जावद प्रिंट: मध्यप्रदेश की पारंपरिक ब्लॉक प्रिंट कला

जावद प्रिंट मध्यप्रदेश की पारंपरिक ब्लॉक प्रिंट कला है. चिप्पा समुदाय द्वारा बनाई गई यह कला प्राकृतिक रंगों और अनोखे डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध है.

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रिसिका जोशी
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Javad Print madhya pradesh

Image Credits: Ravivar Vichar

हाल ही में हुई कोल्हापुरी चप्पल के विवाद के बारे में आप लोगों ने सुना ही होगा! एक बहुत ही नामचीन ब्रांड 'प्राडा' ने इन चप्पलों की हूबहू कॉपी को रनवे पर उतारा, जो कि इस साल के जून में एक बहुत बड़ा मुद्दा बन गया था.

सोशल मीडिया पर हर छोटे- बड़े क्रिएटर्स ने आवाज उठाई और प्राडा की टेक्निकल टीम ने कोल्हापुर जाकर ना इन कारीगरों के काम को देखा भी बल्कि उन्हें सराहा भी. लेकिन सवाल यह है कि कोई भी विदेशी ब्रांड हमारे काम को अपना बता कर बेच ही कैसे सकता है.

उसका सीधा सा जवाब है क्यूंकि भारत के कैरगारों को जो पहचान मिलनी चाहिए वो कभी मिली ही नहीं है. अब जाकर पूरी दुनिया जानती है कि कोल्हापुर के लोग ना जाने कितने दशकों से यह चप्पलों का डिज़ाइन तैयार कर रहे है. भले ही इस ब्रांड ने आकर हमारा डिज़ाइन अपना बताकर बेचा हो, लेकिन फिर भी जो पैसा यह ब्रांड इस डिज़ाइन से कमाएगा, वह कभी भी हमारे कारीगरों को नहीं मिलेगा.

बहरहाल, कोल्हापुरी चप्पल के साथ जो भी हुआ, वो होने का इंतज़ार किया जाना चाहिए था? क्यों देश का युवा आज भी प्राडा और गुची के पीछे दौड़ता है जब उनके पास, उनके अपने देश में बेहतरीन कलाएं मौजूद है. सिर्फ कोल्हापुर ही नहीं, देश के हर प्रांत, हर कोने में आपको ऐसे प्रिंट्स, ऐसी कलाएं और ऐसी परंपराएं मिल जाएंगी जो 'मेक इन इंडिया' और 'मेड इन इंडिया' के नारों को दुनिया के हर घर तक पहुंचा सकतीं है.

रविवार विचार इसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहा है, और हर कला को लोगों तक पहुंचाने का सफल प्रयास भी कर रहा है. चाहे फिर वो इन कारीगरों के बात करके इन्हे एक मंच देना हो, या इन कारीगरों को ऐसे लोगों से जोड़ना हो जो इन्हे भी उस मुकाम तक पहुंचाने का दम रखते है.

इस सीरीज़ में हम आप तक ऐसी कलाएं और प्रिंट्स पहुंचाएंगे, जिन्हें वो सम्मान और पहचान नहीं मिली है जो आज तक मिलनी चाहिए थी. आज बात करते है जावद प्रिंट की, जो मध्य प्रदेश की ऐसी कला है जिसे आज तक कोई नाम या पहचान नहीं मिली थी.

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जावद प्रिंट का परिचय

जावद प्रिंट मध्यप्रदेश के मालवा अंचल की एक पारंपरिक वस्त्रकला है, जिसकी ख्याति पूरे देश में है. नीमच और मंदसौर ज़िले के जावद कस्बे से इसका उद्भव माना जाता है. यह कला अपने गहरे रंगों और बारीक फूल-पत्ती वाले डिज़ाइनों के लिए जानी जाती है. जावद प्रिंट की खासियत यह है कि इसमें प्राकृतिक रंगों और हाथ से बने लकड़ी के ब्लॉक्स का ही प्रयोग होता है.

जावद कस्बे से जुड़ी पारंपरिक कला

जावद कस्बा इस कला का हृदयस्थल है. यहाँ के लोग आज भी पारंपरिक तकनीक का पालन करते हुए इस कला को ज़िंदा रखे हुए हैं. पुराने समय में यह प्रिंट ग्रामीण समाज में घाघरे, ओढ़नियों और पगड़ियों पर खूब दिखती थी. गाँव के मेले, त्यौहार और विवाह जैसे अवसर जावद प्रिंट की चमक से रोशन होते थे. धीरे-धीरे यह प्रिंट कस्बाई और शहरी जीवन का भी हिस्सा बन गया.

चिप्पा समुदाय और उनकी भूमिका

जावद प्रिंट की असली धरोहर चिप्पा समुदाय है. यह समुदाय सदियों से कपड़े पर रंगाई और छपाई का काम करता आया है. परिवार का हर सदस्य इस प्रक्रिया में जुड़ा रहता है — पुरुष ब्लॉक्स से छपाई और डिज़ाइन बनाते हैं, महिलाएँ रंग तैयार करने, कपड़े धोने और सुखाने का काम करती हैं. यही कारण है कि जावद प्रिंट केवल एक कला नहीं बल्कि एक सामुदायिक परंपरा है.

