मिलेट बन रहा महिलाओं के लिए सोना

बाजरा, जिसे 'महिलाओं की फसल' कहना गलत नहीं है, ग्रामीण समुदायों में लैंगिक समानता और आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है.

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मिस्बाह
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तकनीक के इस दौर में, जैसे-जैसे हम प्रौद्योगिकी (Technology) पर निर्भर होकर अपने स्वास्थ्य और वातावरण को नुक्सान पंहुचा रहे हैं, वैसे-वैसे स्वदेशी ज्ञान (indigenous knowledge) और प्रणालियों (system) की कीमत पता चल रही है.

पर्यावरणीय चुनौतियां खींच रही बाजरा जैसी टिकाऊ फसल की ओर ध्यान 

कृषि क्षेत्र (agricultural sector) में भी एग्रो-टेकनॉलोजी (Agro-Technology) के बढ़ते इस्तेमाल के चलते टिकाऊ (sustainable) और लचीली कृषि पद्धतियों की ज़रुरत की तरफ ध्यान जा रहा है.

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जलवायु परिवर्तन (climate change) और पर्यावरणीय चुनौतियों (environmental challenges) के मद्देनजर, एक अहम कृषि परिवर्तन हो रहा है, जो बाजरा (millet) जैसी टिकाऊ, स्थानीय फसल की अहमियत पर ध्यान खींच रहा है. ये मोटा अनाज (millet) न सिर्फ लचीलेपन और पोषण संबंधी फायदों (millet health benefits) का वादा करता है, बल्कि कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने का ज़रिया भी बन रहा है.

बाजरा को मिली 'महिलाओं की फसल' होने की पहचान 

बाजरा, जिसे 'महिलाओं की फसल' (millet as women crop) कहना गलत नहीं है, ग्रामीण समुदायों (rural communities) में लैंगिक समानता (gender equality) और आर्थिक सशक्तिकरण (economic empowerment) को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है. परंपरागत रूप से महिलाओं द्वारा खेती (women in farming) और संसाधित किया जाने वाला बाजरा सदियों से उनके आहार और आजीविका का मुख्य हिस्सा रहा है (social benefits of millet farming for women).

बाजरा को 'महिलाओं की फसल' माने जाने की एक बड़ी वजह स्वयं सहायता समूह (self help groups) द्वारा मिलेट खेती को बढ़ावा देना है. मिलेट कैफ़े (millet cafe), मिलेट की नई-नई रेसिपीस (millet Recipes), कृषि सखी (Krishi sakhi) बन बाजरा खेती को बढ़ावा देना, एग्रो प्रेन्योर्स (agro-preneurs) के द्वारा मिलेट उत्पादन (millet production) को बढ़ावा देने जैसी पहले उन्हें आर्थिक सशक्तिकरण (financial empowerment) की दिशा में लेजा रहा है.   

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महिला उद्यमिता से लेकर उनके पोषण तक, बाजरा निभा रहा साथ 

खेती के अलावा, बाजरा प्रसंस्करण (millet processing) और मूल्य संवर्धन (value addition) भी मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा किया जा रहा है. सफाई और छिलका उतारने से लेकर पीसने और खाना पकाने तक, महिलाएं बाजरा को लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं. यह भागीदारी उन्हें मूल्यवान कौशल और ज्ञान के साथ सशक्त बनाती है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति (socio-economic status) में बढ़ोतरी होती है.

इसके अलावा, बाजरा उत्कृष्ट पोषण (bajra nutrition benefits) लाभ प्रदान करता है. वे आयरन, कैल्शियम और फाइबर जैसे ज़रूरी पोषक तत्वों (nutrients in millet) से भरपूर हैं, जो ख़ासकर महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. आंगनवाड़ियों और स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं में बाजरा (Millet in health schemes) को शामिल किया जा रहा है जिससे कुपोषण (malnutrition) जैसी गंभीर बीमारियों को कम बजट में ठीक किया जा रहा है.

Millet Shakti Cafe Odisha

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बाजरा ने बनाया महिलाओं को उद्यमी 

UN द्वारा घोषित 'द ईयर ऑफ़ मिलेट्स' (International Year of Millets 2023) जैसी पहल ने महिलाओं को उद्यमी (woman entrepreneurs) बनने का अवसर दिया, जिसके बाद इस पहल को बढ़ावा मिला. इस तरह की पहलों का लक्ष्य महिलाओं को उनके बाजरा-संबंधित उद्यमों (millet-related enterprises) को बढ़ाने के लिए संसाधन, प्रशिक्षण और अवसर प्रदान करके कृषि में लिंग अंतर (gender gap in agriculture) को कम करना है.

बाजरा फसल से कहीं अधिक है; वे महिला उद्यमिता, कृषि में लैंगिक समानता (gender equality in farming), और उनके सशक्तिकरण (women empowerment) का ज़रिया है. बाजरा के महत्व (millet significance) को पहचानकर और खेती में महिलाओं का समर्थन कर, समाज लैंगिक समानता, खाद्य सुरक्षा (food safety) और टिकाऊ कृषि (sustainable agriculture) की दिशा में ने आयाम हासिल कर सकता है.

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