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Image- Ravivar vichar
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अपने सपनो को पाने के लिए ना जाने कितने किलोमीटर पैदल चलती है ये महिलाएं. दिन रात एक कर बढ़ते क़दमों के सात अपने सपनो की तरफ आगे बढ़ती है उनकी आखें. भारत की हर सड़क पर चलते हुए, बस के दरवाज़ों से टंगे हुए सपने तो हर वक़्त देखे जा सकते है. लकिन कुछ सपने ऐसे भी होते है जो दूसरों को इस परेशानी में देखना पसंद नहीं करते.
ऐसा ही सपना देखा बेंगलुरु के विजयनगर की रहने वाली 26 वर्षीय पवित्रा ने जिसे अपने घर के पास वाले bus stop पर पहुंचने के लिए ट्रैफिक से बचते हुए, संकरी गलियों से गुजरना पड़ता था, जो उसके घर से एक किलोमीटर दूर था. हर दिन घर से bus stop पहुंचने में 20 मं लग जाते थे पवित्रा को.
हर दिन अपनी मंज़िल की और बढ्रते हुए पवित्रा ये ही सोचती थी की काश बसस्टॉप मेरे घर के थोड़ा पास होता. उन्होंने यह सोचा ही था कि बेंगलुरु स्थित समूह एली सेरोना (Alli serona bengluru) ने पिछले महीने शहर के कम पहुंच वाले इलाकों में बस स्टॉप की मांग के लिए अपना वकालत अभियान शुरू किया. यह जानकर पवित्रा ने इस project से जुड़ने में एक मं कि भी देर नहीं की और तुरंत इस पहल में शामिल हो गयी.
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अपनी बात को सबके सामने स्पष्ट रूप से रखने के लिए एली सेरोना ने कला संस्थापन का उपयोग किया कर अपनी महिला साथियों, जिनमें घरेलू नौकर, दर्जी और फूल विक्रेता शामिल थीं, के साथ तैयार किया बस स्टॉप का wooden version. इस प्रोजेक्ट को accept किया गया और जागरूकता बढ़ाने और लोगों की परिवहन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, इंस्टॉलेशन को 5 से 21 अक्टूबर तक बेंगलुरु के होसा नगर, सीगेहल्ली, एकेजी क्षेत्र और बायरासंद्रा के विभिन्न इलाकों में install किया जा चुका है.
Image Credits: Her story
एली सेरोना नागरिक समाज संगठनों, रचनाकारों और थिंक टैंक का एक समूह है, जो बेंगलुरु में अनौपचारिक कार्यबल की महिलाओं की जरूरतों के लिए काम कर रहा है. समूह के हितधारकों में- एसोसिएशन फॉर प्रमोटिंग सोशल एक्शन; बेंगावॉक, वास्तुकार और फिल्म निर्माता प्रवर चौधरी; सड़क फोटोग्राफर पुनीत सचदेव; स्टूडियो सॉर्टेड, एक डिज़ाइन स्टूडियो; और बेंगलुरु मूविंग, शहर में गतिशीलता से संबंधित पहल पर काम करने वाला एक समूह शामिल है.
इस साल की शुरुआत में, एली सेरोना ने अनौपचारिक कार्यबल में कार्यरत महिलाओं के लिए बस स्टॉप की पहुंच का आकलन करने के लिए शहर के नौ समुदायों में एक ऑडिट किया. समूह ने पाया कि कई क्षेत्रों में, महिलाओं को निकटतम पड़ाव तक पहुंचने के लिए लगभग 1-2 किमी या उससे अधिक की यात्रा करनी पड़ती थी.
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इस चुनौती ने बस स्टॉप तक बेहतर पहुंच के लिए दबाव बनाने के लिए एक अभियान की आवश्यकता को जन्म दिया, ताकि अनौपचारिक कार्यबल की महिलाएं शहर के बस नेटवर्क से बेहतर लाभ उठा सकें. जून में कर्नाटक सरकार (Karnataka news hindi) ने महिलाओं और ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को राज्य में कहीं भी मुफ्त बस यात्रा प्रदान करने के लिए कर्नाटक शक्ति योजना शुरू की थी.
Image Credits: Her story
इस योजना के तहत चार सड़क परिवहन निगम- कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम, बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन परिवहन निगम, उत्तर पश्चिम कर्नाटक सड़क परिवहन निगम और कल्याण कर्नाटक सड़क परिवहन निगम शामिल हैं. मल्लिका आर्य, बेंगलुरु मूविंग का एक सदस्य, कहती हैं, "यदि महिलाओं के क्षेत्र में buses ही नहीं आएंगी तो शक्ति स्कीम से उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा. Bus stop दूर होने के कारण से द्वारा बस का उपयोग करने की संभावना कम हो जाती है, भले ही यह मुफ़्त क्यों न हो मुफ़्त है."
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48 वर्षीय महिला भारती एक दर्जी हैं जो सीगेहल्ली में रहती हैं. उसे कपड़ा खरीदने के लिए हर दिन केआर पुरम जाना पड़ता है. बसस्टॉप उसके घर से दूर है. भारती का कहना है, स्थानीय विक्रेताओं ने बस स्टॉप को घेर लिया है और कई राहगीर इसके सामने अपनी कारें पार्क करते हैं, जिसके कारण बसें यहां नहीं रुकती हैं. वह कहती हैं, ''बहुत सारे बच्चे और महिलाएं हैं जो समस्याओं का सामना कर रहे हैं.''
परिणामस्वरूप, भारती को बस पकड़ने के लिए भट्टरहल्ली तक एक ऑटो रिक्शा से यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें उसे 150 रुपये का खर्च आता है और अगर वह भट्टरहल्ली में समय पर बस नहीं पकड़ पाती है, तो उसे दूसरे ऑटो की सवारी पर अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं. भारती कहती हैं, ''मुझे लगा कि हमारी समस्याएं पहली बार सुनी जा रही हैं.'' ऐसी बहुत सी कहानियां है जिनमें महिलाओं को अपनी परेशानी का हल ढूंढ़ने के लिए मंच दिया है एली सेरोना ने.
अभियान को "अभिनव" बताते हुए वह कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि अधिकारी हमारी बात सुनेंगे और क्षेत्र में एक उचित बस स्टॉप का निर्माण करेंगे. इसके अलावा, मुझे उम्मीद है कि यह सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाएंगे कि बस चालक निर्धारित बस स्टॉप पर रुकें."