'मिल्किंग विलेज' की पहचान से चमका 'बोलबोला'

जिस गांव में अब तक परिवार के बड़े सदस्यों की तो बात दूर की वहां मासूमों को भी पीने के लिए दूध नसीब नहीं होता था, वहां 'दूध की नदी' बहा दी. आदिवासी महिलाओं ने अपनी मेहनत के बल पर इस गांव को 'मिल्किंग विलेज' की नई पहचान दी. 

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मावा बोलबाला डेयरी संचालकों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खुद बात की (Image Credit: Ravivar Vichar)

'मिल्किंग विलेज' की पहचान से चमका 'बोलबोला' 

छत्तीसगढ़ (Chhattisgad) के जंगल (Forest) में बसे एक गांव में कहावत सही साबित हो गई. जिस गांव में अब तक परिवार के बड़े सदस्यों की तो बात दूर की वहां मासूमों को भी पीने के लिए दूध नसीब नहीं होता था, वहां 'दूध की नदी' बहा दी. आदिवासी महिलाओं ने अपनी मेहनत के बल पर इस गांव को 'मिल्किंग विलेज' (Milking Village) की नई पहचान दी. अब इस गांव में  महिलाओं के साथ उनके परिवार के सदस्य भी काम में हाथ  बंटा रहे. कोंडागांव (Kondagaon) जिले के बोलबोला (Bolbala) गांव में आदिवासी परिवार अब गौपालक (Cow herder) बन गए. यहां आदिवासी परिवारों की आर्थिक हालत इतनी ख़राब थी कि दुधारू पशु पालने में सक्षम नहीं थे. 

तगारियां नहीं हाथों में दूध की टंकियां 

बोलबोला (Bolbala) गांव में डेयरी सेंटर के अलावा प्रोसेसिंग यूनिट भी यहां बन गई.केवल सवा दो सौ परिवारों की बसाहट के इस गांव में महिलाएं मजदूरी कर परिवार की गुजर-बसर करती थीं. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) ने यहां महिलाओं को समूह से जोड़ा. इस गांव के छह समूह (SHG) की महिला सदस्य इस योजना से जुड़ीं. गांव की जैमिनी कोयाम, कोयली मांडवी बताती है- "हम तो रोज़ मनरेगा में मजदूरी करने जाते थे. पूरी मजदूरी इतनी कम थी कि घर भी अच्छे से नहीं चलता था. फिर गायें मिली. हमको गाय पालने से लगा कर दूध दुहने तक सब सिखाया. हमारी कमाई बढ़ गई. सम्मान की ज़िंदगी जीने लगे." असिस्टेंट सर्जन वेटेनरी ( Asistent Veternary Surgen) डॉ. ढालेश्वरी बताती हैं- "यहां सभी मवेशी स्वस्थ हैं.समय-समय पर इनका स्वास्थ्य परिक्षण किया जाता है. टीकाकरण सहित पूरी मॉनिटरिंग की जा रही."

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दूध की टंकियां लेकर खड़ी महिलाएं  (Image Credit :Ravivar Vichar)

दूध का रिकॉर्ड उत्पादन

इस मिशन की नोडल ऑफिसर और पशु चिकित्सा अधिकारी ( Veternary Officer) डॉ.नीता मिश्रा कहती है- "लगातार प्रयासों के बाद इस गांव में यह मिशन सफल रहा. यहां सदस्यों ने मेहनत कर दूध का रिकॉर्ड उत्पादन कर 32 गायों से साढ़े तीन सौ लीटर तक दूध का उत्पादन किया. आदिवासी योजना, पशुधन विकास विभाग, केंद्रीय विज्ञान केंद्र और मनरेगा जैसे विभाग और 'रुर्बन मिशन ' (Rurban Mission)से इस गांव की काया पलट दी. डेयरी विकास योजना के माध्यम से पिछले साल जुलाई में गांव के 16 लोगों का सिलेक्शन किया. इसमें स्वयं सहायता समूह की सदस्य और उनके परिवारों को मौका दिया गया." 

