चर्चा साड़ी की नहीं, सफलता की होनी चाहिए!

साड़ी, सिन्दूर, बिंदी से जुड़ी चर्चाएं हमारे मन में ये बातें डालती हैं कि पारंपरिक पहनावा न अपनाने वाली महिला प्रोफेशनल्स अपनी जड़ों के प्रति जागरूक नहीं, या वो 'रियल फेमिनिज्म' के दायरे में नहीं आतीं.

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मिस्बाह
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ISRO women scientists

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चंद्रयान 3 (chandrayan 3) और आदित्य L1 (Aditya L1) की सफलता ने  ISRO की महिला साइंटिस्ट्स और इंजिनीयर्स (ISRO female scientists and engineers) को दुनियाभर में पहचान दिलवाई. कौशल और क्षमता पर होने वाली चर्चा, पहनावे से जुड़े कमेंट्स के बीच कहीं दब गई (people commenting on ISRO female scientists sarees). 

साड़ी Vs. STEM 

महिला साइंटिस्ट्स की वैज्ञानिक क्षमता उनके पहनावे से जोड़ी गई. पहनावा चुनने का अधिकार बेसिक फंडामेंटल राइट (right to choose clothing) है, पर फिर भी महिलाओं, खासकर कामकाजी महिलाओं को 'वेस्टर्न' या 'ट्रेडिशनल' पहनावा चुनने के लिए जज किया जाता है. 

PhD

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फीमेल साइंटिस्ट्स की फोटो देख उनकी साड़ी, सिन्दूर, और संस्कार के लिए उनकी तारीफ की गई. सोशल मीडिया पर कमेंट किया गया, "उन्हें जींस पहनने की ज़रुरत नहीं है. रियल फेमिनिज्म (real feminism) यही है. महिलाओं का सिगरेट या शराब पीना मॉडर्निज़्म नहीं है."

एक और ब्लू टिक यूज़र ने पोस्ट किया, "सब इम्पोर्टेन्ट है, मून भी, घर की रेस्पॉन्सिबिलिटीज़ भी. इंडियन महिला से बेहतर सब चीज़ों को कोई और हैंडल नहीं कर सकता." 

लेकिन... क्या स्पॉटलाइट उनकी टेक्नोलॉजी की समझ (technological excellence) और वैज्ञानिक क्षमता (scientific calibre) पर नहीं होना चाहिए? इन कमेंट्स को पढ़कर एहसास होता है कि हमारे समाज ने एक महिला को किस हद तक परंपरा की बंदिशों (restrictions of tradition) से बांधा हुआ है. ISRO की सफलता से जुड़ी इन महिलाओं ने दुनियाभर की लड़कियों को STEM (Science, technology, engineering, and mathematics) का रास्ता दिखाया, पर उनके पहनावे पर हो रही बातें इस बात पर से ध्यान हटा लेती हैं. 

रोटी से लेकर रॉकेट तक... 'ओवर वर्क' हुआ नज़रअंदाज़ 

साड़ी, सिन्दूर, बिंदी से जुड़ी चर्चाएं हमारे मन में ये बातें डालती हैं कि पारंपरिक पहनावा (traditional attire) न अपनाने वाली महिला प्रोफेशनल्स (women professionals) अपनी जड़ों के प्रति जागरूक नहीं, या वो 'रियल फेमिनिज्म' (real feminism) के दायरे में नहीं आतीं.

ISRO female scientists in saree

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रोटी से लेकर रॉकेट तक, सारी ज़िम्मेदारियां महिला पर इस तरह लादीं कि 'ओवर वर्क' (Dangerous Effects of over worked) के नुक्सानों को नज़रअंदाज़ कर दिया. ज़्यादा काम करने पर भी कम पहचान मिली- इसे भी नॉर्मलाइस (normalising over work) किया गया. हैरानी की बात यह है कि पहनावे से जुड़े ये कमेंट्स महिलाओं ने किये.       
 
आंकड़ों की मानें तो विज्ञान में ग्रेजुएशन करने वाले छात्रों में करीब 40% महिलाएं हैं (women in STEM numbers). 'द एसोसिएशन ऑफ एकेडमीज एंड सोसाइटीज ऑफ साइंसेज इन एशिया' की रिपोर्ट ने बताया कि सिर्फ 25-30% महिलाएं ही विज्ञान में पीएचडी (PhD) करती हैं. सिर्फ 15% फैकल्टी पोज़िशन्स महिलाओं के पास हैं. 

ज़रुरत इन आंकड़ों को बढ़ाने की है. ध्यान इस बात पर देना ज़रूरी है कि इन नंबरों को कैसे बढ़ाया जाए. चर्चा का विषय हर फील्ड में महिला भागीदारी होना चाहिए. 'क्या पहनना है', ये महिलाएं खुद तय कर लेंगी. 

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