बचपन से घर वाले हमें सिखाते है की कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. लेकिन बड़े होते होते ना जाने ऐसा क्या हो जाता है जिससे कुछ लोगों को हम खुद से कमतर समझने लगते है. कंपनी में बैठ कर लैपटॉप पर काम करने वाले से लेकर सड़क पर manholes साफ़ करने वालों तक, हर व्यक्ति अपना पेट पालने के लिए कुछ ना कुछ कर रहा है.
Tracing The Tracks documentary सैनिटेशन वर्कर्स की लाइफ को करेगी कवर
बिना किसी से भीख मांगे अगर कोई व्यक्ति अपना काम कर रहा है तो वह छोटा कैसे हो सकता है? बस इसी बात को सबके सामने ला रही है एक documentary 'tracing the tracks'. यह डॉक्यूमेंटरी sanitation workers की ज़िन्दगियों को सबके सामने रखने के लिए बनाई गयी है. इस फिल्म में ओडिशा (Odisha news) के पांच स्वच्छता कार्यकर्ताओं, बाबुली नायक, नम्मा नायक और डी शिवा के साथ बहुचरमाता self help group (ट्रांसजेंडर self help group) के दो सदस्यों तनुश्री बेहरा और सीतल किन्नर को चित्रित किया गया है.
Image Credits: Wateraid.org
डॉक्यूमेंट्री 'ट्रेसिंग द ट्रैक्स' का निर्माण बेंगलुरु, कर्नाटक स्थित फिल्म निर्माण कंपनी Teepoi द्वारा किया गया है. इस कंपनी ने दासरा शहरी प्रबंधन केंद्र (UMC) के साथ साझेदारी की है. दासरा (Dasra) राष्ट्रीय मल कीचड़ और सेप्टेज प्रबंधन (NFSSM) गठबंधन का सचिवालय है, जिसमें सफाई कर्मचारियों के लिए सुरक्षित और सम्मानजनक आजीविका सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया जाता है.
भारत में 5 मिलियन से ज़्यादा सफाई कर्मचारी हैं, जिनमें से ओडिशा में लगभग 11,000 हैं, जो स्वच्छता मूल्य श्रृंखला में ह्यूमन वेस्ट के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. डॉक्यूमेंट्री इन champions के जीवन को प्रदर्शित करती है. शहरी प्रबंधन केंद्र की उप निदेशक मेघना मल्होत्रा कहती हैं, "भारत के 5 मिलियन लोगों में सुधार-मजबूत स्वच्छता वर्कफोर्स भी अब एक फोकस क्षेत्र बन रहा है."
Image Credits: Kalinga TV
इस documentary में अपनी लाइफ के बारे में बताती कटक ओडिशा से FSTP कार्यकर्ता और बहुचरमाता ट्रांसजेंडर SHG की अध्यक्ष तनुश्री बेहरा ने कहा, "मैं अच्छी तरह से शिक्षित हूं और स्वच्छता क्षेत्र में शामिल होने से पहले, मैंने कई अन्य क्षेत्रों में नौकरियों की तलाश करने की कोशिश की. मेरी लैंगिक पहचान के कारण मुझे कोई नौकरी नहीं मिली, जिसके कारण मुझे भेदभाव और सामाजिक पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ा. इसलिए, हमने कटक में एक SHG बनाने का फैसला किया और स्वच्छता कार्य के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया." उन्हें इस काम को करने के लिए दस्ताने, हेलमेट और अन्य सुरक्षा गियर प्रदान किए जाते हैं.
वे आगे कहती है- "कोई भी काम छोटा नहीं होता और हमें अपने काम पर गर्व है. शुरुआत में, हमारे दोस्तों और परिवार ने इस नौकरी का विरोध किया लेकिन जब हमारे काम को उचित पहचान मिली तो हमें धीरे-धीरे उनकी स्वीकृति मिली.” ये documentary देश में बदलाव लाने की बहुत अच्छी पहल साबित होगी. देश में महिलाओं और transgenders को आगे बढ़ाने और उन्हें सम्मान दिलवाएगी Tracing The Tracks documentary.