'औरतों के वो वाले दिन'...'औरतों वाली बिमारी'...'लड़कियों का उन दिनों के लिए अशुद्ध होना'... ऐसी बहुत सी बातें 21वीं सदी में सुनने को मिले ना, तो हंसी और शर्म दोनों आती है. आज भी आदमियों को periods ये शब्द सुनने और बोलने दोनों में, अपनी शान गिरती हुई नज़र आती है. बात चाहे उनकी बेटी की हो या बीवी की. आज भी ज़्यादातर लोगों को इस natural process के बारे में बात करना तो क्या सुनने भी अच्छा नहीं लगता.
पीरियड्स है एक Normal Process
जितना normal और natural सांस लेना है, उतना ही normal periods आना है. फिर भी पता नहीं क्यों, ये शब्द बोलने पर लोगों की नज़रें ही बदल जाती है एक लड़की को लेकर. कोई लड़की अगर किसी medical store पर तेज आवाज़ में pads मांग ले तो न जाने क्या तूफ़ान आ जाता है! हर गर्दन मुड़कर देखने लगती है. इन लोगों की देखने की बिमारी के कारण ही लड़कियां खुल कर periods के बारें में बात ही नहीं कर पाती.
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ये बहुत बड़ी परेशानी का विषय बन चुका है. इस social और mental stigma के कारण महिलाएं और लड़कियां इस process को लेकर अंजान हो चुकी है. जो बताया गया, छूपाने को कहा गया, लोगों से इस बारें में बात न करने को कहा गया, मंदिरों और किचन में जाने से मना करा गया, और हमनें मान लिया. कभी ये तो पूछा ही नहीं की एक प्राकृतिक नियम जो भगवान ने दिया उसे लेकर भगवान के पास ही क्यों नहीं जा सकते हम? पूरी दुनिया जानती है कि लड़कियों को हर महीने पीरियड्स आते है तो भी इस बारे में खुलकर क्यों नहीं बात कर सकते हम लोग?
सरकार की menstrual hygiene policy से आएगा सोच में बदलाव
पूरी दुनिया में periods के बारे में सही समझ ना होना और unhygienic conditions में रहना 5वा सबसे बड़ा कारण है लड़कियों में death rate का.. ये normal नहीं है! बिना जानकारी के एक लड़की से उसके periods के वक़्त ऐसा बर्ताव किया जाता है जैसे उसे कोई बिमारी हो. जब लड़कियों को कुछ पता नहीं होता वह दुनिया के हिसाब से चलने लगती है और reproductive diseases या cervical cancer जैसी जानलेवा बिमारियों के चंगुल में फंस जाती है.
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इस परेशानी को जड़ से खत्म करने का सिर्फ एक तरीका है... और वो है हर व्यक्ति को periods या मासिक धर्म के बारे में समझाना, ताकि वे लड़कियों को खुद से अलग ना समझे. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का राष्ट्रीय मासिक धर्म स्वच्छता नीति (National mentrual hygiene policy) मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता में आगे बढ़ने की दिशा में एक सराहनीय कदम है.
Periods को लेकर positive environment बनाना है ज़रूरी
यह निति न केवल स्वच्छता उत्पाद की पहुंच और बेहतर स्वच्छता सुविधाओं पर ज़ोर देती है, बल्कि Societal pressure को ख़त्म करने और periods के लिए एक positive environment बनाने पर भी सराहनीय काम करती है. भारत में periods को लेकर unacceptable nature अपनी जड़ों को बेहद गहराई तक जमा चुका है पर ये भी सच है की बदलाव आ रहा है.
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पहले के मुकाबले लड़कों ने इस बात को समझना और अपनाना शुरू किया है. भारत में भले ही ग्रामीण इलाकों में इस बात को अभी भी एक concern समझने लगे है. अपने thoughts और मान्यताओं को बदलने के लिए तैयार है. घरों में अक्सर माँ अपनी बेटियों को पुरुषों के सामने इस बारे में बात करने से रोकती है. इसीलिए घर के पुरुषों को यह बात समझाना बहुत ज़रूरी है कि अगर वे ही महिलाओं को menstrual hygiene और periods के बारे में comfortable कर देंगे तो सारी परशानियाँ ही ख़त्म हो जाएंगी.