हमारे चारों ओर कहानियां हैं. कुछ सफलताओं की, तो कुछ चुनौतियों से भरी. कुछ बहादुरी की, तो कुछ परेशानियों से भरपूर. कहानियों के विशाल समुद्र में कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो हमारी नज़रों से ओझल हो जाती हैं. इसी तरह की कहानियां हैं उन महिला सफाई कर्मियों (women sanitation workers) की जो अपने साहस से न सिर्फ अपने लिए, पर अपने पूरे समुदाय के लिए विजयी होती हैं.
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आशा कंडारा: स्वीपर से डिप्टी कलेक्टर बनने की कहानी
राजस्थान के जोधपुर की रहने वाली आशा ने अपना करियर जोधपुर नगर निगम में एक सफाई कर्मचारी के रूप में शुरू किया. पति से अलग होने के बाद, दो बच्चों को अकेले पाला.
वापिस पढ़ाई शुरू की और 2016 में ग्रेजुएशन पूरा किया. जातिगत और लैंगिक भेदभाव (gender inequality) का सामना किया. अपने बच्चों को बेहतर ज़िन्दगी देने के लिए अच्छी नौकरी करना चाही. आज, वह डिप्टी कलेक्टर के पद पर है. वह इस बात का उदाहरण है कि अटूट दृढ़ संकल्प के साथ किसी भी चुनौती को पार कर, आर्थिक आज़ादी हासिल की जा सकती है (women sanitation workers success story).
उषा चौमर: पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित
स्वच्छता कर्मी उषा चौमर ने स्वच्छता के क्षेत्र में महिलाओं के उत्थान पर काम किया, जिसके लिए उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. आज वह सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन (Sulabh International Social Service Organization) की अध्यक्ष हैं, जो सुलभ इंटरनेशनल की गैर-लाभकारी शाखा है.
उन्होंने 7 साल की उम्र में ही शौचालय साफ करना शुरू कर दिया था. हर घर से उन्हें हर महीने सिर्फ ₹10 मिलते थे. उनका जीवन तब बदला जब उनकी मुलाकात सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक से हुई, जिन्होंने उन्हें बेहतर जीवन की तलाश में NGO नई दिशा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. आज वह अपने जैसी हजारों महिला स्वच्छता कर्मियों को प्रेरित कर रही हैं.
वंदना यू. गायकवाड़: सशक्तिकरण और परिवर्तन लीडर
32 साल की उम्र में वंदना यू. गायकवाड़ की कहानी सशक्तिकरण (women empowerment) का प्रतीक है. उत्कृष्ट छात्रा होने के बावजूद, बहुत कम उम्र में शादी ने उनकी शिक्षा पर विराम लगा दिया. परिवार की ख़राब आर्थिक स्थिति की वजह से उन्होंने स्थानीय पुलिस स्टेशन में टॉयलेट क्लीनर के रूप में काम किया.
हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज (Harpic World Toilet College) में ट्रेनिंग लेकर वंदना का जीवन बदल गया. उन्होंने जो कौशल हासिल किया उससे न सिर्फ उनकी तकनीकी क्षमताओं में सुधार हुआ बल्कि उनके सॉफ्ट कौशल भी बहतर हुए. पुलिस स्टेशन में सफ़ाई के साथ-साथ वह पारिवारिक हिंसा से संबंधित मामलों की काउंसलिंग भी करने लगी. वह सामाजिक बदलाव लाने में अहम भूमिका निभा रहीं है.
'मिशन स्वच्छता और पानी' को सफ़ल बना रहीं महिलाएं
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'मिशन स्वच्छता और पानी' (Mission Swachhta Aur Paani) से जुड़ी महिला सफाई कर्मियों की ये कहानियां स्वच्छ और स्वस्थ समुदाय बनाने में उनकी अहम भूमिका को उजागर करती हैं. लेवेटरी केयर (lavatory care) के क्षेत्र में भारत की अग्रणी ब्रांड इन महिलाओं की चुनौतियों और समस्याओं को समझती है.
हार्पिक ने 2016 में हार्पिक वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज (HWTC) शुरू किया, जिसका लक्ष्य सफाई कर्मचारियों को सम्मानजनक आजीविका अवसरों के साथ जोड़कर उनके जीवन में सुधार लाना था.
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Harpic और News18 ने स्वच्छता पहल को दिया बढ़ावा
इसकी सफलता के बाद, एक कदम आगे बढ़ाते हुए, हार्पिक ने 'मिशन स्वच्छता और पानी' को सफ़ल बनाने के लिए न्यूज़18 (News18) के साथ हाथ मिलाया. यह एक ऐसा आंदोलन है जो समावेशी स्वच्छता के लिए सभी लिंगों, क्षमताओं, जातियों और वर्गों के लिए समानता और इस दृढ़ विश्वास का समर्थन करता है कि स्वच्छता एक साझा जिम्मेदारी है.
मिशन स्वच्छता और पानी सरकारी अधिकारियों, कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों, जमीनी स्तर के संगठनों और स्वच्छता कार्यकर्ताओं सहित समाज को एक ऐसा मंच दे रहा है जिसके ज़रिये स्वच्छता की दिशा में चल रहे कामों को गति मिल सके.