कहते है घर की महिला अगर आगे बढ़ रही है तो घर आगे बढ़ता ही है. तो ये बात अगर हम ऐसी की ऐसी देश की तरक्की पर भी लागू करे तो? देश की महिला अगर आगे बढ़ेगी तो ही देश का कल्याण संभव है. अब बात करते है एक ऐसे पेशे के बारे में जिसमें पिछले 10 सालों में बढ़त देखने को मिली है.
IFS में बढ़ रही महिलाओं की भर्ती
भारतीय विदेश सेवा (IFS) में महिलाओं की भर्ती लगातार बढ़ रही है. 2014-2022 की अवधि में इसमें 6.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. यह एक सकारात्मक बदलाव है. हालांकि अभी भी थोड़ी कसर बाकी है यह कहा जा सकता है क्योंकि बड़े या शीर्ष पदों पर महिलाओं की नियुक्ति में अभी भी कमी है. आंकड़ों के अनुसार, 2014 के IFS बैच में 31.2 प्रतिशत (32 में से 10) महिलाएं थीं, वहीँ 2022 में यह संख्या बढ़कर 37.8 प्रतिशत (37 में से 14) हो गई.
विशेष रूप से, 2018, 2019 और 2020 में, विदेश सेवा में महिला भर्ती का प्रतिशत 40 प्रतिशत से अधिक रहा.
2022 बैच की एक युवा महिला IFS अधिकारी ने एक इंटरव्यू में कहा, "मैं इसे सकारात्मक संकेत के रूप में देखती हूं, खासकर क्योंकि IFS में महिला भर्ती का प्रतिशत आमतौर पर IPS जैसी सेवाओं से अधिक होता है."
पहले से काफी बदले है हालात
स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में, विदेश सेवा में महिला अधिकारियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. उन्हें अक्सर "कठिनाई" पदों या संघर्ष क्षेत्रों के लिए नहीं चुना जाता था और उन्हें शादी करने से पहले भारतीय सरकार से अनुमति लेनी पड़ती थी, जबकि उनके पुरुष सहयोगियों के लिए ऐसा नहीं था.
सी.बी. मुथम्मा उन अग्रणी महिला राजनयिकों में से एक थीं जिन्होंने 1979 में सुप्रीम कोर्ट में इन नियमों को सफलतापूर्वक चुनौती दी. जब पूर्व राजदूत रुचि घनश्याम 1982 में IFS में शामिल हुईं, तो वे 15 के बैच में चार महिलाओं में से एक थीं. उनके भर्ती के समय तक महिलाओं पर प्रतिबंध कम हो चुके थे.
"15 के बैच में उन चार लड़कियों के लिए कोई बड़ी शर्त नहीं थी. लेकिन 80 के दशक के बाद से IFS ने एक लंबा सफर तय किया है. बड़े पदों पर महिलाओं पर प्रतिबंध काफी हद तक कम हो गया था. मैंने खुद 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इस्लामाबाद में काम किया है." वे बताती है.
घनश्याम ने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान में भारतीय उच्चायोग में राजनीतिक, प्रेस और सूचना के परामर्शदाता के रूप काम किया था.
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2014 से बदले हालात
2005 से 2008 के बीच भर्ती किए गए 84 IFS अधिकारियों में से 24 महिलाएं थीं, यानी 29% भर्ती. 2012 के बैच में कुल 36 में से 16 महिला अधिकारी थीं, जो सबसे अधिक महिला अधिकारियों का बैच था. कुल 731 IFS अधिकारियों में से 135 महिला अधिकारी हैं, जो IFS में महिलाओं का कुल प्रतिशत 18.50% बनाता है.
2014 से हर साल औसतन चार महिलाएं IFS में जोड़ी जाने लगी. राजनीतिक वैज्ञानिक कांती बाजपाई का कहना है कि भर्ती की संख्या को अगर तिगुना कर दिया जाए तो बेहतर लिंग समानता हासिल की जा सकती है. कांती बाजपाई पहले भी IFS के छोटे आकार और इसकी "अत्यधिक चयनात्मक" भर्ती नीति के बारे में अपने विचार रख चुकी है.
