भारत आई 1947 में जब सब आज़ादी का जश्न मना रहे थे लेकिन कुछ थे जो अपने परिवार और अपने लोगों को छोड़कर आगे बढ़े. उनके परिवार वाले मारे जा रहे थे लेकिन फिर भी पास बैठकर रोने का भी समय नहीं था. लीला पूनावाला (Lila Poonawalla) जो भारत आई तो थी रेफ्यूजी बनकर, लेकिन आजतक इतनी उपलब्धियां अपने नाम कर चुकीं है जिनका कोई मुकाबला करना चाहे तो भी नहीं कर सकता.
सिंध में हुआ था लीला पूनावाला का जन्म
जब वे भारत आई तो उनके परिवार को सँभालने वाला एक स्तंभ नहीं रहा था, जो थे उनके पिता. बटवारे में वे मारे गए थे. 8 लोगों के परिवार को सँभालने के लिए सिर्फ उनकी मां. पढ़ी लिखी नही थी तो कोई नौकरी भी नहीं मिल रही थी. छोटी नौकरियां जैसे पापड़ बनाना, आदि, कर के अपने परिवार का पेट भर रही थी वो. होने बेटे को 11 साल की उम्र में ही नौकरी करने के लिए कहा लीला पूनावाला की मां ने.
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लीला अपने घर के हालात देख रही थी. एक दिन उनकी मां ने उन्हें कहा- "तुम्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है. भाई तो अपना रास्ता खुद ढूंढ लेंगे लेकिन तुम्हें सब खुद समझना पड़ेगा. अगर आज मैं पढी लिखी होती तो मुझे ये परेशानियां नहीं आ रही होती."
भारत की पहली फीमेल इंजीनियर
लीला पूनावाला को यह बात समझ आई और उन्होंने मन लगाकर पढ़ना शुरु कर दिया. उन्होंने 1967 में पुणे विश्वविद्यालय (Pune University) के Government college of engineering से mechanical engineering में graduation खत्म किया. जब एक लड़की की पढ़ाई पर भी कई सवाल उठते थे, उस वक़्त उन्होंने पुरुषों की field कही जाने वाली पढ़ाई को पूरा किया, वो भी first division में. वह भारत की पहली female mechanical engineer (first female mechanical engineer of India) थी.
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उन्होंने अपने करियर की शुरुआत Ruston and Hornsby नाम की कंपनी से एक apprentice के रूप में की, जहां उनकी मुलाक़ात उनके पति (Lila poonawalla husband) फ़िरोज़ पूनावाला से हुई. कुछ समय बाद कंपनी पॉलिसीज़ के कारण उन्होंने वह कंपनी छोड़ दी और इंजीनियर के रूप में स्वीडिश बहुराष्ट्रीय कंपनी (Swedish company Alfa Laval) को join किया. यहाँ उनके काम को देखते हुए उन्हें बहुत तेज़ी से promotions मिलने लगे और वे 20 सालों से भी कम समय में कंपनी की chairperson बन गयी.
Lila poonawalla foundation कर रहा महिला सशक्तिकरण में योगदान
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1996 में उन्होंने Lila poonawala foundation की शुरुआत की ताकि उनके देश में किसी भी बच्ची को पढ़ाई से वंचित ना रहना पड़े. 20 लड़कियों से शुरूआत (Women Led business in India) की थी उन्होंने अपने NGO की. लीला पूनावाला फाउंडेशन (LPF) भारत में merit-cum-need पर Scholarship और Skill Building programs देकर लड़कियों की शिक्षा और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने की दिशा में काम करता है. इस NGO की CEO होने के साथ लीला भारत की पहली कुछ महिला CEOs (first women CEO of india) में से एक है.
कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है लीला को
लीला पूनावाला ने देश के लिए इतना कुछ किया है और यहाँ की महिलाओं को भी सशक्त बनाने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. भारत में उनके इन्हीं सब योगदानों को देखते हुए भारत सरकार (Indian goverment) ने उन्हें पद्मश्री 1989 से सम्मानित किया. उन्हें 2022 में mahatma gandhi lifetime achievement award और Indian Women Scientists' Association Lifetime Achievement Award भी सम्मानित किया जा चूका है.
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उन्हें उनकी सामाजिक और कामों के लिए भी Lady of the Decade Award, Shiromani Mahila Award, Four Way Test Award, Kohinoor Ratna, International Woman of the Year, Rajiv Gandhi Excellence Award, Global India Excellence Award, Samajshree Award,आदि के लिए पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
देश में इनके जैसी महिलाएं है और रहेंगी. भारत की सरकार आज देश को Women-Led इन जैसी महिलाओं के कारण हो बनाने चाहती है. महिला सशक्तिकरण (Women empowerment in India) देश के प्रार्थमिक मुद्दों में से एक है और वो दिन दूर नहीं जब भारत में हर महिला आगे बढ़कर देश का परचम लहराएगी.