"जहां महिलाएं लीड करें, वहां फायदे की बात होती है."
हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां women empowerment की बातें बहुत होती हैं — लेकिन जब असली लीडरशिप की बारी आती है, तो महिलाएं अक्सर सिस्टम के किनारे कर दी जाती हैं. Marching Sheep Inclusion Index 2025 की नई रिपोर्ट ने इसी हकीकत को आंकड़ों के ज़रिए सामने रखा है.
रिपोर्ट कहती है —
भारत की वो कंपनियां जहाँ female leadership या महिलाओं को उच्च पदों पर, यानि CEO, बोर्ड या सीनियर मैनेजर की भूमिका में रखा गया, वहां मुनाफा (Profit After Tax) 50% ज्यादा निकला.
और फिर भी, लगभग 63.45% कंपनियों में कोई भी महिला मैनेजमेंट में नहीं है.
Marching Sheep Inclusion Index 2025 रिपोर्ट क्या बताती है?
840 लिस्टेड कंपनियों और 30 इंडस्ट्रीज़ पर आधारित यह अध्ययन सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं — यह सिस्टम पर सवाल है.
रिपोर्ट की लीडर और Marching Sheep की संस्थापक Sonica Aron कहती हैं:
🗣️ "किसी महिला को केवल बोर्ड में बैठा देना, सच्चा समावेश (Inclusion) नहीं होता. जब तक उस महिला को जिम्मेदारी, अधिकार और निर्णय लेने की शक्ति नहीं दी जाती, तब तक वह सिर्फ एक गिनती का नंबर बनकर रह जाती है."
यह बयान सिर्फ एक quote नहीं, बल्कि एक कटु सत्य है — आज भारत की कई बड़ी कंपनियां नियमों का पालन करने के नाम पर बोर्ड में एक महिला को तो जोड़ लेती हैं, लेकिन उसे असली ताकत नहीं देतीं. यह बयान बिना किसी झूठ के Women leaders और Women leadership की सच्चाई को सामने रखता है.
Hourglass Effect: नीचे महिलाएं, ऊपर सिर्फ पुरुष
इस रिपोर्ट में एक शब्द खास तौर पर सामने आया- Hourglass Effect.
इसका मतलब है, महिलाएं कंपनियों में शुरुआत (entry level) में तो होती हैं, लेकिन जैसे-जैसे पद ऊपर बढ़ते हैं — यानि middle management और strategic leadership roles — वहां महिलाएं गायब होती जाती हैं.
Sonica Aron इस विषय में कहती हैं:
"जूनियर लेवल और बोर्ड में महिलाएं नज़र आती हैं, लेकिन बीच की परत — मिड मैनेजमेंट — लगभग पूरी तरह पुरुषों से भरी हुई है. और यही असली पावर की परत है."
ये "middle layer" ही वो जगह है जहां से decisions लिए जाते हैं, प्रमोशन्स तय होते हैं, और कंपनी की दिशा बदलती है. जब यहाँ महिलाएं नहीं होंगी, तो उनकी आवाज़ भी निर्णयों में नहीं सुनाई देगी.
टोकनिज़्म: दिखावे की भागीदारी
इस रिपोर्ट में टोकनिज़्म पर भी ज़ोर दिया गया है. टोकनिज़्म मतलब – सिर्फ दिखावे के लिए किसी महिला को बोर्ड में रख देना.
"कई कंपनियां diversity को सिर्फ एक checkbox मानती हैं – महिला को बोर्ड में बैठा दो, बस हो गया. लेकिन क्या उसे वो power मिल रही है? क्या वो फैसले ले रही है? क्या उसकी आवाज़ मानी जा रही है?" – (Sonica Aron)
यह सवाल हर उस महिला के लिए हैं जो आज भी बोर्ड में होते हुए सिर्फ चुप बैठी है, क्योंकि पावर की चाबी अब भी किसी पुरुष के पास है.
आंकड़े जो बताते हैं: महिला नेतृत्व = ज़्यादा मुनाफा
यह भारत की ही बात नहीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई शोध इस बात की पुष्टि कर चुके हैं:
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Harvard Business Review (2016): जिन कंपनियों ने 0% से 30% तक महिला नेतृत्व बढ़ाया, उनका net profit margin 15% तक बढ़ गया.
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McKinsey (2021): gender-diverse executive teams की 25% ज़्यादा संभावना होती है बेहतरीन फाइनेंशियल परफॉर्मेंस देने की.
फिर भारत की कंपनियों को यह कब समझ में आएगा?
तो रास्ता क्या है?
अगर महिला नेतृत्व से मुनाफा आता है, तो इसे रोकने वाली चीजें क्या हैं?
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प्रमोशन में भेदभाव: महिलाएं एंट्री लेवल पर होती हैं, लेकिन उन्हें मिड-लेवल या CXO लेवल पर पहुंचने का मौका नहीं दिया जाता.
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Work-Life के बहाने: माँ बनने के बाद या परिवार की जिम्मेदारी उठाने के नाम पर महिलाओं को leadership roles से बाहर रखा जाता है.
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Pay Gap: CXO positions में पहुंचने के बाद भी महिलाएं अपने male counterparts से 30-40% कम सैलरी पाती हैं.
हम Ravivar Vichar में हमेशा कहते हैं, "महिलाएं सिर्फ हकदार नहीं, ज़रूरी हैं — समाज और सिस्टम, दोनों के लिए." आज जब आंकड़े खुद कह रहे हैं कि जहां महिलाएं नेतृत्व में होती हैं, वहां मुनाफा ज्यादा होता है, तो यह सिर्फ जेंडर की बात नहीं, विकास और विज़न की बात बन चुकी है. इसलिए अगली बार जब कोई कहे, “महिलाएं लीडरशिप के लिए तैयार नहीं हैं,” तो उसे यह रिपोर्ट पढ़ने को दीजिए. सवाल यह नहीं कि महिलाएं लीड कर सकती हैं या नहीं — सवाल यह है कि उन्हें कब लीड करने दिया जाएगा.