पिछली शताब्दी में कृषि क्षेत्र में काफी बदलाव देखा गया. कृषि उत्पादन प्रणाली की प्रगति देखी गई, जिसके गहरे सामाजिक और पारिस्थितिक परिणाम सामने आए. 1960 के दशक से आज तक, भारत ने कृषि क्षेत्र को आकार देने और 'हरित क्रांति' मार्ग को मजबूत करने वाली पहलों को सफल होते देखा है.
कृषि में महिला श्रम बल की भागीदारी 62.9 %
कृषि क्रांति ने देश की डगमगाती अर्थव्यवस्था को पटरी लाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन, कृषि से जुड़ा एक ऐसा पहलू है, जिसे हमेशा से नज़रअंदाज़ होते देखा गया है- वह है ग्रामीण भारत में कृषि में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान. भारत की 78 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं कृषि में काम करती हैं. Annual Periodic Labour Force Survey, 2021-2022 के अनुसार, कृषि में महिला श्रम बल की भागीदारी सबसे अधिक 62.9 प्रतिशत है.
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भारत में ग्रामीण महिलाएं कई वर्षों से इस क्षेत्र में योगदान दे रही हैं (krishi sakhi doing organic farming), लेकिन ज्यादातर अपने खेतों में मजदूर के रूप में काम करती हैं, न कि "किसान" के रूप में.
कृषि क्षेत्र में देखा गया 'महिलाकरण'
इकॉनोमिक सर्वे 2017-18 में कहा गया है कि पुरुषों द्वारा ग्रामीण से शहरी प्रवास में बढ़ोतरी के साथ, कृषि क्षेत्र का 'महिलाकरण' हो रहा है, जिसमें किसानों, उद्यमियों और मजदूरों के रूप में कई भूमिकाओं में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है.
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कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी अधिक महत्वपूर्ण होने के साथ, महिलाओं को भारत की नीतिगत पहल के केंद्र में रखना ज़रूरी हो जाता है. इसके लिए आवश्यक है कि महिला किसानों की भूमि, जल, ऋण, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण जैसे संसाधनों तक पहुंच बढ़े.
PRADAN ने 2008-09 में अपनाया कृषि उत्पादन क्लस्टर (APC) दृष्टिकोण
इसके अलावा, महिला किसानों (female farmers) का अधिकार कृषि उत्पादकता में सुधार की कुंजी होगी. समाज के इस वर्ग का उत्थान करने, उन्हें उचित सम्मान देने और उन्हें सशक्त महसूस कराने की बहुत बड़ी आवश्यकता है. जब महिलाओं को भूमि का स्वामित्व मिलता है, तो घर में उनके निर्णय लेने की शक्ति बढ़ जाती है. आर्थिक आज़ादी हासिल कर महिलाएं शोषण से बच सकने में कामयाब होती हैं.
महिला किसानों की उत्पादन चुनौतियों को दूर करने के लिए गैर सरकारी संगठनों, CSO, सरकार और स्वयं सहायता समूहों को समाधान करना चाहिए. PRADAN ने 2008-09 में कृषि उत्पादन क्लस्टर (APC) दृष्टिकोण अपनाया, बाजार की मांग पर ध्यान केंद्रित किया और हाशिये पर मौजूद आदिवासी महिलाओं को खाद्य उत्पादन के साथ आय बढ़ने पर भी ध्यान दिया.
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Agriculture क्षेत्र में लिंग-समान भागीदारी की ज़रुरत
देश भर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों द्वारा इस तरह के दृष्टिकोण को व्यापक रूप से अपनाने से महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है, जिससे वे जिस भूमि पर खेती करती हैं, उसके स्वामित्व की भावना को बढ़ावा मिल सकता है.
कृषि प्रणाली दृष्टिकोण और एकीकृत प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को अपनाने में लिंग-समान भागीदारी होनी चाहिए. आर्थिक प्रणाली में मौजूद लैंगिक अंतर को दूर करने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग ज़रूरी है. इससे महिलाओं को ऋण जैसे संसाधनों तक पहुंच आसान हो जाएगी, जिससे वे पूंजी निवेश करने, टिकाऊ कृषि पद्धतियों का इस्तेमाल करने और एग्रो-टेक्नॉलोजी का लाभ उठाने में सक्षम होंगी.
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किसानों के रूप में महिलाओं की पहचान, सशक्तिकरण कार्यक्रम, महिला FPO और उनके संघ की स्थापना कृषि में महिलाओं की आवाज को बढ़ाएगी.
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