प्रगनाननंदा ने मां से सीखा चेक-मेट, FIDE विश्व कप में बनाई जगह

18 वर्षीय रमेशबाबू प्रगनानंदा, आनंद के बाद अपने साथी अर्जुन एरीगैसी के साथ टाई-ब्रेकर के बाद फिडे विश्व कप सेमीफाइनल में जगह पक्की करने वाले दूसरे भारतीय बने. प्रगनानंदा की जीत के पीछे उनकी मां का साथ और मेहनत शामिल थी.

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मिस्बाह
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क्रिकेट हो या हॉकी, फुटबॉल हो या चेस, भारतीय प्लेयर्स (Indian sports players) हर खेल में टॉप रैंकर्स (top rankers) रहे हैं. हाल ही में, अजरबैजान में चल रहे शतरंज  विश्व कप (Chess Championship in Azerbaijan) में, पहली बार, चार भारतीयों ने क्वार्टर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया - डी गुकेश, आर प्रगनाननंदा (Rameshbabu Praggnanandhaa), अर्जुन एरिगैसी और विदित गुजराती. विश्वनाथन आनंद ने इसे "भारतीय शतरंज के लिए ऐतिहासिक क्षण" बताया. 

फिडे विश्व कप सेमीफाइनल में जगह पक्की करने वाले दूसरे भारतीय बने प्रगनाननंदा

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18 वर्षीय रमेशबाबू प्रगनाननंदा, आनंद (Viswanathan Anand) के बाद अपने साथी अर्जुन एरीगैसी के साथ टाई-ब्रेकर के बाद फिडे विश्व कप (2023 FIDE World Cup Baku, Azerbaijan) सेमीफाइनल में जगह पक्की करने वाले दूसरे भारतीय बने (R. Praggnanandhaa entered FIDE World Cup semi-finals). उनकी जीत के बाद, एक खूबसूरत तस्वीर इंटरनेट पर वायरल हो गई. तस्वीर में प्रगनानंद की मां, नागलक्ष्मी दिख रही है, जो अपने विजयी बेटे को चेहरे पर संतोष और गर्व की मुस्कान के साथ देख रही हैं. 

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यह तस्वीर बताती है कि प्रगनाननंदा की जीत के पीछे उनकी मां का साथ और मेहनत शामिल थी (praggnanandhaa mother contribution). यह जीत जितनी प्रगनाननंदा की थी, उनकी उनकी मां की भी. एक और तस्वीर में, उनकी मां की आंखों में खुशी के आंसू दिखाई दिए (praggnanandhaa viral photos). 

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मां की वजह से प्रगनाननंदा को मिली सफ़लता

प्रगनाननंदा के पिता रमेशबाबू (praggnanandhaa's father) ने बताया, "इस जीत का श्रेय मेरी पत्नी को जाता है' चेस प्रोडिजी (Indian Chess Prodigy) की मां नागलक्ष्मी उनके साथ हर टूर्नामेंट में जाती, मनोबल बढ़ाती, और कभी हार न मानने देती. शतरंज के प्रतिभाशाली नाम बनने में उनकी मां ने न सिर्फ हिम्मत दी, पर पढ़ाई और चेस प्रैक्टिस को बैलेंस करने, टेलीविज़न का समय कम करने, और अनुशासन सिखाने में भी अहम भूमिका निभाई. घर से हज़ारों मील दूर अंतरराष्ट्रीय मैच में भी वह उन्हें घर का खाना बनाकर खिलाती. वह हर जगह इंडक्शन स्टोव और बर्तन साथ में ले जाती, ताकि प्रगनाननंदा को घर का खाना मिल सके. 

पुराने इंटरव्यू में नागलक्ष्मी बताती है कि, "प्रगनाननंदा जब खेलते तो मैच के दौरान शान्ति होती. मुझे डर लगता कि कहीं लोग मेरी धड़कनों की आवाज़ न सुन लें. मैं अपने बेटे से मैच के दौरान आंखें नहीं मिलाती, मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा जाने कि मैं क्या महसूस कर रही हूं."

मां के रूप में उनके योगदान और बलिदान ने शतरंज की दुनिया में प्रगनानंद को अपनी पहचान बनाने में अहम भूमिका निभाई. नागलक्ष्मी ने साबित किया कि मां से मिला समर्थन और सीख इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है. 

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