National Fire Service Day: रूढ़िवाद की आग से लड़ती महिला अग्निशामक!

लोग कहते हैं कि महिलाएं आग से नहीं खेलती, हम कहते हैं, महिलाएं आग से खेलती नहीं, बल्कि आग पर चलती हैं. आज हम बात करेंगे उन महिला अग्निशामकों (Female Firefighters) की, जिन्होंने आग से लड़ने की ठानी और समाज में स्थापित रूढ़िवादी धारणाओं को भी जला दिया है.

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विधि जैन
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National Fire Service Day

Image - Ravivar Vichar

"नारी तू नारायणी, तू अग्नि, तू जल है, तू धरा की शक्ति, तू अम्बर का विशाल है." जब भी मैं कभी किसी महिला की समाजके रूढ़िवाद के खिलाफ छेड़ी जा रही लड़ाई के बारे में सुनती हु, तो बस यही पंक्ति मेरे ख्याल में आती है. इन पंक्तियों में नारी की अदम्य शक्ति महसूस होती है, जो सिर्फ प्रकृति के विभिन्न रूपों में ही नहीं, बल्कि हर कठिनाई और चुनौती में भी अपनी मजबूती दिखाती है.

लोग कहते हैं कि महिलाएं आग से नहीं खेलती, हम कहते हैं, महिलाएं आग से खेलती नहीं, बल्कि आग पर चलती हैं. आज हम बात करेंगे उन महिला अग्निशामकों (Female Firefighters) की, जिन्होंने आग से लड़ने की ठानी और समाज में स्थापित रूढ़िवादी धारणाओं को भी जला दिया है.

हर्षिणी कान्हेकर: भारत की पहली महिला अग्निशामक

जहां एक तरफ महिलाओं को घर के कामों में व्यस्त रखा जा रहा था वहीं समाज के stereotypes को तोड़ती हुई सामने आई Harshini Kanhekar और 2002 में बनी भारत की पहली महिला फायर फाइटर (India's First Female Firefighter). Harshini Kanhekar ने अपनी पढ़ाई girl's school से की थी और बचपन से ही Indian Armed Forces में शामिल होने का सपना देखती थी.

हर्षिणी Nagpur के नेशनल फायर सर्विस कॉलेज (National Fire Service College NFSC) से पढ़ाई करने वाली पहली महिला बनी. वह पूरे कॉलेज में अकेली लड़की थीं और सभी ने उन्हें इस कोर्स में प्रवेश नहीं लेने की सलाह दी थी. परंतु उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया और अपने निर्णय पर अडिग रहीं. इस बीच मुश्किलें भी आई, ताने भी मिले, पर उन्होंने इन सब का मुहतोड़ जवाब दिया.

पढ़ाई पूरी होने के बाद, Harshini Kanhekar को दिल्ली की एक टिन फैक्टरी में भेजा गया जहां उन्होंने भारी पानी और सक्शन होजेस के साथ काम किया. उन्होंने अपने कौशल को सिद्ध करने के लिए प्रारंभिक दिनों से ही कठिन परिश्रम किया है. 2010 में, उन्हें मुंबई ड्रिलिंग सर्विसेज में नियुक्त किया गया. यहाँ शामिल होने के बाद वह भारत की पहली महिला बन गईं जिन्होंने हेलीकॉप्टर में सवार होकर और ऑडिटिंग करके ऑफशोर ड्रिलिंग सेवाओं को संभाला है. उन्होनें ना सिर्फ आग से लड़ाई लड़ी, बल्कि बाढ़, इमारतों के ढहने, जंगली जानवरों के हमलों आदि से भी नागरिकों को बचाया है.

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प्रिया रविचंद्रन और मीनाक्षी विजयकुमार: फायर सर्विसेज़ में अवार्ड पाने वाली पहली महिलाएं

2003 में, तमिलनाडु फायर एंड रेस्क्यू सर्विसेज (Tamil Nadu Fire and Rescue Services TNFRS) ने महिलाओं को fire services में शामिल होने की अनुमति दी. उसी साल Priya Ravichandran को डिविजनल फायर ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया, जो कि देश की पहली महिला फायर ऑफिसर्स में से एक बनीं. Priya Ravichandran अन्ना मेडल फॉर ब्रेवरी (Anna Medal for Bravery) से सम्मानित होने वाली भी पहली महिला ऑफ़िसर बनीं. यह सम्मान उनकी वीरता और साहस को मान्यता देता है, जिसे उन्होंने सेवा के दौरान प्रदर्शित किया.

