स्वयं सहायता समूह (Rural Self Help Groups) SHGs ग्रामीण भारत का परिदृश्य बदलने में कामयाब हुए है और इस क्रांति के कुछ कदम भारत के शहरी क्षेत्रों में भी पड़ने लगे है. शहरी या urban इलाकों में महिलाओं के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की पहल Self Help Group कर सकते है. भारत में नेशनल अर्बन लाइवलिहुड मिशन (National Urban Livelihood Mission- NULM), कॉर्पोरेट संगठनों और शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले एनजीओ (NGOs) की सहायता से SHGs को बढ़ावा मिले तो तस्वीर बदल सकती है.
ग्रामीण महिलाओं के लिए SHGs में शामिल होना ज़रूरी
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनने के लिए मिलकर आगे आईं. इन समूहों के माध्यम से उन्होंने संयुक्त रूप से धन कमाया और सामाजिक स्तर को भी सुधारा. शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की रोज़गार और व्यवसाय के अवसरों में भी कठिनाइयां है. ख़ास तौर पर कम शिक्षा, कम अनुभव, सीमित वित्त और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों की वजह से काम के लिए अपने घर से बाहर न जा सकने वाली शहरी महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह वरदान साबित हो सकते है.
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नेशनल अर्बन लाइवलिहुड मिशन (NULM) एक ऐसा सरकारी प्रयास है जिससे गरीब और अवसरहीन शहरी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त किया जा सकता है. NULM के तहत, एक बड़ी संख्या में SHGs और महिला उद्यमिता समूह (Women Entrepreneurship Groups - WEGs) को स्थापित किया गया है. इससे न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूती मिली है, बल्कि उन्हें अधिक स्वावलंबी हुई है, जिससे उनका सामाजिक स्थान भी मजबूत हुआ है.
NULM शहरी क्षेत्रों में SHGs को स्थापित करने और उनके कार्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं. आगे चल कर यह स्वयं सहायता समूह शिक्षा, स्वस्थ्य और कौशल विकास में अपनी भागीदारी देने के साथ सामाजिक संवाद और सामुदायिक विकास का अच्छा नेटवर्क साबित हो सकते है.
इसी तरह कॉर्पोरेट (Corporates) भी इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है. उनसे प्राप्त वित्तीय सहयोग से SHGs अपने काम में तेज़ी ला सकते है और कॉर्पोरेट्स उन्हें समृद्धि के साथ, अपने सामाजिक दायित्व को पूरा करने का मौका प्रदान कर सकते है.
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Urban SHGs को बढ़ावा मिलने से हो रहे ये बदलाव
शहरी क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह को बढ़ावा मिलने से -
रोजगार के अवसर खुलेंगे: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएँ एक साथ जुड़कर विभिन्न व्यापारिक गतिविधियों और व्यवसायों को घर बैठे बढ़ा सकेंगी. जैसे गृह उद्योग, बुनाई, ज्वेलरी निर्माण, आदि. समूह में काम करने से बड़े नेटवर्क को खड़ा किया जा सकता है .
वित्तीय साक्षरता: स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएँ अपने वित्तीय ज्ञान को सुधार सकती है. समूह बचत योजनाओं के लाभ के साथ आर्थिक सुरक्षा मिलती है और आर्थिक स्वतंत्रता को बढ़ावा मिलता है.
सामाजिक परिवर्तन: स्वयं सहायता समूह महिलाओं के बीच सामाजिक समृद्धि को बढ़ावा देने का जरिया भी है. यह समूह समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य, और समाजिक सुधार के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभा रहे है और समाज में जागरूकता फैलाने का काम कर रहे है.
सामाजिक समरसता: स्वयं सहायता समूहें आम तौर पर गरीब और वंचित महिलाओं के लिए गठित होते है, जिसकी भिन्नता शहरी परिवेश में और भी ज़्यादा दिखती है . समूह अपनी एकजुटता से समाज में समरसता और समानता की ओर बढ़ाने में मदद करते है.
कौशल विकास: स्वयं सहायता समूह से महिलाओं में कौशल विकास होता है साथ ही समूह प्रशिक्षण के माध्यम से नए कौशल सीख सकती है.
आर्थिक सहयोग: स्वयं सहायता समूहें आर्थिक सहयोग की प्रक्रिया में एक-दूसरे का साथ देती हैं और आर्थिक संगठनों जैसे बैंक से आसानी से मदद मिलती है.
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इसके उदहारण है कई ऐसे समूह जो शहरी क्षेत्रों में काम कर रहे है जैसे महाराष्ट्र का स्वयं शिक्षण प्रयोग (एसएसपी), एक ऐसी संस्था है जो स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिला उद्यमिता (women entrepreneur in india) को बढ़ावा देती है. उन्होंने सिलाई से लेकर जैविक खेती तक अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए हजारों महिलाओं को प्रशिक्षित किया. एसएसपी ने महाराष्ट्र में शहरी महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
अहमदाबाद का सहेली महिला सहकारी, एक समूह है जो अपनी डेयरी सहकारी संस्था चलाती है. उन्होंने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया बल्कि अपने स्थानीय समुदायों को सुरक्षित और पौष्टिक दूध की आपूर्ति भी सुनिश्चित की. कोलकाता में माटी एक स्वयं सहायता समूह है जो मिट्टी के बर्तन और शिल्प पर ध्यान केंद्रित करता है. कोलकाता में शहरी महिलाएं पारंपरिक कला रूपों को पुनर्जीवित करने और अपने हस्तनिर्मित उत्पादों को बेचकर अपने सदस्यों को आर्थिक आज़ादी दिलाई .
स्वयं सहायता समूहें आज की शहरी भारतीय महिलाओं के जीवन को बदल रहे है. ये समूह न केवल उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाते है, बल्कि उनके सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इससे न केवल उनका खुद का भला होता है, बल्कि पूरे समाज का भी विकास होता है. स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से, शहरी भारतीय महिलाएँ आत्मनिर्भर और सशक्त हो सकती है, और एक नए और समृद्ध भारत की ओर कदम बढ़ा सकती है.