जिस तरह समुद्री किनारा नाविकों को सहारा देता है, उसी तरह मैंग्रोव समुद्री किनारों की रक्षा करते हैं. मैंग्रोव के कई फ़ायदे हैं – वे कटाव रोकते हैं, चक्रवातों को धीमा करते हैं, इकोसिस्टम की रक्षा करते हैं, कार्बन को सोखते हैं, और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पोषण का इंतज़ाम करते हैं (importance of mangrove conservation). एक बार मैंग्रोव ख़त्म हो गए, तो उन्हें दोबारा जीवित कर पाना मुश्किल का काम है. पर, कई संथाएं, स्थानीय समुदाय, और स्वयं सहायता समूह इस काम को संभव बना रहे हैं (mangrove forest in india).
गुजरात में कम हो रहा मैन्ग्रोव कवर
देश का 23.66% मैन्ग्रोव गुजरात में है (mangrove in Gujarat), लेकिन वहां का मैन्ग्रोव कवर कम होता जा रहा है. गुजरात के तटीय इलाकों में बसे गरीब जनजातीय समुदाय आजीविका के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं. घटते मैन्ग्रोव कवर की वजह से यहां के लोगों को तूफ़ान, भूकंप और गरीबी का सामना करना पड़ता है. इन नागरिकों ने, लंबे समय तक इन परिवर्तनों से जूझने के बाद, इसे रोकने के लिए समूह बनाया. गुजरात के भरूच जिले में कई स्थानीय समुदायों के मैंग्रोव को बचाने के लिए अभियान की शुरुआत की. इस पहल के ज़रिये समूह से जुड़े लोगों ने समुद्र तटों के किनारे बायोशील्ड बनाया. वह सब मिलकर मैंग्रोव और गैर-मैंग्रोव पौधे लगा रहे हैं. समुद्र के किनारे मैंग्रोव, बीच में नमक प्रतिरोधी साल्वाडोरा पौधा और गांव में चारा फसल, जड़ी-बूटियां और फलों के पेड़ लगाए.
बायोशील्ड बनाने में मिला SAVE और अडानी फाउंडेशन का साथ
अहमदाबाद (Ahmedabad) के गैर सरकारी संगठन विकास सेंटर फॉर डेवलपमेंट (VIKAS Center for Development) ने अपनी तकनीकी ब्रांच, सैलाइन एरिया वाइटलाइज़ेशन एंटरप्राइज लिमिटेड (SAVE) के साथ ये प्रोजेक्ट शुरू किया. इसके लिए आर्थिक सहायता अडानी फाउंडेशन (Adani Foundation helping conserve mangrove) ने की. सेव के मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश शाह बताते हैं, "बायोशील्ड एक ऐसी दीवार है जो कटाव रोकने के अलावा, मछली पकड़ने और चारे की पैदावार बढ़ाने में भी मदद करती है. यहीं नहीं, यह खार को रोक कर उपज भी बढ़ाती है."
टांकारी के गणपत मकवाना ने इस साल अपने दो एकड़ खेत से 2,800 किलो गेहूं उगाया. मकवाना को गेहूं और चारे की बिक्री से 40 हज़ार रुपये की आमदनी हुई. वृक्षारोपण के बाद खारी हवाओं और समुद्री पानी के बहाव में कमी आई, जिसकी वजह से ये संभव हो सका. जंबुसर में मैंग्रोव लगाने वाली परियोजनाओं की वजह से 15 तटीय गांवों के राठौड़ समुदाय के 600 लोगों को रोज़गार मिला है, जो 3 हज़ार परिवारों से जुड़े हैं.
जादवपुर विश्वविद्यालय (Jadavpur University), कोलकाता के स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक स्टडीज (School of Oceanographic Studies) के प्रोफेसर सौगत हाजरा कहते हैं, "भारत के दक्षिणी तट पर साल 2004 की सुनामी के बाद से बायोशील्ड का विचार तेजी से बढ़ा है. तरह-तरह की प्रजातियों वाला बायोशील्ड जैव विविधता लाने और तटीय समुदायों के लिए आजीविका के अवसर पैदा करने में मदद करेगा."
महिला स्वयं सहायता समूह से मिलेगी मैंग्रोव संरक्षण में मदद
मैंग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हैबिटेट्स एंड टैंगिबल इनकम (MISHTI) कार्यक्रम के ज़रिये भारत के नौ राज्यों में मैंग्रोव वाली 75 जगहों पर पौधे लगाने का अभियान चलाया जा रहा है. हाजरा बताते है कि MISHTI का विचार पश्चिम बंगाल के एक महिला स्वयं सहायता समूह (Self Help groups) से आया था, जिसने मैंग्रोव संरक्षण के लिए नरेगा फंड का इस्तेमाल किया था.
तमिलनाडु और महारष्ट्र में भी महिलाएं मैन्ग्रोव संरक्षण के प्रयासों को गति दे रही हैं. मैन्ग्रोव कवर को बचाने में स्वयं सहायता समूह मदद कर सकते हैं. उनकी एकजुटता, आजीविका बढ़ाने के प्रयास, और सरकार से मिलने वाले समर्थन का फायदा उठा मैंग्रोव संरक्षण तेज़ी से किया जा सकता है (SHG women conserving mangrove). मैंग्रोव को फिर से लगाना वास्तव में कठिन काम है, लेकिन जंबूसर के लोग एक-एक पौधा लगाकर इसे संभव बना रहे हैं, और दूसरे राज्यों के लिए उदाहरण बन रहे हैं.