भोजपत्र (Bhojpatra), भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो प्राचीन समय से ही इस्तेमाल हो रहा है. भोजपत्र वृक्ष उत्तराखंड (Uttarakhand) के हिमालयी क्षेत्रों में समुद्रतल से 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है.
भोजपत्र पेड़ से SHG बना रहे उत्पाद
भोजपत्र पेड़ की छाल का इस्तेमाल कर चमोली जिले की स्वयं सहायता समूह की महिलाएं (women self help groups) उत्पाद बना रही हैं. महिलाएं इसे रोजगार का ज़रिया बनाकर आमदनी कमा रही हैं. 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माणा गांव भ्रमण में भोजपत्र कला की प्रशंसा की थी.
भोजपत्र उत्पाद बनाने की SHGs को दी गई ट्रेनिंग
अन्य क्षेत्रों की महिलाएं भोजपत्र से जुड़कर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं, और आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ने के साथ भारतीय कला संस्कृति की अनमोल धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. जोशीमठ की सत्तर महिलाओं को भोजपत्र से उत्पाद बनाने की दस दिन की ट्रेनिंग दी गई, जिससे महिलाओं ने अपना व्यवसाय शुरू किया है. और बदरीनाथ, औली, हेमकुंड, फूलों की घाटी पर आए टूरिस्ट्स को सामान बेचकर आमदनी कर रही हैं.
भारतीय साहित्य और ग्रंथों में भोजपत्र का इस्तेमाल
कागज की खोज के पहले लिखने का काम इसी पर किया जाता था. पहले कश्मीर में इसका इस्तेमाल पार्सल पैक करने में होता था. भोजपत्र पर लिखे गए संदेश हजारों सालों तक सुरक्षित रहते हैं, और भारतीय साहित्य और ग्रंथों में इसका इस्तेमाल किया गया है. प्राचीन काल से इसका इस्तेमाल भारतीय राजा-महाराजाओं ने संदेश भेजने के लिए किया है.
चमोली जिले के महिलाएं अब स्वयं सहायता समूहों के रूप में सशक्त शक्ति बन चुकी हैं. अपने स्वरोजगार से नई पहचान स्थापित कर रही हैं. भोजपत्र से आकृतियों को बनाकर, पांच लाख की आमदनी प्राप्त कर चुकी हैं.