भारत में माइक्रोफाइनेंस ने एक लंबा सफर तय किया है. इसकी मदद से कम आय वाले परिवार अपनी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बने हैं. NRLM (राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) द्वारा गठित स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group- SHG) की बढ़ती संख्या की वजह से NBFC - MFI की ज़रुरत में भी इज़ाफ़ा हुआ.
BFSI सेक्टर में अहम खिलाड़ी के रूप में उभर रहा माइक्रोफाइनेंस
माइक्रोफाइनेंस लगातार BFSI (बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा) परिदृश्य में एक अहम खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है. पिछले कुछ सालों में, माइक्रोफाइनांस संस्थान (microfinance institutions in India) विकसित होकर फाइनेंशियल इकोसिस्टम का अहम हिस्सा बन गया है. यह बदलाव न सिर्फ लोगों को सशक्त बना रहा है, बल्कि वंचित समुदायों के आर्थिक विकास और वित्तीय समावेशन में भी योगदान दे रहा है.
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इस बढ़ोतरी की मुख्य वजह वित्तीय समावेशन (financial inclusion) की अहमियत और उसे मान्यता मिलना है. माइक्रोफाइनांस संस्थान परंपरागत रूप से औपचारिक बैंकिंग सेवाओं से बाहर रखे गए लोगों को छोटे ऋण, बचत खाते और बीमा प्रदान करके समाज में मौजूद फाइनेंशियल गैप को कम करते हैं. इससे लाखों लोगों और छोटे उद्यमियों की आर्थिक क्षमता का विस्तार हो रहा है.
कोविड-19 महामारी के दौरान Microfinance ने निभाई अहम भूमिका
कोविड-19 महामारी ने माइक्रोफाइनेंस की अहमियत पर प्रकाश डाला. संकट के समय में, माइक्रोफाइनेंस संस्थानों ने कमजोर समुदायों को आपातकालीन ऋण और सहायता प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई. इससे न सिर्फ लोगों की अचानक आई ज़रूरतें पूरी हुई, बल्कि माइक्रोफाइनेंस की एडेप्टेबिलिटी और सामाजिक जिम्मेदारी पूरी करने में उसकी भूमिका भी प्रदर्शित हुई.
डिजिटल सेवाओं ने बढ़ाई माइक्रोफाइनेंस तक पहुंच
टेक्नॉलोजी माइक्रोफाइनेंस के लिए गेम-चेंजर साबित हुई. डिजिटल बैंकिंग और मोबाइल वॉलेट के आने से माइक्रोफाइनेंस संस्थानों को दूरदराज और कम सेवा वाले क्षेत्रों तक आसानी से पहुंचने में सक्षम बनाया. मोबाइल ऐप्स और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म की मदद से, उधारकर्ता आसानी से वित्तीय सेवाओं तक पहुंच सकते हैं, जिससे फिजिकल ब्रांच की ज़रुरत कम हो जाती है.
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Data Analytics और Artificial Intelligence से प्रक्रिया हो रही आसान
इसके अलावा, उधार पात्रता और रिस्क को मैनेज करने के लिए डेटा एनालिटिक्स और अर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स का इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे न सिर्फ ऋण देने की प्रक्रिया आसान हुई है, बल्कि डिफ़ॉल्ट दरें भी कम हुई हैं, जिससे माइक्रोफाइनेंस बहुत सस्टेनेबल बना है.
रेगुलेटरी सपोर्ट इस क्षेत्र के विकास की एक और मुख्य वजह है. कई देशों की सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में माइक्रोफाइनेंस के महत्व को पहचाना है और सहायक नियम बनाए हैं. ये उपाय सुनिश्चित करते हैं कि माइक्रोफाइनेंस संस्थान पारदर्शी और जिम्मेदारी से काम करें.
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Financial Inclusion को बढ़ा रहा Microfinance
निवेशक भी तेजी से माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र को सामाजिक रूप से जिम्मेदार इन्वेस्टमेंट ऑप्शन के रूप में देख रहे हैं. माइक्रोफाइनेंस संस्थानों में इन्वेस्ट कर, वे उचित वित्तीय रिटर्न की उम्मीद करते हुए गरीबी उन्मूलन और आर्थिक विकास में योगदान करते हैं.
माइक्रोफाइनेंस फाइनेंशियल इन्क्लूशन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, संकट के दौरान लचीलापन, टेक्नॉलोजी को अपनाने और जिम्मेदार प्रथाओं का पालन इसे सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए एक अहम शक्ति बनाता है. जैसे-जैसे माइक्रोफाइनांस संस्थान (importance of microfinance in india) नवाचार और सहयोग करना जारी रखते हैं, वे आर्थिक संसाधनों और ग्राहकों के बीच अंतर को कम करने की क्षमता रखते हैं.
यह विकास एक ऐसी समावेशी और न्यायसंगत दुनिया का रास्ता आसान कर रहा है, जहां आर्थिक अवसर सभी के लिए सुलभ हैं, चाहे उनकी सामाजिक-आर्थिक आइडेंटिटी कुछ भी हो.