शिक्षा और जागरूकता से होगा महिला किसानों का सशक्तिकरण

स्वयं सहायता समूहों के ज़रिये महिलाओं को क्रेडिट लेने, काम का विस्तार करने, नई तकनीक सीखने और सामूहिक रूप से काम करने में मदद मिल सकती है. समर्थन के ज़रिये महिला किसानों को आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त बनने में मदद मिलेगी.

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मिस्बाह
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करीब 70 % जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. 85 % ग्रामीण परिवार आय के लिए कृषि (agriculture) पर निर्भर हैं. 65 से 70 % महिलाएं कृषि में योगदान दे रही हैं (women farmers data). आधी आबादी कहलाने वाली ये महिलाएं तकनीक से ताल-मेल बनाने में चुनौतियों का सामना कर रही हैं (challenges of women farmer). 

खेती में नेतृत्व भूमिका निभा रहीं महिला किसान 

तकनीक से जुड़ी ट्रेनिंग तक पहुंचना महिलाओं के लिए मुश्किल है. भारत मानव विकास सर्वेक्षण (India Human Development Survey) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 83 % कृषि भूमि पुरुष सदस्यों की विरासत है, जबकि महिलाओं को केवल 2 % भूमि विरासत में मिली. इसके अलावा, 81 % महिला खेतिहर मजदूर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और दूसरे पिछड़े वर्गों से हैं. 

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नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 18 % कृषक परिवारों में महिलाएं मुखिया हैं, जो खेती का नेतृत्व करती हैं. बेहतर रोजगार के अवसरों की तलाश में ग्रामीण पुरुष शहर की ओर रुख कर लेते हैं. ऐसे में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाती है (women contributing in farming). महिलाएं बुआई से लेकर कटाई, सफाई, प्रसंस्करण और अनाज के भंडारण तक सभी काम संभालती हैं. उनकी भूमिका न सिर्फ फसल उगाने और पशुओं के पालन-पोषण तक है, बल्कि  खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) और विपणन (Marketing) तक भी बढ़ जाती है.

महिला किसानों की चुनौतियां हैं पढ़ाई और जागरूकता की कमी  

पढ़ाई का स्तर कम होने की वजह से महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है (Problems of female farmers in India in Hindi). पढ़ाई की कमी (lack of education) आधुनिक कृषि पद्धतियों और ज़रूरी जानकारी तक महिलाओं की पहुंच को सीमित करती है. सरकारी नीतियों, सब्सिडी (farmer's subsidy) और कृषि नवाचारों (agricultural innovations) के बारे में अज्ञानता उनकी क्षमता को बढ़ने नहीं देती (major problems faced by farmers). 

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Image Credits: Schöck-Familien-Stiftung

इसके अलावा, अंधविश्वास (Superstition) और सामाजिक मानदंड (social norms) महिलाओं को नई कृषि पद्धतियों को अपनाने और निर्णय लेने में बाधा बनते हैं. महिला किसानों को सशक्त बनाने के लिए, साक्षरता को बढ़ावा देना, उनको ज़रूरी शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम (female farmers training) तक पहुंच देना ज़रूरी है. 

सरकारी योजनाओं और अवसरों के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी अहम है (government schemes for farmers). गहरी जड़ें जमा चुके अंधविश्वासों पर काबू पाने के लिए सामुदायिक भागीदारी और एडवोकेसी प्रोग्राम्स की ज़रुरत होती है. इन समाधानों के ज़रिये महिला किसान अपनी आय बढ़ा सकेंगी, खाद्य सुरक्षा में योगदान दे सकती हैं और भारत के कृषि क्षेत्र में अहम भूमिका निभा सकती हैं.

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Image Credits: Rice Today

SHG से जुड़ होंगी महिला किसानों की बाधाएं दूर 

सहकारी समितियों (co-operative societies) में महिलाओं को सदस्य बनाकर सहकारी समितियों से ऋण (loan), तकनीकी मार्गदर्शन (technical guidance), कृषि उत्पादों की मार्केटिंग (marketing) जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं. स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group helping women farmers) के ज़रिये महिलाओं को क्रेडिट (credit) लेने, काम का विस्तार करने, नई तकनीक सीखने और सामूहिक रूप से काम करने में मदद मिल सकती है.

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Image Credits: India CSR

समर्थन के ज़रिये महिला किसानों को आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और मनोवैज्ञानिक रूप से सशक्त (women farmer's empowerment) बनने में मदद मिलेगी. महिला किसानों को आर्थिक और सामजिक सहायता देकर गरीबी दूर करने, स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता, स्वच्छता, और आर्थिक विकास (supporting women farmers) को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी. 

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