हैंडलूम को सहेज, समूह बुन रहे बदलाव की कहानी

SHG, कारीगरों और बुनकरों को एक साथ आने, संसाधनों को बांटने, नए कौशल सीखने, ऋण तक पहुंचने और अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए मंच दे रहे हैं. तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से पारम्परिक हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट में कमी आती जा रही है.

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मिस्बाह
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women weavers  National Handloom Day

Image Credits: Textile Value Chain

कश्मीरी शॉल से लेकर कांचीपुरम रेशम साड़ियों तक, मधुबनी पेंटिंग से वर्ली आर्ट तक,  हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट परम्पराएं भारत के इतिहास को संजोकर रखे हुए हैं. भारतीय हस्तशिल्प (handloom traditions) अक्सर देश की सांस्कृतिक विविधता (handicraft heritage) और विरासत को दर्शाते हैं (cultural diversity). हस्तशिल्प और हथकरघा क्षेत्र भारत में कई लोगों (Indian artisans) के रोज़गार का ज़रिया बना है, ख़ासकर ग्रामीण इलाकों में. इन शिल्पों में लाखों कारीगर और बुनकर शामिल हैं, जो अपने परिवारों और समुदायों का भरण-पोषण करते हैं. देशभर के कई स्वयं सहायता समूह (self-help groups) इन कलाओं को आजीविका  का ज़रिया बना इन्हें संरक्षित करने का काम कर रहे हैं.

स्वयं सहायता समूह से मिल रहा हैंडलूम को बढ़ावा 

स्वयं सहायता समूह  (Self Help Group) कारीगरों और बुनकरों (local artisans) को एक साथ आने, संसाधनों को बांटने, नए कौशल सीखने, ऋण तक पहुंचने और अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुंचाने के लिए मंच दे रहे हैं (SHG conserving handloom and handicraft). तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से पारम्परिक हैंडलूम और हेंडीक्राफ्ट में कमी आती जा रही है. इस कमी को दूर करने के लिए SHG काफी योगदान दे रहे हैं. 'वोकल फॉर लोकल', 'आत्मनिर्भर भारत', 'वीवर मुद्रा स्कीम', और 'GI टैग' जैसी कई पहलों के ज़रिये सरकार (government initiatives) इन समूहों को प्रोत्साहन दे रही है.

ईको-फ्रेंडली उत्पादों की बढ़ रही मांग 

SHG कारीगर और बुनकर नई डिज़ाइनों, आधुनिक तकनीकों और ईको-फ्रेंडली सामग्रियों (eco-friendly products) का इस्तेमाल कर ऐसे उत्पाद बना रहे हैं जिसकी मांग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में बढ़ रही है. समूह का हिस्सा होने से कारीगरों और बुनकरों को एक-दूसरे का समर्थन मिल पाता है. यह उन्हें साथ प्लानिंग करने, चुनौतियों का समाधान करने और  सरकारी योजनाओं तक पहुंचने में मदद करता है. 

स्वयं सहायता समूह स्थायी आजीविका (self-help groups) का ज़रिया बन, ग्रामीणों को शहरों की तरफ रुख करने से रोकते हैं. महिलाओं और लोकल आर्टिस्ट्स को आर्थिक रूप से सशक्त बनाकर, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देकर ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास (rural development) में योगदान करते हैं.

SHG कर रहे सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित 

स्वयं सहायता समूह कारीगरों और बुनकरों को बाज़ार की बदलती मांगों के अनुसार अपनी पारंपरिक प्रथाओं को जारी रखने के लिए ज़रूरी समर्थन, संसाधन और बाज़ार तक पहुंच देकर भारतीय हस्तशिल्प और हथकरघा को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. SHG न केवल सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित (cultural preservation) करते हैं, बल्कि समुदायों को सशक्त बनाकर आर्थिक (economic empowerment) और सामाजिक विकास में भी योगदान दे रहे हैं.

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