इसी सर्विस में Minakshi Vijayakumar भी शामिल हुईं, जिन्होंने 400 से अधिक accidents में राहत पहुंचाने में मदद की. 2013 में, मीनाक्षी को उनकी वीरता और साहस के लिए राष्ट्रपति का फायर सर्विस मेडल फॉर गैलेंट्री (President’s Fire Service Medal for Gallantry) से सम्मानित किया गया. इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली Minakshi Vijakumar पहली महिला ऑफ़िसर बनीं. उनका योगदान ना केवल आपातकालीन स्थितियों में महत्वपूर्ण रहा है, बल्कि वह महिलाओं के लिए अग्निशामन और बचाव सेवा में नेतृत्व की एक उदाहरण के तौर पर भी उभरी हैं.

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दिशा नाइक: एरोड्रम रेस्क्यू एंड फायरफाइटिंग की पहली महिला ऑफ़िसर

दिशा नाइक (Disha Naik) का नाम भारतीय अग्निशामन इतिहास में विशेष स्थान रखता है. Disha Naik का जन्म गोवा (Goa) के एक छोटे से गांव में हुआ था. उनके पिता एक मछुआरे थे और मां एक स्कूल में टीचर. बचपन से ही Disha Naik में कुछ अलग करने की चाहत थी. उनकी यह चाहत उन्हें अक्सर अपने पिता के साथ समुद्र की लहरों से लड़ते हुए दिखाई देती थी, जिससे उनमें साहस और जोखिम उठाने की क्षमता विकसित हुई.

Disha Naik ने Firefighting Services में अपना करियर बनाने का निर्णय तब लिया, जब वे अपने कॉलेज के दिनों में एक भयानक आग की घटना का गवाह बनीं. उस घटना ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने ठान लिया कि वे इस क्षेत्र में कुछ करेंगी. Disha Naik ने मुंबई के एक अग्निशामन अकादमी से प्रशिक्षण प्राप्त किया. Disha Naik की पहली बड़ी चुनौती तब आई जब मुंबई के एक बड़े होटल में आग लगी. उस आग को बुझाते हुए, Disha Naik ने अपनी बहादुरी और निपुणता दिखाई और कई जानें बचाई. उनके इस काम के लिए उन्हें कई सम्मान और पुरस्कार मिले.

Disha Naik ने क्रैश फायर टेंडर (Crash and Fire Tender) का संचालन करने के लिए  तमिलनाडु के नामक्कल में छह महीने का कड़ी ट्रेनिंग ली और आज वह Goa में मनोहर इंटरनेशनल एयरपोर्ट (Manohar Internationa Airport MIA) की एयरपोर्ट रेस्क्यू और अग्निशमन (Airport Rescue and Fire Fighting ARFF) यूनिट में एक समर्पित फायर-फाइटर Disha Naik ने क्रैश फायर टेंडर संचालित करने वाली भारत की पहली सर्टिफाइड महिला फायर-फाइटर (First Certified Female Firefighter) है.

ये उदाहरण दिखाते हैं कि महिलाएं किस प्रकार अग्निशामन जैसे चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरे क्षेत्र में भी अपनी क्षमताओं का लोहा मनवा रही हैं और समाज में बराबरी की नई राहें तैयार कर रही हैं. आज, भारत में महिला अग्निशामकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है, और वे ना केवल आग से, बल्कि समाज की पुरानी मान्यताओं से भी लड़ रही हैं. हर्षिनी कान्हेकर और Disha Naik जैसी महिला अग्निशामकों का संघर्ष और सफलता हम सब के लिए एक मिसाल है, जो बताती है कि जब इरादे मजबूत हों, तो रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं.

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