कॉर्पोरेट एक ऐसी दुनिया जहां लाभ (Profit) ही सबकुछ है, वहां कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility CSR) सामाजिक विकास का लाभ कमाने के साथ सकारात्मक बदलाव के प्रतीक के रूप में उभरा है.
बढ़ती CSR गतिविधियों ने व्यवसाय और समाज दोनों पर प्रभाव डाला है. वैश्विक परिदृश्य से लेकर देश के CSR पर नज़र डाले तो देखने में आता है कि CSR में महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित पहलों में उल्लेखनीय वृद्धि है. विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) की एक रिपोर्ट के अनुसार 80% से अधिक सीईओ व्यवसाय और सामाजिक जिम्मेदारी के आवश्यक एकीकरण में विश्वास रखते है. बड़े कॉर्पोरेट्स अब महिलाओं के उत्थान के लिए बनाई गई पहलों पर विशेष जोर देते हुए व्यापक रणनीतियां बना रहे है.
2021 में, ग्लोबल सीएसआर ट्रैकर (Global CSR Tracker) से पता चला की सामाजिक पहल (social initiatives) पर कॉर्पोरेट खर्च में 15% की बढ़ोतरी के साथ यह 22.9 बिलियन डॉलर तक पहुंचा. इसमें महत्वपूर्ण यह है की, 32% विशेष रूप से महिलाओं को सशक्त बनाने कार्यक्रमों के लिए आवंटित किया गया. इससे सतत विकास में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित होती है.
भारत में 2013 के कंपनी अधिनियम (The Companies Act of 2013) ने CSR पहल को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस कानूनी आदेश ने कंपनियों को अपने मुनाफे का एक प्रतिशत CSR के लिए आवंटित करने को अनिवार्य किया. भारत के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affairs) ने खुलासा किया कि 2020-21 के दौरान CSR पर 18,904 करोड़ रुपये (लगभग 2.5 बिलियन डॉलर) खर्च किए गए. इसका 20% महिला शिक्षा, महिला स्वास्थ्य और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर खर्च किया गया.
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महिला सशक्तिकरण पर CSR पहल
विश्व स्तर पर कंपनियां लैंगिक अंतर (gender gap) को पाटने वाली पहल में निवेश करके बदलाव ला रहे है. विकासशील देशों में महिलाओं को डिजिटल साक्षरता प्रदान करने और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए डिजिटल शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों के साथ यह पहल आगे बढ़ रही है. महिलाओं के लिए बढ़ती स्वास्थ्य सेवाओं में CSR सबसे महत्वपूर्ण है. वैश्विक स्तर पर टीकाकरण अभियान इसका उदाहरण है. साथ ही महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के प्रयास भी लगातार CSR के माध्यम से हो रहे है. महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर पैदा करने के केंद्र में CSR है. CSR के माध्यम से हो रही ऐसी पहल, ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बना रही है. महिला उद्यमिता (entrepreneurship) की भावना को बढ़ने के लिए कई CSR अभियान शुरू हुए है. डिजिटल लिंग अंतर (digital gender gap) एक गंभीर वैश्विक चिंता है. 'वीमेन विल' (Women Will) और 'स्किल टू सक्सीड' (Skill to Succeed) जैसी CSR पहल, इस अंतर को पाटने के लिए सक्रिय है.
CSR का सफर
20वीं सदी के अंत तक, CSR ब्रांड वैल्यू (brand value) बढ़ाने और सस्टेनेबिलिटी (sustainability) को बढ़ावा देने का एक साधन बन गया. दुनिया भर की सरकारों ने CSR की आवश्यकता को पहचाना. भारत के कंपनी अधिनियम (Companies Act) जैसे कानून ने न केवल CSR गतिविधियों को अनिवार्य किया बल्कि उन्हें औपचारिक रूप भी दिया. उन्हें व्यावसायिक नीतियों में एकीकृत किया गया, जो सामाजिक कल्याण के प्रति वास्तविक प्रतिबद्धता को दर्शाता है. CSR ने मुनाफे, लोगों और समाज के बीच सामंजस्य स्थापित किया. व्यवसायों ने सफलता को न केवल वित्तीय दृष्टि से, बल्कि सतत विकास को बढ़ावा देने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय योगदान से भी मापना शुरू कर दिया. CSR ने अपना दायरा बढ़ाया, जिम्मेदारी का एक धागा बुना जो संपूर्ण व्यवसाय और उत्पाद को शामिल करता है.
CSR का भविष्य
उभरती वैश्विक चुनौतियों के बावजूद CSR का विकास जारी रहने की उम्मीद है. CSR समाज में कॉर्पोरेट्स की बदलती भूमिका को प्रतिबिंबित करता है. सस्टेनेबिलिटी (sustainability) और एथिकल प्रेक्टिस (ethical practices) की आवश्यकता को पहचानते हुए, कॉर्पोरेट्स की जिम्मेदारी और जवाबदारी CSR की अनेक पहल पूरी हुई है और भविष्य के लिए नए दरवाज़े खोलती है.
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