सुबह उठाते ही घर कामों में लग जाना और रात होने तक यहीं करते रहना. ना ही बाहर जाने की फुर्सत और ना ही मौका. आप शायद सोचकर ही अजीब सा महसूस कर रहे होंगे. लेकिन ऐसी ज़िन्दगी जीती है कई महिलाएं अपने घरों में. अपनी माँ को भी यर ही करता देखते होंगे आप लेकिन कभी कुछ बोल ही नहीं क्योंकि फर्क किसे पड़ता है जब तक खुद पर नहीं बीतती.
लेकिन फर्क पड़ता है...कुछ लोगों को जो इन महिलाओं की तकलीफों को समझते है और महसूस करते है. ऐसे ही एक व्यक्ति है Prasanna Heggodu. इन्हे भी महसूस हुई हर उस महिला की तकलीफ जो ना किसी को सुनाई दे रही थी और ना ही कोई सुनना चाहता था.
Prasanna Heggodu ने शुरूआत की Charaka project की
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Prasanna Heggodu, activist और theatre personality, ने साल 1994 में एक brand तैयार किया जिसका नाम है Charaka project. Charaka project का लक्ष्य है affordable handloom textiles provide करना और Malnad region के Bhimanakone गांव की महिला बुनकरों को रोजगार प्रदान करना.
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यह project इस बात को सिरे से ख़ारिज करता है कि handicraft और कशीदाकारी महँगी है और सिर्फ कुछ ही बाज़ारों में मिलने योग्य है. मेहेंगे इसीलिए होते है क्योंकि शहर के हाई-फैशन बुटीक में पहुंचने से पहले इन पर कई overheads जोड़े जाते है. Charaka project इसी myth को ख़त्म कर रहा है लोगों में.
महिलाओं को empower करने के सपने के साथ शुरू किया था Charaka Project
Prasanna का Malnad region के केंद्र में महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए एक environment-friendly industry स्थापित करने का सपना था जो उन्होंने पूरा भी किया. Charaka Project को पश्चिमी घाट के Bhimanakone village में एक all-women’s multipurpose industrial cooperative society के रूप में शुरू कर दिया गया.
उस वक़्त ये परियोजना सिर्फ 13 महिलाओं और कुछ सिलाई मशीनों के साथ शुरू की गई थी और आज यह project कर्नाटक के आठ जिलों में 800 कारीगरों के कार्यबल के साथ एक बड़े ग्रामीण उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है.
आज महिलाओं को यहाँ काम करना पसंद आ रहा है क्योंकि वे अपने हर दिन की ज़िन्दगी से एक ब्रेक ले पा रही है इस परियोजना से जुड़कर. यहां काम करने वाली महिलाएँ बेहद खुश और तनाव मुक्त वातावरण की आदि है जहाँ उन्हें सम्मान मिलता है.
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वे सुबह 9:30 बजे आ जातीं हैं और शाम 5 बजे तक यहीं काम करती है. इस बीच सभी को सादा, दोपहर का भोजन भी परोसा जाता है. इन महिलाओं से खेतों में मजदूरों के रूप में काम करने के अलावा घर का सारा काम, परिवार के लिए खाना पकाने, घर की सफाई करने और बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती थी लेकिन आज माहौल बिल्कुल अलग है.
Charaka project ने इन महिलाओं के जीवन को बदल दिया है और अतिरिक्त आय से उनके परिवार के जीवन स्तर में सुधार हुआ है. ये ग्रामीण महिलाएं स्मार्ट कपड़े पहनने वाली, आत्मविश्वासी महिलाओं में बदल चुकी है जो वे खुद Charaka project में तैयार करती हैं क्योंकि अब वे जो कुछ भी बनाती हैं उसे खरीदने में सक्षम हैं.
यहां काम करने वाली एक महिला बताती है- "निरंतर आय अर्जित करने से हमें आत्मविश्वास मिला है और हमें अपने समुदाय में सम्मान प्राप्त हुआ है. हम अपने काम पर बहुत गर्व करते हैं, जिसने हमें वित्तीय कल्याण और सम्मान दिया है, साथ ही अपने सहकर्मियों के साथ दोस्ती के मजबूत बंधन बनाने का अवसर भी दिया है."
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