दक्षिण सूडान (South Sudan) में एक दशक से चले आ रहे संकट ने वहां के लोगों को बेघर और बेसहारा कर दिया. कई परिवार, कुछ पहले आई बाढ़ से विस्थापित हो गए, उनकी आजीविका ख़त्म हो गई. 2011 में दक्षिण सूडान को आजादी मिलने के एक साल बाद हुई हिंसा ने लोगों से उनके परिवार के लोग, घर, और उम्मीद छीनली. इन घटनाओ में बच्चे और महिलाएं गंभीर रूप से प्रभावित हुए (war and flood displaced people in South Sudan).
इंटरनेशनल रेस्क्यू समिति ने बनवाये महिलाओं के समूह
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गरीबी, भूख, और लाचारी के बीच, महिलाओं ने एक दूसरे को सहारा देना शुरू किया. इंटरनेशनल रेस्क्यू समिति (International Rescue Committee IRC) जैसे गैर-लाभकारी संगठन आगे आये. इन संगठों ने महिलाओं के समूह बनाये (women's groups). ये समूह, भारत में चल रहे स्वयं सहायता समूह (self help groups) जैसे हैं, जो महिलाओं को सशक्त और स्वावलंबी बनने में मदद करते हैं. IRC महिलाओं को लगातार ट्रेनिंग (training) देकर उन्हें आर्थिक रूप से मज़बूत बनने में मदद कर रहा है.
इस पहल के तहत महिलाओं को व्यावसायिक और व्यापारिक नौकरी के लिए ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे छोटे व्यवसाय (small business) शुरू कर अपने परिवार का सहारा बन सकती हैं. इसके अलावा, उन्हें ऐसा सुरक्षित माहौल मिल पाता है, जहां महिलाएं अपनी परेशानियां साझा कर सकती हैं और एक दूसरे को सहारा देती हैं. इसके ज़रिये उन्हें चिकित्सा और भावनात्मक समर्थन (emotional support) मिलता है, जिससे उन्हें अपने दुखद अनुभवों से उभरने का मौका मिलता है.
महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रहे समूह
युद्ध में ग्रेस के पति और बच्चों की मौत हो गई थी. उनके पास पेट भरने तक का कोई साधन नहीं बचा था. IRC द्वारा मिले प्रशिक्षण से ग्रेस ने बुनाई की कला सीखी और अपना छोटा सा बुनाई व्यवसाय शुरू किया. उन्हें सदमे से निकलने का ज़रिया मिला. ग्रेस अपने पैरों पर खड़े होने के साथ, कम्यूनिटी की दूसरी महिलाओं को रोजगार दे रही हैं.
यह पहल न केवल इन महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त (financial empowerment) बनाने में मदद कर रही है, बल्कि उन्हें उनके समुदाय में आवाज़ उठाने की ताकत भी मिली है. अब ये महिलाएं अपने परिवार और समुदाय से जुड़े फैसले ले रहीं है और पारंपरिक जेंडर रोल्स को चुनौती भी दे रही हैं.
कौशल, समर्थन और संसाधनों तक पहुंची बेघर महिलाएं
युद्ध और आपदा की वजह से परेशान महिलाओं को कौशल, समर्थन और संसाधनों तक पहुंच देकर उनके जीवन स्तर को सुधारा जा रहा है. समूहों से जुड़कर, जिन्हें अधिकतर देशों में स्वयं सहायता समूह कहा जाता है, महिलाएं गरीबी और चुनौतियों से भरी परिस्थितियों से निकल पा रही हैं. UN के हिसाब से दुनियाभर में करीब 2 बिलियन लोग कॉन्फ्लिक्ट, वॉर, या गरीबी में रहने पर मजबूर हैं. ऐसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सेल्फ हेल्प ग्रुप्स के ज़रिये महिलाओं को परेशानियों का सामना करने और आर्थिक रूप से मज़बूत बनने में मदद मिल सकती है.