इको फ्रेंडली बनाई राखियां
बुरहानपुर के स्वयं सहायता समूह और महिला मंडल की सदस्यों ने मिलकर ये इको फ्रेंडली राखियां बनाई. लगभग 70 महिलाओं ने यह राखियां तैयार की. महिला मंडल की अध्यक्ष और समाजसेवी किरण रायकवार बताती है- "हम सभी सदस्यों ने यह प्लान बनाया. कुछ अलग राखी बनाई जाए. केले के रेशों से हमने डेढ़ गुणा डेढ़ फीट की राखी तैयार की. संभवतः इस साल यह देश की सबसे साइज़ की राखी होगी. ख़ुशी है ये राखी हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्य मंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित दूसरे लोगों को भेज रहे." जिला प्रशासन, पर्यटन विभाग और आजीविका मिशन के समन्वय से यह अभियान चलाया.
समाजसेवी किरण और समूह सदस्यों ने वीडी शर्मा को राखी भेंट की.(Image Credit: Ravivar Vichar)
25 तरह की वैराइटी से बढ़ी डिमांड
इको फ्रेंडली इन राखियों की लगभग 25 तरह की वैराइटी तैयार की. महिला मंडल की सदस्य संध्या कदवाने महिला मंडल की सदस्य ने बताया- "हम 70 महिलाओं ने मिलकर देश की सबसे बड़ी राखियों के साथ 25 वैरायटी में राखियां बनाई. सुंदर दिखने वाली इन राखियों की महाराष्ट्र के शहरों से भी डिमांड आई.ये डिज़ाइन हम सबने मिलकर तैयार की." इन राखियों की सुंदरता के आगे परंपरागत दिखने और बिकने वाली राखियां भी फीकी पड़ गई. इस अभियान में सुधा चौकसे, नीमा पीलिया और सावित्री बत्रा सहित कई महिलाएं शामिल है.
बुरहानपुर में समूह की महिलाएं इको फ्रेंडली राखियां तैयार करते हुए (Image Credit: Ravivar Vichar)
रोजगार के खुले नए रास्ते
इको फ्रेंडली राखियों (eco-friendly rakhi) के निर्माण में स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) की बहुत भूमिका है. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) की जिला परियोजना प्रबंधक संतमति खलखो बताती है- "यह इको फ्रेंडली राखी का अपना महत्व है. इसके लिए शहर की महिला मंडल के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की सदस्यों को ट्रेनिंग दी गई. इस राखी निर्माण में इंवायरमनेंट सपोर्ट है, वहीं महिलाओं को रोजगार भी मिला. घर बैठकर 100 से 200 रुपए रोज़ाना कमा रही और केले के रेशे की इस इलाके में आसानी से मिल जाते हैं." इसके अलावा नगर निगम की असिस्टेंट कमिश्नर ज्योति सिनौरिया के गाइडेंस में शहरी महिला समूह की सदस्यों को भी ट्रेनिंग दी. ट्रेनर के रूप में रायसेन जिले से अनीसा यहां आईं.
समूह सदस्यों द्वारा तैयार की गई सुंदर राखियां (Image Credit: Ravivar Vichar)
केला फाइबर्स को मिली नई पहचान
पिछले कुछ साल तक मध्य प्रदेश के पूर्वी निमाड़ में केले के उत्पादन के बाद प्लांट को काट कर फेंक दिया जाता था. किसानों ने कभी इसकी उपयोगिता को नहीं समझा. धीरे-धीरे केले के ये तने, पत्ते सभी के उपयोग पर काम हुआ. इन दिनों केलों के फाइबर्स को पुरे देश में एक नई पहचान मिल गई. बुरहानपुर कलेक्टर भव्या मित्तल (Bhavya Mittal) कहती है- "ये सही है कि केले के प्रोडक्शन के बाद तने को काट कर फेंक दिया जाता था. आज वही तना रोजगार खासकर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं सहित दूसरे लोगों के लिए रोजगार और कमाई का जरिया बन गया. हम लगातार महिलाओं को ट्रेनिंग की व्यवस्था कर रहे."
बुरहानपुर में केले के रेशों से सैनिटरी पेड, जूलरी, हैंडीक्रॉफ्ट सहित कई आइटम्स बनाए जा रहे. इसके अलावा अब राखियों को बनाने से नई उपलब्धि मिल गई.