/ravivar-vichar/media/media_files/2025/10/27/tala-al-mazroa-saudi-arabia-2025-10-27-16-32-35.png)
Image Credits: Ravivar Vichar
बहरीन में आयोजित एशियन यूथ गेम्स 2025 में जब ई-फुटबॉल का फाइनल खत्म हुआ, तो एक नाम इतिहास में दर्ज हो गया. ये नाम था- तला अल मजरूआ (Tala Al Mazroa). सऊदी अरब की इस युवा खिलाड़ी ने ई-फुटबॉल में स्वर्ण पदक जीतकर वह कर दिखाया जो आज तक किसी सऊदी महिला ने नहीं किया था. यह सिर्फ एक गेम की जीत नहीं, बल्कि अरब दुनिया में महिलाओं की भागीदारी और पहचान के लिए एक ऐतिहासिक कदम है.
तला अल मजरूआ- एशियन यूथ गेम्स 2025 की चैंपियन
तला का यह सफर आसान नहीं था. सेमीफाइनल में उन्होंने लाओस की खिलाड़ी को 2-1 और 3-0 से हराया, जबकि फाइनल में थाईलैंड की खिलाड़ी पर 3-0 की निर्णायक जीत दर्ज की. हर मुकाबले में उन्होंने यह साबित किया कि जीत किसी लिंग पर नहीं, बल्कि मेहनत और आत्मविश्वास पर निर्भर करती है. ई-स्पोर्ट्स जैसे क्षेत्र में, जहाँ अब तक पुरुषों का दबदबा रहा है, तला की जीत ने उस धारणा को तोड़ दिया है.
सऊदी अरब में महिलाओं की खेलों में भागीदारी अभी कुछ ही वर्षों पहले शुरू हुई है. ऐसे माहौल में तला का गोल्ड मेडल जीतना एक सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव का प्रतीक है. यह जीत यह संदेश देती है कि अब सऊदी महिलाएँ सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि विजेता भी बन सकती हैं. सऊदी सरकार के विज़न 2030 के तहत महिलाओं को खेल, शिक्षा और रोज़गार में बराबरी देने की दिशा में जो कदम उठाए जा रहे हैं, तला की यह उपलब्धि उसी परिवर्तन का जीवंत उदाहरण है.
ई-स्पोर्ट्स में महिलाओं का नया अध्याय
ई-स्पोर्ट्स अब केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा और पेशेवर पहचान का क्षेत्र बन चुका है. तला अल मजरूआ की यह जीत यह साबित करती है कि डिजिटल मैदान में भी महिलाएं नई सीमाएं तोड़ सकती हैं. यह सिर्फ सऊदी अरब के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की उन लड़कियों के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों को स्क्रीन पर साकार करना चाहती हैं.
तला की कहानी इस बात का प्रमाण है कि सशक्तिकरण का अर्थ सिर्फ शारीरिक शक्ति नहीं होता. यह सोच, साहस और अवसरों की बराबरी से जन्म लेता है. चाहे वह खेल का मैदान हो या वर्चुअल स्क्रीन, जहां भी महिलाएं कदम रख रही हैं, वहां इतिहास दोबारा लिखा जा रहा है. तला की जीत यह याद दिलाती है कि परिवर्तन की शुरुआत एक कदम से होती है, और उस कदम को उठाने के लिए बस हिम्मत चाहिए.
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस जीत के बाद सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों में महिलाओं के लिए ई-स्पोर्ट्स को लेकर नई नीतियाँ और सुविधाएँ विकसित होंगी. क्या तला अल मजरूआ जैसी खिलाड़ी आने वाली पीढ़ी की लड़कियों के लिए प्रेरणा बनेंगी? अगर हाँ, तो यह जीत सिर्फ एक स्वर्ण पदक नहीं, बल्कि लैंगिक समानता के वैश्विक मंच पर एक स्वर्ण क्षण बन जाएगी.
/ravivar-vichar/media/agency_attachments/lhDU3qiZpcQyHuaSkw5z.png)
Follow Us