बिहार (Bihar) राज्य की कुल जनसंख्या का करीब 88.71 % ग्रामीण क्षेत्रों (rural Bihar) में निवास करते हैं. राज्य के 10 लाख से ज़्यादा SHG ग्रामीण बिहार में आर्थिक क्रान्ति (financial revolution) का ज़रिया बन रहे हैं. जीविका (Jeevika) के नाम से पहचाने जाने वाले स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) महिलाओं को छोटे लोन (micro-credit) तक आसान पहुंच देकर उनके जीवन में अहम बदलाव ला रहे हैं. इन समूहों से जुड़ महिलाएं साथ मिलकर लोन (loan) लेती हैं, साथ काम करती हैं, और साथ ही लोन चुकाती हैं.
नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकॉनोमिक रिसर्च ने रिस्क शेयरिंग पर रिसर्च की प्रकाशित
नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकॉनोमिक रिसर्च (National Bureau of Economic Research) में प्रकाशित ओरेजियो अटानासियो, अंजिनी कोचर, अपराजित महाजन और वैष्णवी सुरेंद्र के शोध ने SHG के साथ जुड़ रिस्क शेयरिंग पर दिलचस्प निष्कर्ष निकाले (Research on risk sharing through SHG). शोध से पता चला कि इन समूहों की जोखिम साझा करने की प्रभावशीलता उनकी प्रशासनिक क्षमता से जुड़ी हुई है.
अध्ययन में पाया गया कि रिस्क शेयरिंग में सुधार सिर्फ कुछ ब्लॉकों में ही देखा जा सकता है, जिनमें पहले से SHG बड़ी संख्या में मौजूद हैं. ब्लॉक में पहले से मौजूद SHG की संख्या ने अहम भूमिका निभाई. चरण 1 और चरण 2 ब्लॉकों में SHG के भीतर सामाजिक आर्थिक विशेषताओं (socio-economic characteristics) में समानताएं होने के बावजूद, उनकी गुणवत्ता (quality) में असमानता देखी गई. गुणवत्ता को पंचसूत्र स्कोर (SHG Panchsootra) का इस्तेमाल कर मापा गया है, जो बचत (savings), उधार, समूह की बैठकों में भागीदारी, ऋण पर डिफ़ॉल्ट (loan defaulters) और रिकॉर्ड-कीपिंग (record-keeping) सहित कई मापदंडों पर SHG का आकलन करता है.
रिस्क शेयरिंग पर दिखा SHG संख्या का प्रभाव
रिस्क शेयरिंग में सुधार केवल उन ब्लॉकों में हुआ जहां पहले से मौजूद SHG की संख्या ज़्यादा थी. यह रिसर्च स्वयं सहायता समूह (swayam sahayta samooh) की सफलता में प्रशासनिक क्षमता की अहम भूमिका पर जोर देती है, खासकर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) से मिलने वाले SHG के समर्थन पर. शुरुआती दौर में SHG की सफलता क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाओं को समूह से जुड़ने और रिस्क शेयरिंग में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती है.
प्रशासनिक क्षमता की मज़बूती से बढ़ेगी रिस्क शेयरिंग
उन क्षेत्रों में रिस्क शेयरिंग में उल्लेखनीय रूप से सुधार देखा गया जहां इसकी संस्थागत क्षमता ज़्यादा हो और इसे बेहतर ढंग से लागू किया जा रहा हो. SHG सदस्यों के बीच रिस्क शेयरिंग को बढ़ावा देने के लिए नीति निर्माताओं को प्रशासनिक क्षमता को मजबूत करना होगा, खासकर कार्यक्रम विस्तार के शुरुआती चरणों में. इस हिसाब से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) की भूमिका अहम हो जाती है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में लाभों तक समान पहुंच सुनिश्चित करता है. प्रशासनिक क्षमता और SHG गुणवत्ता को प्राथमिकता देकर, हम कमजोर आबादी के बीच वित्तीय समावेशन से आर्थिक आज़ादी को बढ़ावा दे सकते हैं.