भारतीय राजनीति के गतिशील लैंडस्केप में, निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) वह शख्सियत है जो लैंगिक चुनौतियों को तोड़कर, धारणाओं को नया आकार देकर प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में उभरी हैं. भारत की पहली फुल-टाइम महिला वित्त मंत्री (India's first full-time female finance minister) बनने का सफ़र उनके दृढ़ निश्चय और लीडरशिप (leadership) का प्रमाण है. निर्मला सीतारमण की लीडरशिप न केवल पारंपरिक मानदंडों को चुनौती देती है, बल्कि देश में महिला सशक्तिकरण (women empowerment) की विकसित होती कहानी को भी उजागर करती है.
महिलाओं के लिए बनी रोल मॉडल
सीतारमण की उपलब्धियां महिलाओं के लिए पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान फील्ड (male-dominated field) में अपनी पहचान बनाने की क्षमता का प्रमाण हैं. सरकार में प्रमुख पदों पर रहकर, वह रोल मॉडल (role model) बनी, जो महिलाओं को राजनीति (politics) और प्रशासन में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. घरों में जहां अक्सर महिलाओं को पैसों से जुड़े फैसलों से दूर रखा जाता है, वहीं वित्त मंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति जटिल आर्थिक मामलों के प्रबंधन में महिलाओं की क्षमताओं के बारे में शक्तिशाली संदेश देती है.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि महिलाएं समाज में अपनी स्थिति तभी सुधार सकती हैं जब वे सभी क्षेत्रों में लीडरशिप पोसिशन्स को संभालेंगी. उन्होंने कहा कि महिलाएं अपनी इंडस्ट्री (industry) में नेतृत्व की भूमिका स्वीकार कर, दूसरी महिलाओं के अधिकारों (women's rights) की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ कर सकती हैं. सामाजिक वजहों और आत्मविश्वास में कमी की वजह से महिलाएं नेतृत्व पदों पर नहीं रहना चाहतीं. एक सर्वे ने बताया कि कॉरपोरेट्स के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों के कई पद खाली थे क्योंकि इन पदों के लिए योग्य महिलाएं उपलब्ध नहीं थीं.
"बदलाव परिवारों के भीतर से आना चाहिए"- सीतारमण
भाषा के ज़रिये अक्सर महिलाओं के प्रति भेदभाव को बढ़ावा दिया जाता है. 'हमने चूड़ी नहीं पहन राखी है', 'लड़कियों की तरह मत रो'- इस तरह की बातें अक्सर सुनने को मिलती है. निर्मला सीतारमण ने कहा कि भाषा को लिंग-संवेदनशील (gender sensitive language) होना चाहिए और गलत भाषा को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए. महिलाओं की सुरक्षा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ कानून महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए काफी नहीं हैं. उनका मानना है कि समाज को लड़कियों और महिलाओं पर अत्याचारों को रोकने के लिए विश्वास दिखाना चाहिए. बदलाव परिवारों के भीतर से आना चाहिए और लड़कियों के प्रति समाज का नज़रिया बदलना होगा.
नारीवाद के पश्चिमी मॉडल (westen model of feminism) को अस्वीकार करने की ज़रुरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि नारीवाद महिला-केंद्रित नहीं होना चाहिए. महिलाओं की सुरक्षा और उनमें सुरक्षा की भावना पैदा करने की प्रक्रिया से पुरुषों को बाहर नहीं किया जाना चाहिए. महिलाओं के फाइनेंशियल इन्क्लूशन (financial inclusion) और मैटरनिटी बेनिफिट्स (maternity benefits) को बढ़ाने के उनके प्रयास सही दिशा में उठाए गए कदम हैं. निर्मला सीतारमण का योगदान दृढ़ता की शक्ति और सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की क्षमता के प्रमाण के रूप में खड़ा है, जो समान समाज की उम्मीद जगाता है.