिमांड आई. समूह की कल्पना धोपे ने बताया- "हम छायादार और फलदार पौधे खुद तैयार करते हैं. ये पौधे 15 से 40 रुपए नाग के हिसाब से बिक जाते हैं. अभी रावेर, नवगांव सहित कई जिलों से डिमांड मिली. जिले की सरकारी संस्थाओं में भी हमने सप्लाई किया."
इस नर्सरी (Nursery) में लगातार मेहनत से कई तरह के पौधे तैयार किए. इनमें नीम, करंज, अमलातस, गुलमोहर, शीशम और फलदार पौधों में आम, मौसंबी, जाम, नींबू शामिल हैं. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) की जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) संतमति खलखो कहती हैं- "जिले में बसाड़ की महिलाओं ने समूह से जुड़ कर योजनाओं का उपयोग किया. मेहनत की. इसका परिणाम है कि ये महिलाएं मनरेगा से भी कमा रहीं और नर्सरी के पौधों का कारोबार का भी लाभ मिलेगा."
बसाड़ में समूह द्वारा तैयार किए पौधे (Image Credits: Ravivar Vichar)
मेहनत और नवाचार का लाभ
बुरहानपुर (Burhanpur) की कलेक्टर (DM) भव्या मित्तल (Bhavya Mittal) कहती हैं - "महिलाएं मेहनत के साथ नवाचार का लाभ ले रहीं. बैंकिंग,नर्सरी, बनाना फाइबर्स आर्टिकल्स और मशरूम की खेती में समूह की महिलाओं को ट्रेनिंग दी. आज ये महिलाएं आत्मनिर्भर हैं. सम्मान की ज़िन्दगी जी रहीं."