माइक्रोफाइनेंस के ज़रिये स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं अपना उद्यम शुरू कर आर्थिक आज़ादी हासिल कर रही हैं. माइक्रोफाइनेंस (microfinance) पर हाल ही में आई नाबार्ड (NABARD) की रिपोर्ट ने बताया जहां तक स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups) की बचत का सवाल है, पहले स्थान पर आंध्र प्रदेश और दूसरे पर तेलंगाना है (AP Telangana top SHG savings).
आंध्र प्रदेश ने की 18,606 करोड़ रुपये की बचत
आंध्र प्रदेश के SHG ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बीच पहला स्थान हासिल करने के लिए कई बैंकों के साथ 18,606 करोड़ रुपये की बचत जमा की. तेलंगाना SHGs की बचत 5,156 करोड़ रुपये रही, जो अपने पड़ोसी तेलुगु राज्य से पीछे है.
स्वयं सहायता समूहों (SHG) पर बैंकों की बकाया राशि की बात करे, तो तेलंगाना में 97% SHG पर ऋण बकाया था, इसके बाद आंध्र प्रदेश (89%) का स्थान था. इससे पता चलता है कि आंध्र प्रदेश में प्रति SHG औसत ऋण वितरण सबसे ज़्यादा 7.64 लाख रुपये था, इसके बाद तेलंगाना (6.07 लाख रुपये) का स्थान था.
4.5 लाख से बढ़कर SHG की संख्या हुई 16.9 लाख
2003 में सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस द्वारा प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, आंध्र प्रदेश में लगभग 4.5 लाख SHG थे, जिनमें करीब 61.1 लाख गरीब महिलाएं शामिल थीं. 2023 में चार गुना बढ़ोतरी हुई और दोनों तेलुगु राज्यों में SHG की कुल संख्या 16.9 लाख हो गई, जिसमें लगभग 1.7 करोड़ महिलाएं सदस्य हैं.
1990 के दशक में, DWCRA (ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं और बच्चों का विकास) समूह आंध्र प्रदेश के कुछ जिलों में शुरू हुए. लेकिन 2000 के दशक की शुरुआत में महिला स्वयं सहायता समूहों में बढ़ोतरी देखने को मिली. समूहों की सफलता देखते हुए ये संख्या बढ़ने लगी.
स्माल क्रेडिट के साथ महिलाएं हासिल कर रहीं आर्थिक आज़ादी
आंध्र प्रदेश राज्य वित्त आयोग के सदस्य डॉ एम प्रसाद राव ने कहा कि SHG आंदोलन बांग्लादेश में शुरू हुआ. "स्वयं सहायता समूहों की शुरुआत का आधार यह था कि सार्वजनिक व्यवस्था में छोटे ऋण कार्यक्रमों की मदद से गरीबी को कम किया जाए. आंध्र प्रदेश जैसे राज्य में जहां वर्षा आधारित कृषि सबसे अहम आजीविका संसाधन है, छोटे ऋण के ज़रिये अपनी आमदनी बढ़ा पाएंगे. सार्वजनिक बैंकों ने स्थानीय साहूकारों की तुलना में SHG को सस्ते ऋण की पेशकश की. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दी जा रही स्माल क्रेडिट सुविधा ने महिलाओं को वित्तीय रूप से सशक्त बनाया है और उनकी आय में भी योगदान दिया है".
1992 में शुरू किए गए SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SHG bank linkage) के अनुसार, बैंकों को SHG को एक बड़ा ऋण देने की अनुमति दी गई थी. RBI ने वित्तीय संस्थानों को बिना कोलैटरल के SHGs को ऋण देने की अनुमति दी. SHG के ज़रिये बैंकों से मिलने वाली वित्तीय सहायता (financial assistance by SHGs) ने इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मंच दिया. इससे फाइनेंशियल इन्क्लूशन (financial inclusion) को बढ़ावा मिल रहा है और महिला सशक्तिकरण (women empowerment) हासिल करने का रास्ता भी आसान हो रहा है.