ग्रामीण भारत की रूप रेखा बदलती ग्रामीण महिलाएं

ग्रामीण भारत को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना रहीं महिलाएं. भील कलाकार भूरी बाई भील सम्प्रदाय की परंपरागत कला को उन्होंने भोपाल के भारत भवन में उकेरा.

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हेमा वाजपेयी
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Image Credits : Ravivar Vichar

ग्रामीण भारत को महिलाएं बना रहीं आर्थिक रूप से स्वावलंबी

भारतीय समाज की मौलिक शक्ति महिलाएं है. महिलाएं न सिर्फ अपनी ममता और संकल्पना से अपने परिवार के साथ पूरे समाज को आगे बढ़ने की दिशा में प्रेरित करतीं है. अगर हम गांव की बात करे, तो  वह संघर्षों के बावजूद आर्थिक स्वावलंबन प्राप्त करने के लिए निरंतर आगे बढ़ रहीं है. ऐसी ही कुछ ग्रामीण महिलाओं की कहानियों को रविवार विचार उजागर कर रहा है , जिन्होंने अपने समाज के साथ साथ देश का नाम रौशन किया है.

नक्शली क्षेत्रों से आती महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर  

छत्तीसगढ़ (Chhatisgarh) दंतेवाड़ा (Dantewada) की रहने वाली सुश्री बुधरी ताती (Budhri Tati) ने नक्शल क्षेत्र से आती 551 महिलाओं को शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि जब पढ़-लिखकर महिलाएं साक्षर होंगी तब वह मानसिक रूप से साहसी और काम करने के लिए प्रेरित होंगी. बुधरी ने न सिर्फ महिलाओं को आत्मनिर्भर (AATMANIRBHAR) बनाकर आर्थिक आज़ादी दिलाई बल्कि समाज में सुधार लाने के लिए नई दिशा भी दिखाई.

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Budhri Tati (Image Credits : News18)

भील कला से बनाई पहचान  

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के झाबुआ (Jhabua) जिले के पित्तोल गांव  की रहने वाली भील कलाकार भूरी बाई (Bheel Artist Bhuri Bai) को आज कौन नहीं जनता. भील सम्प्रदाय की परंपरागत कला को उन्होंने भोपाल के भारत भवन (Bharat Bhawan Bhopal) में उकेरा. भूरी बचपन से ही अलग अलग रंग बनाकर दीवालों में अपनी कला को पिरोती थी , किसी भी तीज त्यौहार, शादी  में वह अपनी कला को दीवालों में उकेरती थी. भूरी बताती है कि, वह भोपाल मजदूरी करने के लिए आयी, तब भारत भवन तब बनना शुरू ही हुआ था, और मजदूरी के समय ही वहां के डायरेक्टर ने उनकी कला को पहचाना बस आज परिणाम हमारे सामने है. भूरी का यह कला का सफर आसान नहीं था, शुरुआत में उन्हें समाज और परिवार के ताने सुनने पड़े, पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपनों को पूरा करने के लिए निरंतर आगे बढ़ती गई. आज अपनी मेहनत और कौशल से उन्होंने पुरे देश को गर्वान्वित कर अपने समुदाय के लिए आदर्श बन गई हैं.

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Bheel Artist Bhuri Bai (Image Credits : News18)

समूह से महिलाओं को बनाया सशक्त 

श्रीमती सुरेंद्री देवी राणा (Surendri Devi Rana) जो स्वयं सहायता समूह में महीने के 20 रूपए भी जमा नहीं कर पाती थीं, आज वह नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन (NRLM) से जुड़कर 35 सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बनाकर महिलाओं को हैंडीक्राफ्ट्स (Handicrafts) बनाना सीखा रहीं. Self Help Groups (SHG) की महिलाओं को रोजगार दिलाने के साथ, उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर उन्हें सशक्त बना रहीं है. सुरेंद्री जब पहले समूह से जुड़ी, तब वह सिर्फ पैसे जमा करती थी, धीरे धीरे पैसे इकट्ठे कर उन्होंने 50 हज़ार का लोन लेकर भैंस पालन का व्यवसाय शुरू किया. सुरेंद्री को उनके काम में परिवार का साथ मिला. आज सुरेंद्री अन्य महिलाओं को समूह से जुड़ने के लिए प्रेरित करती ताकि महिलाएं सशक्तिकरण कि राह पर अग्रसर हो सके.

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Surendri Devi Rana (Image Credits : News18)

लोकगीत से बनाई पहचान 

अगर सुश्री अचम्मा (Achamma) की बात करें तो उन्होंने पारम्परिक लोकगीत से अपनी पहचान बनाई है.

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Achamma (Image Credits : News18)

इन महिलाओं की कहानियां हमें सिखाती है कि साहस, संघर्ष और समर्पण से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है. 

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