सटोरलिम, गोवा में, कैनाकोना के दक्षिणी इलाके में बसा एक गांव है. यहां रह रहे करीब 500 निवासियों का रोज़गार कृषि के इर्द-गिर्द घूमता है. आदिवासी बाहुल्य वाला ये गांव सामुदायिक खेती (group farming) अपनाकर बदलाव की राह पर चल पड़ा.
35 सदस्यों ने किया 30 हज़ार रुपये का निवेश
तीन साल पहले सामुदायिक खेती को अपनाते हुए, 35 सदस्यों वाले 15 परिवारों ने संयुक्त रूप से 30 हज़ार रुपये का निवेश किया, जिससे न सिर्फ उनकी आमदनी बढ़ी, बल्कि गांव का आर्थिक विकास (economic development in Goa) भी संभव हो सका.
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बदलाव की ये कहानी हर परिवार द्वारा दो हजार रुपये के योगदान के साथ शुरू हुई. तरह-तरह की फसलों की खेती करते हुए, समूह कृषि प्रतिभा का एक प्रतीक बन गया है. उनके खेत मिर्च, सब्ज़ियां, अरहर, रतालू, काली मिर्च, जायफल, दालचीनी, पपीता, केले समेत कई तरह के रंगों और स्वादों से खिल उठे.
समूह काजू, नारियल, धान और गेंदे की खेती में भी विविधता लाने में सफल हुआ है. भविष्य में चंदन और बांस को बढ़ावा देने की योजना है.
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स्वयं सहायता समूह से जुड़ मिला मुनाफा
समूह सदस्य, सुभाष गांवकर ने ICAR के विशेषज्ञों से समर्थन और तकनीकी मार्गदर्शन हासिल किया. “मिट्टी की तैयारी से लेकर कटाई तक, हमारे सदस्यों ने कृषि के लिए व्यापक प्रशिक्षण लिया है. हमारी महिलाएं आधुनिक कृषि उपकरण संभालने और नारियल तोड़ने में माहिर हैं, जिसे पुरुषों का काम माना जाता था.” उन्होंने बताया.
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सटोरली की सफलता का मुख्य कारण एकता है, जो स्वयं सहायता समूह (self help groups) की वजह से मिली. समूह सदस्य मोलू गांवकर ने बताया, "हर हफ्ते, पांच सदस्यों का एक समूह पूरे फार्म की देखभाल करता है - इसे जंगली जानवरों के हमलों से बचाता है, उचित सिंचाई सुनिश्चित करता है, निराई-गुड़ाई करता है और साफ-सफाई बनाए रखता है." वर्ष के अंत में होने वाला मुनाफा उनके सामूहिक प्रयासों का फल है, जो सभी सदस्यों के बीच समान रूप से वितरित किया जाता है.
भरपूर फसल और भूमि से प्राप्त आर्थिक जीविका के साथ-साथ, सटोरली स्वयं सहायता समूह की कहानी लचीलेपन, एकता और हरित, आत्मनिर्भर भविष्य के लिए साझा दृष्टिकोण को दर्शाती है. बंजर खेतों से लहलहाती कृषि भूमि तक की उनकी यात्रा सिर्फ कृषि सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि समुदाय-संचालित पहल की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है.
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