UP में घरेलू हिंसा के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाल रही "ग्रीन आर्मी"

कुशियारी महिलाएं जो ज़्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों से आती हैं, उन्होंने ग्रीन आर्मी बनाई. पिछले कुछ वर्षों में वे यूपी के कई गांवों में शराब और नशीली दवाओं की लत को कम करने में कामयाब रहे हैं, जहां वे अब भी सक्रिय हैं.

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मिस्बाह
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वह कौनसी जगह है जहां सुरक्षा, प्यार, और सम्मान मिलने की उम्मीद हो? ज़्यादातर का जवाब शायद घर हो, लेकिन, सबका नहीं. कई महिलाएं अपने ही घर में हिंसा का शिकार हो रही हैं. घरेलू हिंसा न केवल शारीरिक रूप से चोट पहुंचाती, बल्कि मानसिक, आत्मिक और सामाजिक तौर पर भी गहरा असर डालती है (domestic violence harms body, mind and soul). यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन (domestic violence is human rights violation) और महिलाओं की  सुरक्षाऔर सम्मान पर वार है. अक्सर, रिश्ता बचाने के दबाव और समाज के सवालों से बचने के लिए पीड़ित महिलाएं आवाज़ नहीं उठाती. पर जब ये सभी एकजुट होती हैं, तो उनकी शक्ति के आगे सारी रूढ़ियों और सवालों को घुटने टेकने पड़ते हैं. कुछ ऐसा ही उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के जंगल महल गांव में देखने को मिला.

पिछड़े वर्गों की करीब 1,800 महिलाएं बनी हिस्सा 

कुशियारी महिलाएं जो ज़्यादातर दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों से आती हैं, उन्होंने ग्रीन आर्मी बनाई (women's green army fights domestic violence). ग्रीन आर्मी का गठन 2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के पूर्व छात्र रवि मिश्रा (Ravi Mishra) द्वारा गांव में किया गया था. मिशन था समाज के पिछड़े वर्गों की महिलाओं को हिंसा से भरी चार दीवारी से बाहर आने और उत्पीड़न, यौन और घरेलू हिंसा के खिलाफ खड़े होने के लिए सशक्त बनाना. ग्रीन आर्मी (Green Army) में लगभग 1,800 सदस्य हैं. मिश्रा गैर-लाभकारी होप वेलफेयर ट्रस्ट (Hope Welfare Trust) के सह-संस्थापक भी हैं. 

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कई गांवों में शराब और नशे की लत को कम करने में हुईं कामियाब 

ग्रीन आर्मी की महिलाओं और मिश्रा के अनुसार, यह पहल पुरुषों को परामर्श देती है और कभी-कभी "हथियार के रूप में लाठियों" का इस्तेमाल भी करती है. पिछले कुछ वर्षों में वे यूपी के कई गांवों में शराब और नशीली दवाओं की लत को कम करने में कामयाब रहे हैं, जहां वे अब भी सक्रिय हैं. ये महिलाएं सेल्फ डिफेन्स सीखती हैं. आर्थिक रूप से सशक्त बनने के लिए स्लिपर्स बना रही हैं. 

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दहेज़ प्रथा, पिछड़े रीति-रिवाजों, बालिका शिक्षा पर उठा रहीं आवाज़

ये महिलाएं न केवल  घरेलू शोषण रोकती हैं बल्कि दहेज प्रथा और अंधविश्वासी रीति-रिवाजों के खिलाफ भी लड़ती हैं. वे बालिकाओं को शिक्षित करने की दिशा में भी जागरूकता फैला रही हैं. वे अपने गांवों की स्थिति सुधारना चाहती हैं. 

 

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