"मरण आले तरी चालेल, पण शरण जाणार नाही" ये विचारधारा थी Chhatrapati Shivaji की जिन्होंने, मराठी साम्राज्य को भारत में सबसे ऊंचा कर दिया था. Chhatrapati Shivaji Maharaj याने मराठों के देव. उनके आदेश बिना पूरे मराठी राज्य में एक पत्ता भी ना हिले, ऐसा वर्चस्व था उनका. और हो भी क्यों ना, भारत में स्वराज्य को धर्म से ऊंचा कर दिया था Shivaji Maharaj ने.
मुग़लों के पसीने छूठते थे जब उनकी एक हुंकार सुनाई देती थी. कांपते थे उनके हाथ, डर लगता था कि कही शिवबा आ गया तो छोड़ेगा नहीं और इसी डर को कायम भी रखा था उन्होंने, क्योंकि पूरे मराठी राज्य को दिल्ली के तख़्त पर ले जाना चाहते थे वे.
Chhatrapati Shivaji Maharaj की आई "Rajmata Jijabai Bhonsle"
लेकिन उनकी इतनी क्षमता, ताकत और धैर्य का कारण क्या था? कभी सोचा है आपने? नहीं, तो हम बताते है, वो थी उनकी आई, Rajmata Jijabai Bhonsle. एक रानी, एक योद्धा और छोटे से शिवबा को Chhatrapati Shivaji Maharaj बनाने के पीछे की कहानी थी राजमाता जीज़ाऊ. भले ही हम सब शिवाजी को मराठी साम्राज्य के देव के रूप में देखते हों, पर उनकी देव तो उनकी आई जीज़ाऊ ही थी.
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शिवबा ने आई को अपनी पिता की मृत्यु के बाद सती में अपनी जान देने से रोका था. वे सती प्रथा के खिलाफ थे, और अपनी आई को इस तरह से नहीं जाने देना चाहते थे. जीज़ाऊ ने तय कर लिया कि वह हार नहीं मानेगी और अपने बेटे को इस सदी का सबसे बड़ा योद्धा साबित करेगी. और उन्होंने सिर्फ ऐसा सोचा नहीं था, शिवाजी को उतना ही बड़ा योद्धा बनाया भी.
अखंड भारत के सबसे बड़े योद्धा की आई होने के बावजूद वे खुद सब कुछ संभालने के योग्य थी. पुणे उस वक़्त सिर्फ एक जंगली इलाका था. उसे मराठाओं का गट बनाया था राजमाता ने. शिवबा छोटे थे, तो उनके पालन पोषण का भार तो था ही जीज़ाऊ पर, लेकिन उन्होंने कभी भी इस काम को राज्यभार ना संभालने का बहाना नहीं बनने दिया. शिवबा का पालन और राज्य का भरण पोषण सब कुछ एक साथ संभाला था राजमाता ने.
वे एक मां थी, लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं था कि वे खुद योद्धा नहीं हों सकती! शिवबा अपनी आई से ही सारी योग्यताएं सीख रहे थे. शिवाजी को पूरी दुनिया में जाना जाता है और इस तरह का व्यक्तित्व सिर्फ तभी मुमकिन है जब घर के संस्कार राजमाता सरीखे हों. उनका हर संस्कार, हर शिक्षा और हर ज्ञान शिवबा ने अपने लिए पत्थर की लकीर बनाया था. पुणे के साथ भारत का भाग्य बदलने का सबसे बड़ा श्रेय जीज़ाऊ को ही जाता है.
वह हमेशा सही के लिए खड़ी रहती थी, चाहे फिर वह उनके खुद के परिवार के खिलाफ ही क्यों ना हों. वह एक नीतिवादी महिला के रूप में आज भी दुनिया के सामने है. शिवाजी को भी जीज़ाऊ ने यह सिखाया था कि गलत को चाहे कितने भी लिबास पहनाकर पेश किया जाए, वह कभी सही नहीं बन सकता और उसके खिलाफ़ खड़ा होना ही एक मात्र उपाय है.
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Shivaji की पहली शिक्षक थी राजमाता जिज़ाऊ
शिवाजी का सपना था 'भगवा भारत', और इस सपने की उम्मीद उनकी आंखों में जगाई थी राजमाता जीज़ाऊ शाहजी भोंसले ने. वे अपने पुत्र की पहली शिक्षक थी. राजनीति हों, अस्त्र शस्त्र के उपयोग का ज्ञान हों, धर्मग्रंथों की जानकारी हों या प्रशासनिक बातें, यह सब कुछ शिवबा को सिखाया था उनकी आई ने.
जीजाबाई के गुण, उनका स्वतंत्र स्वभाव, नेतृत्व कौशल, बुराई के खिलाफ खड़े होने की मजबूत प्रवृत्ति, सपनों के लिए जुनून, निर्णय लेने की क्षमता और विचारों की स्पष्टता ही है जो आज की महिलाओं का प्रेरणा स्त्रोत है. छत्रपति शिवाजी महाराज़ जैसे व्यक्तित्व का पालन पोषण अपने आप में ही किसी परीक्षा से कम नहीं, वो भी ऐसे समय में जब हर तरफ मुग़लों ने खून की नदियां बहाई थी.
जीजाबाई भोसले निस्संदेह एक महान महिला, एक सशक्त मां और आज की महिलाओं के लिए एक आदर्श है. आज है तो shivaji jayanti, लेकिन शिवबा भी होते तो यही कहते कि आज उनका जितना नाम है वह सब उनकी आई राजमाता जीज़ाबाई शाहजी भोंसले की वजह से. अपने नाम के पहले शिवबा ने हमेशा अपनी आई का नाम रखा तो shivaji jayanti पर Ravivar vichar का सबसे पहला नमन जाता है जीज़ाऊ को.
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