"भारत की विदेश सेवा की ताकत केवल 800 है, जबकि चीन में 5,000 से अधिक अधिकारी हैं. यदि IFS के लिए कम से कम 100 उम्मीदवार चुने जाते हैं, तो इससे सिविल सेवाओं में अधिक महिलाएं आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित हो सकती हैं और विदेश सेवा को 50/50 लिंग समानता के करीब लाया जा सकता है," बाजपाई ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया.
शीर्ष पदों पर नहीं है महिलाएं
दुनिया भर में भारतीय राजनयिक मिशनों की अगुवाई करने वाली भारतीय महिलाओं की संख्या पर नजदीकी नजर डालने से एक ज्यादा उत्साहजनक तस्वीर सामने नहीं आती.
वर्तमान में, महिलाएं आठ भारतीय राजनयिक मिशनों का नेतृत्व कर रही हैं, लेकिन उच्च-प्रोफ़ाइल राजधानी शहरों में नहीं. इनमें आर्मेनिया, कंबोडिया, साइप्रस, इटली, मॉरीशस, माल्टा, न्यूजीलैंड, नीदरलैंड्स, पोलैंड और सर्बिया शामिल हैं. रुचिरा कंबोज, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहली महिला राजदूत थीं, ने 1 जून को सेवानिवृत्त होने पर न्यूयॉर्क में इस पद से इस्तीफा दिया.
स्थिति 2008 से बहुत अलग है जब महिलाएं दुनिया भर में 25 से अधिक भारतीय मिशनों और वाणिज्य दूतावासों का नेतृत्व कर रही थीं, जिसमें प्रमुख राजधानी शहर भी शामिल थे. उस समय, सुजाता सिंह ऑस्ट्रेलिया में, मीरा शंकर बर्लिन में और निरुपमा राव चीन में सेवा दे रही थीं. सिंह और राव दोनों बाद में विदेश सचिव बनीं.
भारतीय महिलाएं जो रह चुकी है IFS officer
पिछले वर्षों में IFS में महिलाओं की serives बढ़ी है, बड़ी संख्या में महिलाओं ने इसमें शामिल होना शुरू किया है. यह है वह लिस्ट जिसमें भारतीय विदेश सेवा में महिलाओं के बारे में कई बातें आपको पता चलेंगी.
सी.बी. मुथम्मा
1949 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला है सी.बी. मुथम्मा. वे पहली भारतीय महिला राजदूत/उच्चायुक्त बनीं जिन्हें भारतीय सिविल सेवाओं में लैंगिक समानता के लिए उनकी सफल लड़ाई के लिए जाना जाता है.
सुरजीत मान सिंह
एक समय था जब भारतीय विदेश सेवा शादीशुदा महिलाओं के लिए प्रतिबंधित थी और यदि किसी को शादी करनी होती थी, तो उसे अनुमति लेनी पड़ती थी या फिर इस्तीफा देना पड़ता था, जैसा कि प्रो. सुरजीत मान सिंह के मामले में हुआ, जो एक आईएफएस अधिकारी थीं.
आश्चर्यजनक रूप से, वेतन भी असमान था; महिलाओं को समान पदनाम के लिए पुरुषों से कम वेतन दिया जाता था. लेकिन अब सी. मुथम्मा और रुक्मिणी मेनन जैसी पायनियर महिलाओं के कारण चीज़ें बदल चुकीं है. भारत की महिला राजनयिक आज दुनिया के मंच पर आत्मविश्वास से कदम रख रही हैं और अधिक महिलाएं IFS में शामिल होने की ओर अग्रसर हैं.
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अरुंधति घोष
1963 बैच की भारतीय विदेश सेवा अधिकारी, अरुंधति घोष जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि थीं और उस क्षमता में 1996 में सीटीबीटी पर वार्ता के दौरान भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. इससे पहले, उन्होंने मिस्र में भारत के राजदूत के रूप में भी सेवा की. वे 2004 तक संघ लोक सेवा आयोग की सदस्य भी रही हैं.
चोकिला अय्यर
1964 बैच की IFS अधिकारी. वे भारत की पहली महिला विदेश सचिव हैं. इसके अलावा, उन्होंने UPSC की सदस्य और अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग की उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.
