जिस तरह हमारे देश में भाषा, परम्पराओं और संस्कृति के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं, उसी तरह भारत का आर्थिक लैंडस्केप (economic landscape) भी काफी विविध है. इस विविध आर्थिक परिदृश्य में, सभी के विकास पर ध्यान देने के लिए फाइनेंशियल इन्क्लूशन (financial inclusion) को बढ़ावा दिया जा रहा है.
स्मॉल क्रेडिट के ज़रिये बढ़ रहा फाइनेंशियल इन्क्लूशन
कम आय वाले समुदायों की आर्थिक ज़रूरतों (financial needs) को पूरा करने के लिए माइक्रोफाइनेंस (microfinance) के ज़रिये उन्हें छोटे लोन तक पहुंच दी गई, ताकि पर्सनल और प्रोफेशनल ज़रूरतें (personal and professional needs) पूरी की जा सके. जब देखा गया कि ऑर्गनाइज़्ड सेक्टर (organized sector) में रोज़गार न होने की वजह से महिलाएं आर्थिक संसाधनों (financial resources) तक नहीं पहुंच पा रही हैं, तो स्वयं सहायता समूहों (self help groups) की शुरुआत की गई.
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सेल्फ हेल्प ग्रुप्स (SHG) पूरे देश में वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को बढ़ाने और हाशिए पर रहने वाली शहरी या ग्रामीण महिलाओं (rural women) को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं.
क्या माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूह फाइनेंस एक है?
माइक्रोफाइनेंस और स्वयं सहायता समूह, दोनों का ही लक्ष्य सीमित आय वाले परिवारों के लिए वित्तीय समावेशन और सशक्तिकरण का ज़रिया बनना है (aim of MFI and SHG), पर यह दोनों एक जैसे नहीं. ऋण देने की प्रथाओं में दोनों काफी भिन्न हैं (difference between microfinance and SHG finance). चलिए जानते हैं कैसे-
अप्रोच में अंतर
स्वयं सहायता समूह, जो अपने कम्युनिटी डेवलपमेंट (community development) को प्राथमिकता देने के लिए जाने जाते हैं, सदस्यों को लोन लेने से पहले बचत (SHG saving) को प्रमोट करते हैं. एक दूसरे को ज़रुरत पड़ने पर जमा की हुई राशि लोन के रूप में दी जाती है. इससे समुदाय में विश्वास और एक दूसरे की सहायता करने की भावना बढ़ती है. (What is the main objective of SHG?)
SHG फाइनेंस का रोल तब आता है जब ये महिलाएं साथ मिलकर रोज़गार के लिए या अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेना चाहती हैं. ये लोन सदस्यों की ज़रूरतों और उनकी चुकाने की क्षमता के अनुरूप होते हैं, आमतौर पर छोटे और कम समय के लिए दिए जाते हैं. SHG वित्तीय सहायता (financial assistance) को बढ़ावा देते हैं. SHG से ऋण प्राप्त करने के लिए कोलेटरल की शर्त नहीं होती (collateral free loan).
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दूसरी और, माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट्स (microfinance institutes) उन लोगों के लिए काम करते हैं जिनके पास पारंपरिक वित्तीय सेवाओं तक पहुंच नहीं है. लोन लेने वाले व्यक्ति की लोन भुगतान क्षमता के आधार पर उसे लोन दिया जाता है. एमएफआई (MFI) इन ऋणों पर ब्याज वसूलते हैं, जो अक्सर बैंकों द्वारा तय की गई दरों से ज़्यादा ही होती है. सुरक्षा के रूप में कोलेटरल की ज़रुरत होती है.
SHG समुदाय के बीच सहयोग को प्रेरित करते हुए स्व-सहायता को बढ़ावा देते हैं, जबकि एमएफआई (MFI) उन व्यक्तियों और समूहों को औपचारिक वित्तीय दृष्टिकोण अप्रोच (formal financial approach) प्रदान करते हैं, जो मुख्यधारा की बैंकिंग सेवाओं (banking services) से बाहर हैं.
अलग ब्याज दर सीमा
SHG अपने सदस्यों को 6-8% की उचित ब्याज दर सीमा (SHG loan interest rate) पर ऋण प्रदान करते हैं. ऋण राशि पर कोई ब्याज नहीं लगाया जाता, हालांकि SHG मामूली सेवा शुल्क ले सकते हैं. 10 लाख तक के लोन के लिए SHG को कोलेटरल (collateral) या मार्जिन रिक्वायरमेंट की ज़रुरत नहीं होती. SHG में बैंकों द्वारा इवैल्यूएशन या ग्रेडिंग प्रक्रिया के बाद बचत-से-ऋण अनुपात 1: 1 से 1: 4 के बीच बचत से जुड़े ऋण लेने की क्षमता है.
