महाराष्ट्र (Maharashtra) में सिंधुदुर्गा के कुडाल तालुका के वेताल बाबरदे गांव की महिलाओं ने एक साथ आकर आर्थिक क्रांति (women-led economic revolution) का परचम लहराया. इन महिलाओं ने केरसुणी (झाड़ू) बनाने के सामान्य-से व्यापार को महिला सशक्तिकरण (women empowerment) को बढ़ावा देने का ज़रिया बना लिया.
2002 में श्री वेटोबा महिला बचत समूह किया शुरू
जब महिलाओं को एहसास हुआ कि पारंपरिक कृषि और मजदूरी से आर्थिक प्रगति संभव नहीं है, तब वह समूह के रूप में साथ आईं. समान विचारधारा वाली 11 महिलाओं ने एकजुट होकर 2002 में श्री वेटोबा महिला बचत समूह शुरू किया. नारियल की खोल से केरसुणी बनाने का व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया.
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पारम्परिक रूप से कई महिलाएं आज घर पर झाड़ू बनाने का काम कर रही हैं. इसलिए वह इस बिजनेस की बारीकियां जानती हैं. पहले ये महिलाएं पूरी क्षमता के साथ इस पेशे में नहीं आती थीं. स्वयं सहायता समूह (self help groups) शुरू होने के बाद महिलाएं केरसुणी निर्माण उद्योग में उतरीं. ये सफल भी रहा.
गोवा तक बढ़ी केरसुणी की मांग
महिलाओं ने स्थानीय बाजार में उत्पादन को बेचा. लेकिन जैसे-जैसे उत्पादन और जान-पहचान बढ़ी, उनका व्यापार शहर तक फैलने लगा. अब गोवा राज्य (Goa) में झाड़ुओं की भारी मांग है. साथ ही अच्छा रेट मिलने से महिलाओं का आत्मविश्वास भी बढ़ा.
महिलाओं ने बताय कि केरसुणी को बनाने के लिए नारियल के छिलकों की ज़रुरत होती है. केरसुणी की मांग बढ़ने के बाद, महिलाओं ने आसपास के गांवों के नारियल किसानों से खराब हुए नारियल के गोले खरीदना शुरू कर दिया. महिलाएं तुलसी, पांडुर, कदमवाड़ी, भोगलेवाड़ी, हिरलोक, हमरमाला में नारियल किसानों से नारियल खरीदती हैं.
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कमा रहीं 1 लाख से ज़्यादा का मुनाफा
स्वयं सहायता समूह के ज़रिये महिलाएं हर महीने 500 से 600 झाड़ू बना लेती हैं. महिलाओं का कहना है कि इस SHG से उन्हें 1 लाख 20 हजार रूपये का मुनाफा होता है.
इन महिलाओं ने पारम्परिक गतिविधि को स्वयं सहायता समूह के ज़रिये सफल उद्यम में बदल दिया. आत्मनिर्भरता की कहानी लिख ये उदाहरण बन गई.