मीरा कुमार
लोकसभा की पहली महिला अध्यक्ष 1970 बैच की IFS अधिकारी थीं. उन्होंने स्पेन, यूनाइटेड किंगडम और मॉरीशस में भारतीय दूतावासों में सेवा की. बाद में वे सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बनीं.
लीला के. पोनप्पा
1970 बैच की IFS अधिकारी, जिन्होंने पहली महिला उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय की सचिव के रूप में सेवा की. उन्हें जून 2012 में CSCAP (एशिया प्रशांत में सुरक्षा सहयोग परिषद) की सह-अध्यक्ष चुना गया. वे थाईलैंड में पहली महिला राजदूत बनने का गौरव भी रखती हैं. उन्होंने नीदरलैंड्स में भी भारत की राजदूत के रूप में सेवा की.
निरुपमा राव
वे 2001 में विदेश मंत्रालय की पहली महिला प्रवक्ता और चीन में भारत की पहली महिला राजदूत बनीं. 1973 बैच की IFS अधिकारी ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में भी सेवा की. इससे पहले, उन्होंने दो वर्षों के लिए भारत की विदेश सचिव के रूप में सेवा की.
मीरा शंकर
1973 बैच की IFS अधिकारी, वे 2009 से 2011 तक संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत की राजदूत बनने वाली पहली महिला कैरियर राजनयिक थीं. 2009 से पहले, उन्होंने जर्मनी के बर्लिन में भारत की राजदूत के रूप में सेवा की. उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के महानिदेशक के पद को भी संभाला.
सुजाता सिंह
वर्तमान में भारत की विदेश सचिव के पद को संभालती हैं और भारतीय राजनयिक सेवा का नेतृत्व करती हैं. उन्होंने बोन्न, अक्रा, पेरिस, बैंकॉक में विभिन्न पदों पर सेवा की है और 2000-04 के दौरान मिलान में भारत की कौंसल जनरल रहीं. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया (2007-2012) में भारत के उच्चायुक्त और जर्मनी (2012-2013) में राजदूत के रूप में भी सेवा की.
दीपा गोपालन वधवा
1979 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुईं. उन्होंने किसी भी खाड़ी राज्य में पहली महिला राजदूत बनने का गौरव प्राप्त किया. वर्तमान में वे जापान में भारतीय राजदूत के पद पर हैं.
नेंगचा ल्हौवुम
1980 बैच की IFS अधिकारी हैं. अपने राजनयिक करियर के दौरान, उन्होंने मैक्सिको सिटी, ढाका, हवाना और न्यूयॉर्क में भारतीय मिशनों में विभिन्न पदों पर कार्य किया है. वे 2007-2008 के लिए सार्वजनिक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार की प्राप्तकर्ता हैं. वर्तमान में, वे विदेश सेवा संस्थान की डीन हैं.
मनिमेकलाई मुरुगेसन
1981 बैच की भारतीय विदेश सेवा की अधिकारी, मनीमेकलाई को 2010-2011 में सार्वजनिक प्रशासन में उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्राप्त हुआ. उन्होंने लीबिया में विद्रोह के बाद 16,000 भारतीयों को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रुचिरा कंबोज
रुचिरा कंबोज वर्तमान में भारत सरकार की प्रोटोकॉल प्रमुख हैं, इस पद पर नियुक्त होने वाली भारतीय विदेश सेवा की पहली महिला हैं. वे 1987 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुईं और लंदन में राष्ट्रमंडल महासचिव कार्यालय के उप प्रमुख के रूप में आखिरी बार सेवा की. इससे पहले, उन्होंने केप टाउन, दक्षिण अफ्रीका में उच्चायोग के मंत्री और कार्यालय प्रमुख के रूप में सेवा की.
2024 में 1 जून को रुचिरा ने अपने retirement की घोषणा की. उन्होंने अपनी दो इंटर्न्स, काव्य जैन और सहाना रविकुमार के बारे में भी बताया और कहा की हमारे देश का भविष्य बहुत अच्छे हाथों में है. और सोचने वाली बात भी है अगर एक महिला हमारे देश को इतने बड़े मंच पर रेप्रेज़ेंट करेगी तो देश आगे नहीं बढ़ेगा बल्कि दौड़ेगा.