ISRO लिख रहा women empowerment की नई कहानियां...

ISRO में महिलाओं की भूमिका भारतीय अंतरिक्ष मिशनों के सफलता की कहानियों में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में उभरी है. इन महिलाओं ने science & technology के क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने में योगदान दिया है.

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विधि जैन
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ISRO gender equality

Image Credits - X/@VPIndia

सुनैना को बचपन से ही विज्ञान में गहरी रुचि थी, लेकिन समाज के रूढ़िवादी नज़रिए ने उसे सिर्फ घर की देखभाल तक सीमित रखा. उसके सपने और आकांक्षाएं चूल्हे-चौके तक ही बांध दिए गए. फिर भी, उसने हार नहीं मानी... खुद को रातों-रात पढ़ाई में व्यस्त रखती और दिन में परिवार की देखभाल करती. समय के साथ, उसकी मेहनत रंग लाई! आज, सुनैना एक scientist है, जिसने science & technology के क्षेत्र में अपनी नई और advanced सोच से आज दुनिया को चकित कर दिया. उसकी कहानी हमें दिखाती है कि सपने देखने की और उन्हें पूरा करने की क्षमता किसी gender तक सीमित नहीं होती...

सुनैना जैसी ना जाने कितनी ही लड़कियों ने लाख चुनौतियों के बावजूद अपने सपनों को चुना और आज सफलता के परचम लहराते हुए देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर रहीं हैं.

कुछ ऐसा ही बदलाव बेंगलुरु में ISRO के यू. आर. राव सैटेलाइट केंद्र (URSC) दौरे के दौरान महसूस किया देश के Vice President Jagdeep Dhankhar ने और सभी के साथ साझा किया International Women's Day के मौके पर.

Gender equality से ISRO कर रहा तरक्की

Indian Space Research Organisation (ISRO) की सफलता की कहानियां अब तकनीकी उपलब्धियों तक ही सीमित नहीं रहीं हैं. ISRO ने एक बार फिर अपनी उपलब्धियों से देश का मान बढ़ाया और एक मिसाल कायम की. इस संगठन ने अपने भीतर ऐसा माहौल बनाया है जहां महिलाओं को भी बराबरी का मौका और सम्मान मिलता है. चाहे मंगलयान मिशन हो या चंद्रयान, महिला वैज्ञानिकों ने हर मोर्चे पर अपनी क्षमता और साहस का परिचय दिया है.

उपराष्ट्रपति के हाल में किये गए ISRO के दौरे पर उन्होंने यह महसूस किया कि ISRO में पहले के मुकाबले female scientists की संख्या में काफी बढ़त हुई है जिससे gender gap कम हुआ है. उन्होंने यह बात सभी को व्यक्त करते हुए ISRO को लिंग समानता और विविधता (gender diversity) को बढ़ावा देने में अन्य संगठनों के लिए एक उदाहरण बताया.

उन्होंने इसे उचित ही उल्लेखित किया कि "ISRO अंतरिक्ष अनुसंधान में तो अग्रणी है ही, और अब लैंगिक विविधता और समानता के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता के माध्यम से एक आदर्श स्थापित कर रहा है. भारत की 'Rocket Women' हमें आकाश और उससे भी परे ले जा रही हैं, उन्होंने ना केवल अपने लिए बल्कि हमारी प्रगति के लिए भी सीमाओं को तोड़ा है, ताकि हम पहले से स्थापित मानकों से परे जा सकें." इसके परिणामस्वरूप, ISRO ने ना सिर्फ अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल की हैं, बल्कि सामाजिक समानता के प्रति एक मजबूत संदेश भी दिया है.

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Image Credits - Press Information Bureau

ISRO में महिलाएं संभाल रहीं leadership 

उपराष्ट्रपति का मानना है कि एक महिला जन्म से ही leader की भूमिका निभाती है. ISRO में महिलाओं की भूमिका भारतीय अंतरिक्ष मिशनों के सफलता की कहानियों में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में उभरी है. इन महिलाओं ने सिर्फ science & technology में ही अपनी प्रतिभा साबित नहीं की, बल्कि space research के क्षेत्र में भी भारत की स्थिति को मजबूत करने में योगदान दिया है.

हम चाहे बात करे Mission Mangal की, जिसने भारत को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश बनाया, या फिर Chandrayan Mission, जिसने चंद्रमा के अध्ययन में नई दिशाएं प्रदान कीं; महिलाओं ने हर मिशन में अपनी अहम भूमिका निभाई है. वे डिजाइनिंग से लेकर मिशन प्लानिंग जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में शामिल रही हैं.

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सभी संगठनों के लिए है प्रेरणास्त्रोत

महिलाओं ने ISRO के मिशनों की सफलता में अपना योगदान देने के साथ ही युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनकर दिखाया है. उन्होंने बताया कि विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लिंगभेद को पार करते हुए उच्च उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं. ISRO की महिला वैज्ञानिक और इंजीनियर्स ने अपने काम के प्रति समर्पण और उत्कृष्टता के साथ दिखाया है कि सपने देखने वालों की कोई भी सीमा नहीं होती. वे न केवल इसरो में, बल्कि पूरे विश्व में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में महिलाओं की सशक्त भूमिका को प्रदर्शित करती हैं.

इस प्रकार का प्रयास अन्य संगठनों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत है. जब हम लैंगिक विविधता को अपनाते हैं और महिलाओं को समान अवसर प्रदान करते हैं, तो हम समाज के एक हिस्से को सशक्त बनाने के साथ - साथ संपूर्ण संगठन और समाज की समृद्धि और विकास में भी योगदान देते हैं.

ISRO द्वारा प्रदर्शित इस आदर्श को अपनाकर, अन्य संगठन भी ऐसी संस्कृति का निर्माण कर सकते हैं जहां प्रतिभा की पहचान लिंग से नहीं, बल्कि क्षमता और योग्यता से होती है. इसके प्रति उपराष्ट्रपति का समर्थन और आह्वान निश्चित रूप से भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था के लिए एक स्वस्थ और समृद्ध भविष्य की ओर एक कदम है.

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