टीचर की डांट और प्रेम के रंग बचपन की यादों को और रंगीन कर देते हैं. पनिशमेंट हो या अहम सबक- टीचर की सिखाई हर बात ने हमें वो बनाया जो आज हम हैं. बचपन में सीखी बातें उम्रभर काम आती हैं. हमारी संस्कृति में गुरु को ईश्वर का दर्जा दिया है. महिला शिक्षक (female teachers) कई वजहों से शिक्षा और समाज में अहम भूमिका निभाती हैं (importance of female teachers).
हमारे देश के समाज और इतिहास को सही आकर देने में कई महिला शिक्षकों (influential female teachers) ने योगदान दिया.
भारत की प्रभावशाली महिला शिक्षक
सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) भारत की पहली महिला शिक्षक थी (first female teacher). सावित्रीबाई फुले ने जाति व्यवस्था और पुरुष वर्चस्व जैसी बाधाओं पर विजय हासिल की. उन्होंने 'नेटिव लाइब्रेरी' और लड़कियों के लिए स्कूल शुरू किया.
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फातिमा शेख (Fatima Sheikh) शिक्षिका और समाज सुधारक थीं, जो ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं. वह भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक (India's first Muslim female teacher) मानी जाती है. उन्होंने महिलाओं और वंचित समुदायों को शिक्षित और सशक्त बनाने के लिए याद किया जाता है.
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बेगम ज़फ़र अली (Begum Zafar Ali) एक विधायक, सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षा की समर्थक थीं, जो कश्मीर की पहली महिला मैट्रिक पास (1930) थीं.1977 से 1982 तक, वह विधान सभा की सदस्य रहीं, जहां उन्होंने शिक्षा, महिला अधिकार (women's right) जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की.
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स्वतंत्रता सेनानी दुर्गाबाई देशमुख (Durgabai Deshmukh) ने महिलाओं को बुनाई और कताई की शिक्षा देने के लिए स्कूलों की स्थापना की. देशमुख ने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के बाद अपना एम.ए. और लॉ की डिग्री पूरी की. युवा महिलाओं को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) मैट्रिक परीक्षा देने के लिए तैयार करने के लिए, उन्होंने 'आंध्र महिला सभा' का भी गठन किया.
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महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) प्रसिद्ध भारतीय कवयित्री, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् (educationist) थीं. उन्होंने प्रयागराज में प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रिंसिपल और कुलपति दोनों के रूप में काम किया और बालिका शिक्षा पर ज़ोर दिया.
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शिक्षा में चंद्रप्रभा सैकियानी (Chandraprabha Saikiani) का योगदान आज भी असम राज्य में महसूस किया जाता है. उन्होंने वर्तमान में सक्रिय असम प्रादेशिक महिला समिति की स्थापना की. तेजपुर विश्वविद्यालय ने 2009 में महिला अध्ययन के लिए चंद्रप्रभा सैकियानी केंद्र की भी स्थापना की.
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80 साल की उम्र में विमला कौल (Vimla Kaul) ने दिल्ली के मदनपुर खादर गांव में बच्चों को शिक्षित करने के लिए हर संभव प्रयास किया. दिल्ली (Delhi) के सरिता विहार में सुविधाओं की कमी के बावजूद उन्होंने वंचित वर्ग के बच्चों को पढ़ाना नहीं छोड़ा.
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लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ती हैं फीमेल टीचर्स
यह महिला शिक्षक (inspiring women educationist in hindi) छात्रों, खासकर युवा लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनी. कक्षा में महिलाओं को नेतृत्व के रूप में देखना लड़कियों को आत्मविश्वास के साथ पढ़ाई और करियर से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रेरित करती हैं (inspiring female techers). क्लासरूम में महिला टीचर्स की मौजूदगी लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ती है और छात्रों को अपनी क्षमताओं पर विश्वास करने के लिए प्रोत्साहित करती है.
महिला शिक्षक ज्ञान, नया नज़रिया, कौशल और आत्मविश्वास प्रदान करके छात्रों को सशक्त बनाती हैं. वे ऐसा वातावरण बनाती हैं जिसमें छात्र सिर्फ शैक्षणिक नहीं, भावनात्मक रूप से भी विकसित हो सके.
लैंगिक समानता और आत्म-सम्मान को बढ़ाने में भी करती हैं मदद
महिला शिक्षक सिर्फ टीचर नहीं एक दोस्त बनकर छात्रों, खासकर महिला छात्रों के सामने आने वाली चुनौतियों और अनुभवों को साझा करती हैं. यह सहानुभूति लैंगिक समानता (gender equality in classroom) और आत्म-सम्मान को बढ़ाने में भी मदद करता है. वे अपने समुदायों में शिक्षा को बढ़ावा देने और इसकी अहमियत की वकालत करने में अहम भूमिका निभाती हैं.