MFI अलग ऋण देने वाले मॉडल के साथ काम करते हैं, जो अक्सर ऐसी ब्याज दरें लेते हैं जो पारंपरिक बैंकों (traditional banks) से काफी ज़्यादा होती है. इस ब्याज दर की रेंज सालाना 12 से 150 प्रतिशत तक हो सकती है.
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रिस्क शेयरिंग होना
MFI और SHG फाइनेंसिंग में देनदारी का बंटवारा (SHG and MFI risk sharing difference) काफी अलग है. MFI में, ऋण किसी व्यक्ति या समूह को दिया जाता है, और उधारकर्ता ऋण के भुगतान के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होता है, जबकि SHG फाइनेंसिंग में, ऋण समूह को दिया जाता है, जिसकी रीपेमेंट (loan repayment) की ज़िम्मेदारी साझा होती है. रिस्क शेयरिंग की वजह से समूह के सदस्य साथ काम करते हैं, बचत करते हैं, एक दूसरे की फाइनेंशियल लिट्रेसी (financial literacy) का ध्यान रखते हैं, और कम्युनिटी डेवलपमेंट (community development) का लक्ष्य पूरा करते हैं.
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लोन प्रक्रिया में भिन्नता
MFI नगवठित समूहों को उनके गठन के 10-15 दिनों के अंदर ऋण दे देते हैं, जिसे आमतौर पर व्यक्तियों को दिया जाता है. SHG फाइनेंसिंग (about SHG financing in Hindi) की तुलना में MFI में ऋण वितरण प्रक्रिया (microfinance loan distribution process) तेज़ है. SHG को बैंकों और दूसरी वित्तीय संस्थानों से ऋण मिलता है. लोन की राशि पूरे समूह को दी जाती है. यह राशि सदस्यों की जरूरतों और पुनर्भुगतान क्षमता पर आधारित होती है, और MFI की तुलना में SHG फाइनेंसिंग में ऋण वितरण प्रक्रिया (SHG loan process) धीमी होती है.
SHG सदस्यों को 13 सूत्रों (SHG 13 sutra) का पालन करना अनिवार्य है. जिसमें से नियमित साप्ताहिक बैठक, नियमित साप्ताहिक बचत, नियमित लेनदेन, और नियमित ऋण वापसी का आकलन कर उन्हें लोन दिया जाता है.
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आर्थिक संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच
लिंग के आधार पर वित्तीय समावेशन (gender based financial inclusion) की बात की जाये, तो माइक्रोफाइनेंस की तुलना में, SHG फाइनेंसिंग ज़्यादा महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त (financial empowerment of women) बनाती है. SHG महिला केंद्रित योजना (women centric scheme) होने के नाते, महिलाओं को उद्यमिता से जोड़ती है और उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए एक मंच प्रदान करती है.
दूसरी ओर, MFI समुदायों की गरीबी कम करने में अहम भूमिका निभाता हैं (role of MFI in reducing poverty). भारत के कई हिस्सों में सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए SHG, महिलाओं के लिए उपलब्ध एकमात्र प्रमुख (importance of SHG for women) ज़रिया है.
अप्रोच अलग, पर SHG और MFI का लक्ष्य फाइनेंशियल इन्क्लूशन
आजीविका मिशन (Ajeevika Mission), देवास की जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) शीला शुक्ला (Sheela Shukla) बताती हैं, "SHG फाइनेंसिंग महिलाओं को सामूहिक प्रगति के लिए प्रेरित करती है. आस-पास रहने वाली महिलाएं समूह बनाती हैं. पहले से जान-पहचान होने की वजह से साथ काम करना आसान होता है. MFI में अक्सर लोन लेने वालों को ब्याज दर की पूरी जानकारी नहीं होती. इसके विपरीत, समूह में काफी ट्रांसपेरेंसी (transparency in SHG) होती है."
वह आगे कहती है, "साथ ही, SHG फाइनेंसिंग में महिलाओं की आमदनी और उनकी क्षमता को देखते हुए रीपेमेंट इन्सटॉलमेंट (repayment installment) तय की जाती है. माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूट फिक्स्ड नियमों का पालन करते हैं. जिस वजह से हम ये कह सकते हैं कि SHG फाइनेंसिंग, माइक्रोफाइनेंसिंग के विपरीत संवेदनशीलता और लेनदार की क्षमताओं को ध्यान में रखती है."
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SHG फाइनेंसिंग महिलाओं की आर्थिक आज़ादी (financial freedom) पर ध्यान देते हुए, और माइक्रोफाइनेंस संस्थान (microfinance institutes) वंचित वर्गों को आर्थिक संसाधनों (financial resources) तक पहुंच देते हुए, भारत के आर्थिक विकास (economic development) में योगदान दे रहे हैं. दोनों ही तरीके यह सुनिश्चित करने में सहायक बन रहे हैं कि वित्तीय समावेशन (financial inclusion) इस विविध देश के हर कोने तक पहुंचे.