भारत में बदल रहे Household Saving पैटर्न

पिछले वर्षों की तुलना में लोगों की वित्तीय संपत्ति में आई कमी पर मंत्रालय ने बताया कि इस गिरावट की वजह लोगों का फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट की बजाय रियल एस्टेट और वाहन जैसे टेंजिबल एसेट्स की ओर रुख करना है.  

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मिस्बाह
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House hold saving

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कितनी ही बार ऐसा हुआ कि अचानक ज़रुरत पड़ने पर मां ने किसी डिब्बे या कोने में रखे पर्स में से पैसे निकाल कर दिए. हाउसहोल्ड सेविंग (household saving) की ये आदत फाइनेंशियल संसाधनों (financial resources) तक पहुंच न होने पर, ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करती है. 

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"घरेलू बचत में आई गिरावट से कोई डिस्ट्रेस नहीं"- वित्त मंत्रालय 

नोटबंदी (demonetisation) के बाद इस बचत में काफी गिरावट (decline in household savings) देखी गई. जो बचत पहले  महिलाओं को आर्थिक आज़ादी (women's financial freedom) तक थोड़ी पहुंच देती थी, उसमें कमी नज़र आई. हालांकि, वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने घरेलू बचत में गिरावट की बात पर कहा कि लोग दूसरे वित्तीय उत्पादों (financial products) में निवेश कर रहे हैं और "कोई संकट नहीं है"

मंत्रालय द्वारा एक्स ('X' formerly Twitter) पर पोस्ट किए गए बयान ने घरेलू बचत (household savings) में इस दशक में हुई गिरावट और अर्थव्यवस्था (economy) पर इसके नकारात्मक प्रभाव से जुड़ी आलोचनाओं को खारिज करते हुए कहा, “डेटा बताता है कि तरह-तरह के वित्तीय उत्पादों के लिए उपभोक्ता की बदलती प्राथमिकता घरेलू बचत में कमी की मुख्य वजह है और कोई परेशानी नहीं है जैसा कि कुछ सर्कल्स में प्रसारित किया जा रहा है." 

संपत्ति बनाने के लिए निवेशों में दिखी बढ़त 

रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की मासिक बुलेटिन (RBI monthly bulletin) में जारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में नेट घरेलू बचत (net household savings) घटकर ग्रॉस घरेलू उत्पाद (gross domestic product) के 47 सालों में 5.1 % के सबसे निचले स्तर पर आ गई, जबकि पिछले साल यह 7.2 % दर्ज की गई थी. साथ ही, परिवारों की वार्षिक वित्तीय देनदारियां (annual financial liabilities) 2021-22 में 3.8 % की तुलना में नेट घरेलू उत्पाद (net domestic product) के 5.8 % तक तेजी से बढ़ीं. 

इन आंकड़ों पर वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) ने कहा कि जून 2020 और मार्च 2023 के बीच घरेलू ग्रॉस फाइनेंशियल एसेट (gross financial asset) का स्टॉक 37.6 प्रतिशत बढ़ गया, और घरेलू एनुअल फाइनेंशियल लायबिलिटीज (household financial liabilities) का स्टॉक 42.6 प्रतिशत बढ़ गया, दोनों के बीच कोई बड़ा अंतर नहीं है.

changing household saving trends in India

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पिछले वर्षों की तुलना में लोगों की वित्तीय संपत्ति में आई कमी पर मंत्रालय ने बताया कि इस गिरावट की वजह लोगों का फाइनेंशियल इन्वेस्टमेंट (financial investment) की बजाय रियल एस्टेट (real estate) और वाहन जैसे टेंजिबल एसेट्स (tangible assets) की ओर रुख करना है.  

एसेट बनाने के लिए लोन में दिखी बढ़ोतरी 

घरेलु उधारी में हुई बढ़त पर फाइनेंस मिनिस्ट्री (Finance Ministry) ने बताया कि मई 2021 से होम लोन में लगातार दोहरे अंकों में बढ़ोतरी हुई और सितंबर 2022 से वाहन लोन में साल-दर-साल 20% से ज़्यादा की वृद्धि दिखी. इस बढ़ी हुई उधारी का मतलब घरेलू क्षेत्र में वित्तीय संकट नहीं है, बल्कि संपत्ति बनाने के लिए किए निवेशों में ऋण के इस्तेमाल को बताता है. 

वित्त वर्ष 2013 में, परिवारों ने 13.8 लाख करोड़ रुपये के नेट फाइनेंशियल एसेट जोड़े, जो पिछले साल के 17 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2011 के 22.8 लाख करोड़ रुपये से कम है. इस बदलाव को मोटे तौर पर गैर-बैंकिंग वित्तीय निगमों (Non Banking Financial Corporations - NBFC) से घरेलू सेक्टर में क्रेडिट फ्लो (credit-flow) की बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो पिछले वर्ष के 21,400 करोड़ रुपये की तुलना में वित्त वर्ष 23 में 2,40,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 11.2 गुना बढ़ा है. 

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रीटेल लोन्स (retail loans) 3.95 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 5.22 लाख करोड़ रुपये हो गये, जिसमें माइक्रोफाइनेंस ऋण (microfinance loan) और स्वयं सहायता समूहों को दिए लोन (loan given to self help groups) शामिल हैं. इस तरह के स्मॉल क्रेडिट से महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार आया है (importance of small credit for women).

भारत में बेहतर हो रहा फाइनेंशियल मैनेजमेंट 

यह आंकड़े बताते हैं कि भारत में घरेलू बचत पैटर्न (changing household savings pattern in India) में काफी बदलाव आया है, पारंपरिक बचत में कमी आई है और अचल संपत्ति की ओर झुकाव बढ़ा है. यह बदलाव परिवारों के बीच वित्तीय संकट की ओर नहीं बल्कि, लोगों की बदलती प्राथमिकताओं और फाइनेंशियल मैनेजमेंट पर बढ़ते विश्वास को दर्शाता है. 

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वित्त मंत्रालय ने यह आश्वासन दिया कि यह बदलाव एक स्वाभाविक प्रगति है, जो चिंता की वजह नहीं. जैसे-जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित (developing Indian economy) हो रही है, वैसे-वैसे लोगों का वित्तीय व्यवहार भी बदल रहा है. ये बदलता व्यवहार बढ़ते फाइनेंशियल मैनेजमेंट (financial management) और फाइनेंशियल इन्क्लूशन (financial inclusion) की ओर इशारा करता है, जो आर्थिक विकास के लिए अहम है.

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