लोकतंत्र में नंबर एक शक्तिशाली भूमिका निभाते है. भारत 18वीं लोकसभा चुनाव के लिए मतदान कर रहा है, आज़ादी के बाद 1951 के पहले लोकसभा चुनाव (LokSabha Elections) से लेकर 2024 तक कई ऐसे नंबर और डेटा सामने मौजूद है जो लोकतंत्र की कहानी सुनाते है.
स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक 1951-52 में अपने पहले आम चुनाव से सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (universal adult franchise) का उपयोग रही है. यह वास्तव में ऐतिहासिक है कि भारत में सभी वयस्क महिला राष्ट्र के जन्म के बाद से ही वोट देने के लिए पात्र बनी. ब्रिटेन और अमेरिका जैसे दुनिया के अधिकांश विकसित और शक्तिशाली देशों में, महिलाओं के लिए मताधिकार एक लंबी, थकाऊ और संघर्षशील प्रक्रिया के बाद हासिल किया गया.
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1990 के दशक तक महिलाओं का मतदान पुरुषों से काफी कम
महिलाओं के मतदान अधिकार (Women Voting Rights) की उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद, 1990 के दशक तक महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में काफी कम रहा. हालांकि यह प्रवृत्ति हाल के वर्षों में एक बड़े बदलाव के दौर से गुजरी है. पहले और दूसरे आम चुनाव में महिला मतदाता (Female Voters) का डेटा मौजूद नहीं है क्योंकि लिंग आधारित मतदान डेटा चुनाव आयोग ने 1962 के बाद से ही रखना शुरू किया.
पहले आम चुनाव की रिपोर्ट्स बताती है की कैसे करीब 40 लाख महिलाओं ने वोटर लिस्ट में अपने नाम फलाना ' की पत्नी ' या फलाना ' की बेटी ' से दर्ज़ कराये, ना की खुद के नाम से. भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) सुकुमार सेन (Sukumar Sen)इस से खुश नहीं थे. चुनाव आयोग (Election Commission) ने जागरूकता कार्यक्रम चला कर महिलाओं को अपने नाम मतदाता सूची में लिखवाने को प्रेरित किया.
इन सबके बावजूद पहले आम चुनाव के लिए भारत में लगभग 80 मिलियन महिला मतदाताओं में से, लगभग 2.8 मिलियन अंततः अपने उचित नाम का खुलासा करने में विफल रहीं, और उन्हें मतदाता सूची से बाहर करना पड़ा.
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2019 में महिलाओं ने पुरुषों के मुक़ाबले 1.7% ज़्यादा किया वोट
1962 और 1967 के चुनावों में महिला मतदान कम रहा. 1962 में 46.6% महिला मतदान हुआ जो की 1967 में बढ़कर 55.5% तक पहुंचा. लेकिन 1971 के चुनाव में यह गिरकर 49.1% पर रहा. इन सालों में पुरुष और महिला मतदान में 11 से 17% का अंतर रहा. 1991 के चुनाव से यह अंतर लगातार कम हुआ, 2014 के 16वें आम चुनाव में यह अंतर घटकर 1.4% पर आया जबकि 2019 के आम चुनाव में महिलाओं ने 1.7% से पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा वोट किया. जहां 2009 में 64 लोकसभा सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से ज़्यादा वोटिंग की वही 2019 में बढ़कर 143 हो गयी.
महिला वोटर की संख्या बढ़ने के प्रमुख कारण शिक्षा, सोशल मीडिया, कम्युनिकेशन है. इन सब कारणों से महिलाओं की राजनीतिक चेतना बढ़ी है. महिला वोटर टर्नआउट तो बढ़ा है लेकिन राजनैतिक नीति निर्धारण, प्रचार और सभाओं में उनकी संख्या अभी भी कम है.