कॉफी सिर्फ मॉर्निंग रिचुअल का हिस्सा नहीं, कई समुदायों और कहानियों की भी पहचान है. ऐसी ही एक मनोरम कहानी ब्लैक बाजा कॉफी की है, जो अपने ख़ास स्वाद के ज़रिये पर्यावरण संरक्षण की खुशबू फैला रहा है. इसकी शुरुआत अर्शिया बोस की डॉक्टरेट रिसर्च के साथ हुई.
650 से ज़्यादा छोटे उत्पादकों के साथ काम कर रहा ब्लैक बाजा कॉफ़ी
ब्लैक बाजा कॉफ़ी प्रोडक्शन में ईको फ्रेंडली तरीकों से छोटे उत्पादकों को कॉफ़ी उगाने के लिए सशक्त बनाया जाता है. यह सस्टेनेबल स्टार्टअप कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और मेघालय में 650 से ज़्यादा छोटे उत्पादकों के साथ काम कर रहा है.
कॉफी की कर रहे सस्टेनेबल फार्मिंग
फेयर और ट्रांसपेरेंट पार्टनर बन उत्पादकों का समर्थन किया. बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किये कॉफी उगाई. कॉफी की पैकेजिंग बायोडीग्रेडेबल पैकेट्स और टेप से होती है. इस पूरे प्रोसेस में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उन्हें रोल्स दिए गए, मीटिंग में उनकी मौजूदगी तय की गई, और उनके कौशल और विचारों को सुन काम में बदलाव किये गए.