चुनाव के पहले दो चरणों में सिर्फ 8% महिला उम्मीदवारों ने लड़ा चुनाव

कांग्रेस ने दोनों चरणों में 44 महिलाओं को और भाजपा ने 69 महिलाओं को मैदान में उतारा. इस लैंगिक असंतुलन ने इस सवाल को जन्म दिया है कि पार्टियां सक्रिय रूप से महिलाओं को मैदान में उतारने के बजाय महिला आरक्षण अधिनियम के लागू होने का इंतज़ार क्यों कर रही है?

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किरण मुरिया
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Women Participation as Leaders in Elections

Image - Ravivar Vichar

लोकसभा चुनाव 2024 (LokSabha Elections 2024) के पहले दो चरणों में कुल 2,823 उम्मीदवारों में से केवल आठ प्रतिशत महिलाएं थी, राजनीतिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह लैंगिक पूर्वाग्रह (gender bias) को दर्शाता है और महिला सशक्तिकरण (women empowerment) को कमज़ोर करता है.

क्या पार्टियां कर रहीं Women Reservation Bill का इंतज़ार?

चुनाव के पहले चरण में 135 महिला उम्मीदवार थीं और दूसरे चरण में 100, जिससे पहले दो चरणों की कुल संख्या 235 हो गई. 19 अप्रैल 2024 को हुए पहले चरण के चुनाव में मैदान में कुल उम्मीदवारों की संख्या 1,625 थी. 26 अप्रैल को हुए दूसरे चरण में 1,198 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. पहले चरण में 135 महिला उम्मीदवारों में से, तमिलनाडु की हिस्सेदारी सबसे अधिक 76 थी. हालांकि, यह आंकड़ा राज्य के कुल उम्मीदवारों का सिर्फ 8 % था.

दूसरे चरण में केरल में महिला उम्मीदवारों की संख्या सबसे अधिक 24 थी. पार्टीवार, कांग्रेस (Congress (I)) ने दोनों चरणों में 44 महिलाओं को और भाजपा (BJP) ने 69 महिलाओं को मैदान में उतारा. इस लैंगिक असंतुलन (Gender Bias) ने इस सवाल को जन्म दिया है कि पार्टियाँ सक्रिय रूप से महिलाओं को मैदान में उतारने के बजाय महिला आरक्षण अधिनियम (Women Reservation Bill) के लागू होने का इंतज़ार क्यों कर रही है?

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राजनीतिक दलों को महिलाओं की उम्मीदवारी को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए और अधिक महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारना चाहिए. साथ ही पार्टी संरचनाओं के भीतर महिलाओं के लिए सीट आरक्षण होना चाहिए, जैसा कि यूके की लेबर पार्टी में देखा गया है. भारत के मतदाताओं में लगभग आधी महिलाएं हैं, फिर भी राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं को कम प्रतिनिधित्व मिलता है. राजनीति में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने वाली नीतियों की आवश्यकता है.

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घोषणापत्र में महिला आरक्षण के वादे...

बीजू जनता दल (बीजेडी BJD) एकमात्र ऐसी पार्टी है जो नीति के तहत महिलाओं को 33 प्रतिशत टिकट देती है. लेकिन सिर्फ सीटें आरक्षित करना पर्याप्त नहीं है, हमें एक सांस्कृतिक बदलाव की जरूरत है जहां महिलाओं को नेता और निर्णय लेने वालों के रूप में देखा जाए.

देश के दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों - भाजपा और कांग्रेस - ने अपने घोषणापत्रों में महिला केंद्रित पहलों को सूचीबद्ध किया है. भाजपा के घोषणापत्र में महिलाओं को सम्मान और सशक्त बनाने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण अधिनियम) को लागू करने, महिला स्वयं सहायता समूहों (Women Self Help Groups SHG) को उनकी आर्थिक भागीदारी बढ़ाने और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने के लिए सेवा क्षेत्र में एकीकृत करने का वादा किया है. कांग्रेस ने महिला सशक्तिकरण के लिए सुधारों का वादा किया है, जिसमें महिला आरक्षण अधिनियम को तत्काल लागू करना भी शामिल है.

महिला आरक्षण अधिनियम के पारित होने के बाद भी राजनीतिक परिदृश्य में अधिक लैंगिक समावेशिता (Gender Inclusion) की दिशा में कोई सार्थक बदलाव नहीं हुआ है. जहां पार्टियां महिलाओं को सशक्त बनाने के बारे में मुखर हैं, वहीं महिला उम्मीदवारों की कमी राजनीतिक प्रणालियों के भीतर लैंगिक पूर्वाग्रह के गहरे मुद्दे को दर्शाती है.

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