इस रविवार को मध्य प्रदेश के चुनावी (MP elections) नतीजे आएंगे. लोकसभा चुनाव (Loksabha elections) से चंद महीने पहले होने वाले पांच राज्यों के चनावों को राजनीतिक विशेषज्ञ अलग अलग तरीके से देखते हैं. कुछ इसे आने वाले लोकसभा चुनाव का ट्रेलर मानते हैं और कुछ का मानना है कि इन राज्यों के नतीजे लोकसभा के नतीजों का सूचक नहीं होते.
230 विधानसभा सीटों वाले MP में लंबे समय से है भाजपा का शासन
2018 के चुनाव इस बात को सही साबित कर चुके हैं. पिछली बार इन चुनावों में भारी जीत दर्ज कराने के बाद भी लोकसभा में कांग्रेस को एक भारी हार का सामना करना पड़ा था. पर एक चीज़ जिस पर सभी एकमत हैं वो ये कि ये चुनाव विजेता पार्टी की ज़मीन पर, ख़ासकर हिंदीभाषी राज्यों में पकड़ को मज़बूत करते हैं. मध्य प्रदेश इनमें से एक बेहद महत्वपूर्ण राज्य है. 230 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में लंबे समय से भाजपा का शासन है. 2018 चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी लेकिन 2020 में फ़िर भाजपा ने प्रदेश में अपनी सरकार बना ली.
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मध्य प्रदेश में भाजपा की इस लंबी पारी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) का बड़ा हाथ रहा है. चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके शिवराज सिंह चौहान ने सोलह साल तक राज्य में मुख्यमंत्री पद संभाला है. चौहान की इस लंबी पारी में मध्य प्रदेश के किसानों की बड़ी भूमिका रही. एक लंबे अरसे तक किसान शिवराज सिंह चौहान का सबसे बड़ा वोट बैंक रहें. पर इस बार स्थिति अलग हैं.
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महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत पुरुष वोटरों से रहा ज़्यादा
इस बार शिवराज सिंह चौहान ने अपना सारा ध्यान महिला वोटरों को लुभाने में लगा दिया है. चौहान द्वारा शुरू की गई मध्य प्रदेश सरकार की लाड़ली बहना स्कीम इस बात का सबसे बड़ा सुबूत है. और क्यों नहीं. मध्य प्रदेश में 2 करोड़ 67 लाख़ महिला वोटर हैं. 2008 के चुनावों में महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत 65.7 था. 2013 में ये बढ़कर 70.1 हुआ और 2018 में 74% तक जा पहुंचा. इस बार के चुनाव में ये और बढ़कर 76% हो गया. राज्य की 230 सीटों में से 34 सीटों पर महिला वोटरों का मतदान प्रतिशत पुरुष वोटरों से ज़्यादा रहा (female voters count).
कुछ विशेषज्ञ इन आंकड़ों को शिवराज सिंह चौहान के लिए एक शुभ संकेत मान रहे हैं. एक के बाद एक महिला-केंद्रित वेलफेयर स्कीम लाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने अपने इस कार्यकाल में महिलाओं, ख़ासकर कि ग्रामीण और आर्थिक रूप से कमज़ोर महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया. महिला स्वयं सहायता समूह शिवराज सिंह चौहान की इस तकनीक का केंद्र रहे.
MSP पे फ़सल खरीदने का काम भी महिला स्वयं सहायता समूहों को सौंपा जाएगा
मध्य प्रदेश में क़रीब चार लाख़ महिला स्वयं सहायता समूह हैं और ये समूह राज्य के 45 हज़ार गावों में मौजूद हैं. ये आंकड़े राज्य में महिला स्वयं सहायता समूहों (women self help groups) का महत्व साबित करते हैं. और राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसी को ध्यान में रखते हैं शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश सरकार ने महिला वोटरों को लुभाने के इस कैंपेन की शुरुआत इन महिला स्वयं सहायता समूहों (women centric schemes) से की.
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2021 में राज्य की भाजपा सरकार ने बीस हज़ार महिला स्वयं सहायता समूहों को 250 करोड़ की सहायता राशि मुहैया कराई. अक्तूबर 2021 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की कि राज्य में खाद्य पदार्थ पोषण फैक्टरियां अब ठेकेदार नहीं बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ महिला स्वयं सहायता समूह चलाएंगे. मुख्यमंत्री ने ये भी घोषणा की कि MSP पे फ़सल खरीदने का काम भी महिला स्वयं सहायता समूहों को सौंपा जाएगा.
CM चौहान ने हर महिला को महीने के दस हज़ार रुपए मुहैया कराने का किया वादा
2022 में मुख्यमंत्री ने महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ कई ऑफलाइन और ऑनलाइन मीटिंग की. अप्रैल 2023 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल कलेक्टर को और ज़्यादा महिला स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए कैंपेन चलाने का आदेश दिया. अपने चुनाव प्रचार में बार बार महिला स्वयं सहायता समूहों का ज़िक्र चौहान ने किया.
चौहान ने अपने अमूमन हर चुनावी भाषणों में कहा कि वापस चुन कर आने पे उनकी सरकार की प्राथमिकता रहेगी की हर महिला को महीने के दस हज़ार रुपए मुहैया करवाए जाएं. चौहान ने बारंबार महिला स्वयं सहायता समूहों के महत्व, राज्य की अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका, महिला सशक्तिकरण में उनका योगदान की बात की.
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अब महिला वोटरों और महिला स्वयं सहायता समूहों को लुभाने की मध्य प्रदेश भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ये कोशिश कितनी कामयाब रहेगी ये बस अब कुछ ही देर में साफ़ हो जायेगा. और अगर ये पैंतरा राजनीतिक जीत का कारण बना तो आने वाले वक्त में कई और राजनेता और सरकारें भी इस पैंतरे को अपनाती दिखें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं.
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