कमाई के खोले कई रास्ते 

इस गांव में केवल मिल्क प्रोडक्शन ही नहीं बल्कि ग्रामीण महिलाओं को कई अवसर दिए और कमाई के नए रास्ते खोल दिए. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission)के जिला मिशन प्रबंधक (DMM) विनय सिंह कहते हैं- "गाय पालन के अलावा गौठान शेड में मुर्गी पालन, वर्मी कंपोज़्ड खाद का काम भी मिल गया. इसी एरिया में गायों के लिए हरा चारा भी बोया, जिससे गायों को बेहतर आहार मिले. ख़ास बात पशु चिकित्सा विभाग के ख़ास सहयोग से गांव के कुछ रोजगारों को दुर्ग के वेटेनरी कॉलेज भी ट्रेनिंग के लिए भेजा. इन युवा डेयरी प्रोसेसिंग यूनिट (Dairy Processing Unit) के काम को सीखा. इन समूह सदस्यों को लगभग 25 से 28 हजार रुपए महीने तक कमाई हुई."

ओडिशा मॉडल पर फोकस 

यहां माइक्रो प्रोसेसिंग यूनिट भी लगा दी. इस यूनिट में मावा (खोया), पनीर, दही, छाछ और घी प्रोडक्शन होगा. डॉ.नीता बताती है -"हमारी टीम ओडिशा भी गई. वहां संचालित डेयरी प्रोजेक्ट यूनिट को समझा. शासन का मकसद ओडिशा के मॉडल को अपनाया जाए. इससे महिलाओं को इस प्रोजेक्ट से और आर्थिक लाभ मिलेगा. डिप्टी डायरेक्टर शिशिरकांत पांडेय के ख़ास प्रयासों से यह यूनिट सेट हुई. शुरू में राज्य पोषित डेयरी और आदिवासी परियोजना से साहीवाल जर्सी क्रॉस ब्रीड दुधारू गाय उपलब्ध कराई."
गायों के पालन के बाद गोबर कलेक्शन से भी आमदानी मिलने लगी. आजीविका मिशन के ब्लॉक प्रोजेक्ट मैनेजर (BPM) रेनु सिंह बताते है- "गोबर को दो रुपए किलो में बेच कर नहीं समूह को अलग से आमदनी हुई. इसके अलावा चारा उत्पादन, मुर्गी पालन और वर्मी कंपोज़्ड तैयार करने के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा."

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गौठान शेड में बंधी गायों का अवलोकन करते अधिकारी, जनप्रतिनिधि (Image Credit :Ravivar Vichar)

मिल्क इफेक्ट: घटी कुपोषण दर 

जिस गांव में मिल्क कल्चर नहीं था, अब दूध का उपयोग किया जाने लगा. सरपंच (Sarpanch)रतनुराम कोयाम कहते हैं- "गायों ने गांव की तस्वीर बदल दी. बच्चों को दूध पिलाने लगे जिससे कमजोर बच्चों की हालत अच्छी हो गई. इस गांव में ही हम लोग गोबर के बाद गौ मूत्र और खाद बनाने बनाने का काम शुरू करेंगे." बोलबोला गांव में प्रोजेक्ट सफल होने के कारण पास के ही गांव बंजोड़ा में भी यह प्रोजेक्ट शुरू होगा. जिला पंचायत सीईओ (CEO) प्रेमप्रकाश शर्मा और कलेक्टर (DM) दीपक सोनी ने इस प्रोजेक्ट को गंभीरता से लिया. लगातार समूह की महिलाओं और साथ जुड़े परिवार के युवाओं का हौसला बढ़ाया.  
डीएमएम सिंह और डॉ.नीता बताते हैं- "इस प्रोजेक्ट को लेकर खुद मुख्यमंत्री (CM)भूपेश बघेल ने यहां यूनिट से तैयार बर्फी मिठाई से मुंह मीठा किया." 

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