'तुम्हारे वो दिन चल रहे है', 'धीरे बोलो इन बातों के बारे में आसपास लोग है', ''अब 7 दिन किचन में मत जाना', 'बिना बाल धोए मंदिर मत जाना', और ऐसी कितनी बातें जो हर महीने में एक बार लड़कियों और महिलाओं को सुननी पड़ती है. जाने ऐसा कितना बड़ा राज़ है पीरियड्स, जो इसके बारें में बात भी कर लो, तो सारी नज़रें आपको देखने लगती है. पूरी दुनिया की आधी आबादी को होते है पीरियड्स वो भी हर महीने, हर व्यक्ति जनता है इस बारे में, लेकिन फिर भी बात करने के लिए ऐसी रोकते हो जैसे कोई गलत बात हो.
कुछ पीरियड्स मिथ्स
क्यूंकि इस बारें में कोई बात ही नहीं करना चाहता, पीरियड्स को लेकर ज़्यादातर लड़कियों के दिमाग में इतनी गलतफैमियाँ और मिथ्याएँ बैठी है, जिनकी कोई हद नहीं! शहरों में तो फिर भी हालात ठीक है, गांव के लोग तो आज भी इसे किसी बीमारी से कम नहीं समझते. हाल इतनी बुरे है, की अगर पता चल जाए की किसी महिला के पीरियड्स चल रहे, तो उससे अछूतों जैसा व्यव्हार करने लगते है. लोग कुछ ऐसी बातों को मान बैठे है, जो हद से ज़्यादा बेतुकी है. कुछ लड़कियां जो इन बातों पर सवाल उठाती है, उन्हें भी डाटकर चुप करा दिया जाता है.
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कहते है इन दिनों में बाल नहीं धोने चाहिए.
अगर पूछे क्यों तो कोई जवाब नहीं होगा. और अगर फिर भी पूछा तो बोल देंगे, 'हमने भी यही फॉलो किया, तुम्हे क्या दिक्कत है?' या बोलेंगे 'पीरियड्स के ब्लड फ्लो में दिक्कत आ जाती है'. भले ही इस बात का कोई भी साइंटिफिक प्रमाण नहीं है इन लोगों के पास.
आचार छूने और खाने को मना करते है.
इस बात का कोई तुक नहीं बनता, क्यूंकि कोई लड़की अगर पीरियड्स में है तो उसके अचार खा लेने से या छू लेने से क्या फर्क पड़ेगा? बोलते है अचार ख़राब हो जाता है. सच में हसी आती है इन बातों पर. और जहा तक रही अचार खाने के बात, तो खट्टी चीज़ों में 'विटामिन सी' भरपूर होता है, और ऐसे समय में जहा एक लड़की इतनी दर्द में हो, उसे इम्युनिटी बूस्ट करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, तो अचार और कोई भी खट्टी चीज़ खाना बेहद फाएदेमंद हुआ.
लोग तो ये भी कहते है की पीरियड्स के टाइम पर निकलने वाला खून गन्दा होता है.
बिना जाने, बिना समझे, जब लोग इस तरह की बात करें तो तरस आता है उनपर. पीरियड्स के टाइम पर यूटरस (बच्चादानी) की वॉल्स फट जाती है और इसीलिए ब्लड फ्लो होता है. यह एक बहुत नॉर्मल और नैचरल प्रोसेस है. इसे गंदा समझना बिलकुल ही बेतुकी बात है.
लोगों का मानना तो ये भी है कि पीरियड्स के टाइम पर किचन, और मंदिरों में नहीं जाना चाहिए.
क्यूंकि उन्हें भी यह बात बताई गयी और उन्होंने मान ली, बिना कोई सवाल किए, या ये पूछे कि ऐसा क्यों? किसी और बात को इतनी जल्दी माना हो या नहीं, लेकिन यह इतनी जल्दी मान लिया. आजतक ज़्यादातर परिवारों में लड़कियां किचन और मंदिरों में नहीं जाती क्यूंकि उनके घर में मना किया गया है.
कुछ विश्वासों और मिथकों को अपनी बात का ज़रिया बनाकर लोग लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के वक़्त ना जाने कितनी बातें बोल देते है. ना किसी वैज्ञानिक तथ्य को जानते है और ना ही अपना नज़रिया बदलने तैयार है ये लोग.
इन सब का कारण है, मेंस्ट्रुअल अवेयरनेस और नॉलेज की कमी.
स्कूल में भी जब इन सब चीज़ों के बारे में बताया जाता है, तो लड़कियों को अलग से बुलाकर वही समझते है जितना वे किताबों में पढ़ लेती है. कायदा तो यह कहता है की लड़कों को भी हर वो चीज़ बताई जाए, जो उनसे छुपाई जा रही है. यह कोई पाप नहीं है, जो जितने कम लोगों को पता हो उतना अच्छा. सोच में बदलाव तब आएगा जब लड़कियां सवाल करना शुरू करेंगी, और तबतक नहीं मानेंगी जब तक उन्हें सही जवाब और उनका हर हक़ नहीं मिल जाता.
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भारत में ऐसे बहुत से स्वयं सहायता समूह (SHG) भी काम कर रहे है जो गांव में माहवारी (Menstruation) के समय पर होने वाली मिथ्यों को ख़त्म करने के लिए काम कर रही है. Self Help Group से जुड़कर इन महिलाओं ने भी बहुत कुछ सीखा, जो अब ये दूसरों को भी सिखा रही है. इसीलिए हर ग्रामीण महिला को जुड़ना चाहिए इन समूहों से ताकि सबकी सोच में बदलाव आए.