इतिहास और उत्पत्ति

जावद प्रिंट की शुरुआत लगभग तीन से चार सौ साल पहले मानी जाती है. मालवा क्षेत्र मुग़ल और राजपूत शैली की कलाओं का केंद्र रहा है, जिसका असर जावद प्रिंट पर भी दिखाई देता है. फूल-पत्ती और बेल-बूटों की नफ़ासत मुग़ल कला से आई, जबकि चमकीले रंगों और ज्यामितीय बॉर्डरों में लोक कला की झलक है. पीढ़ी दर पीढ़ी यह कला मौखिक परंपरा और प्रशिक्षण के ज़रिए आगे बढ़ती रही है.

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जावद प्रिंट की विशेषताएँ

प्राकृतिक रंगों का उपयोग

जावद प्रिंट पूरी तरह प्राकृतिक रंगों पर आधारित है. लाल रंग मदार की जड़ और अलिज़रीन से, नीला नील से, पीला हल्दी और अनार के छिलकों से, तथा काला लौह घोल से तैयार किया जाता है. इन रंगों की स्थायी चमक और गहराई ही इस प्रिंट को विशेष बनाती है.

डिज़ाइन और मोटिफ्स

जावद प्रिंट में फूल-पत्तियों के पैटर्न, कैरी डिज़ाइन, बेल-बूटे और छोटे बूटीदार रूपांकनों का इस्तेमाल होता है. बॉर्डरों में ज्यामितीय आकृतियाँ और पारंपरिक बेल डिज़ाइन आम हैं. इन डिज़ाइनों की प्रेरणा प्रकृति और स्थानीय जीवन से ली जाती है.

निर्माण की प्रक्रिया

कपड़े की तैयारी

सबसे पहले कपड़े को पानी में धोकर उसमें मौजूद स्टार्च और गंदगी हटाई जाती है. इसके बाद उसे कठोर धूप में सुखाया जाता है.

ब्लॉक प्रिंटिंग और रंगाई

कारीगर लकड़ी के नक्काशीदार ब्लॉक्स को रंग में डुबोकर कपड़े पर छापते हैं. एक-एक ब्लॉक के सहारे पूरा पैटर्न धीरे-धीरे उभरकर आता है. कई बार एक डिज़ाइन को पूरा करने के लिए तीन-चार ब्लॉक्स का प्रयोग करना पड़ता है.

धुलाई, सुखाई और फिनिशिंग

छपाई के बाद कपड़े को बार-बार धोया जाता है ताकि रंग स्थायी हो जाएँ. फिर उसे धूप में सुखाया जाता है और अंत में गोंद या प्राकृतिक लेप से फिनिशिंग दी जाती है.

पारंपरिक और आधुनिक उपयोग

परंपरागत रूप से जावद प्रिंट ग्रामीण महिलाओं के घाघरे और ओढ़नियों तथा पुरुषों की पगड़ियों के लिए इस्तेमाल किया जाता था. यह उनके त्योहारों और सामाजिक अवसरों की शान हुआ करता था. आज के समय में डिज़ाइनर्स और कारीगरों ने इस कला को आधुनिक रूप देकर साड़ियों, दुपट्टों, कुर्तों, स्टोल्स, बेडशीट्स और परदे तक पहुँचा दिया है. इस तरह जावद प्रिंट ने अपनी लोकधारा को बनाए रखते हुए आधुनिक बाज़ार से भी रिश्ता जोड़ा है.

वर्तमान चुनौतियाँ

जावद प्रिंट आज कई कठिनाइयों का सामना कर रहा है. मशीन प्रिंट और पावरलूम से बने कपड़े सस्ते और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे हस्तकला को नुकसान पहुँचता है. प्राकृतिक रंगों की उपलब्धता में भी कमी आई है. इसके अलावा मेहनत अधिक और आमदनी कम होने के कारण नई पीढ़ी इस कला से दूर होती जा रही है.

इन चुनौतियों के बावजूद जावद प्रिंट को जीवित रखने के प्रयास लगातार किए जा रहे हैं. कई NGOs, डिज़ाइनर्स और हैंडलूम संगठन इस कला को आधुनिक डिज़ाइन और फैशन के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. ऑनलाइन बाज़ार और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में इसकी माँग बढ़ रही है. यदि इसे सही सहयोग और प्रशिक्षण मिले, तो यह कला आने वाले वर्षों में एक बार फिर वैश्विक पहचान बना सकती है.

जावद प्रिंट केवल एक वस्त्र कला नहीं, बल्कि मालवा की सांस्कृतिक धरोहर है. यह परंपरा, प्रकृति और सामुदायिक मेहनत का अद्भुत संगम है. यदि इसे संरक्षण और सही बाज़ार मिले तो यह न सिर्फ़ मध्यप्रदेश बल्कि पूरे भारत की शान बनकर आगे बढ़ेगी.

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